देहरादून: इधर हरदा और प्रीतम के कैंप वॉर में उत्तराखंड कांग्रेस कराह रही है, उधर बीजेपी में नए राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष की ताजपोशी के बाद चुनावी राज्यों में एक्शन तेज़ हो चुका है। बीएल संतोष ने न केवल लखनऊ बनाम दिल्ली जंग यानी मोदी वर्सेस योगी टकराव को टालने में अहम भूमिका निभाई बल्कि उत्तराखंड का जमीनी फ़ीडबैक देकर चार महीने के भीतर फिर से नेतृत्व परिवर्तन की पटकथा लिखने में अहम भूमिका निभाई।
दिल्ली से जानकार सूत्रों ने दावा किया है कि ये बीएल संतोष की ही रिपोर्ट थी जिसने केन्द्रीय नेतृत्व को अवगत कराया कि एक, तो प्रदेश में गढ़वाल के ठाकुर नेताओं में अंदरूनी कोहराम चरम पर है। न त्रिवेंद्र-तीरथ में पटरी बैठ पा रही है और न महाराज-हरक और दूसरे ठाकुर नेताओं में झगड़ा कम होता दिख रहा। दूसरा, साढ़े चार सालों से लगातार कुमाऊँ क्षेत्र के पार्टी नेता और काडर उपेक्षा का आरोप लगाते आ रहे। ऊपर से बचदा रहे नहीं और भगतदा महाराष्ट्र के राज्यपाल बनने के बाद एक्टिव पॉलिटिक्स से हट चुके हैं। कुमाऊं में प्रकाश पंत और सुरेन्द्र सिंह जीना जैसे चेहरे भी पार्टी के पास नहीं बचे हैं।
जबकि विपक्षी कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कुमाऊं से ही आते हैं और चर्चा है कि उन्हें कैंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाकर चुनावी जंग में चेहरे के तौर पर पेश किया जा सकता है। हरदा अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ से लेकर नैनीताल और ऊधमसिंहनगर की तराई तक सक्रिय बने हुए हैं।
बीजेपी ने कांग्रेस के हरदा दांव की घर में ही घेराबंदी करने को पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया है जो खटीमा से विधायक हैं और मूलत पिथौरागढ़ से आते हैं। साथ ही बुजुर्ग हरीश रावत के मुक़ाबले युवा धामी पर दांव लगाकर बीजेपी नेतृत्व ने यूथ वोटर में संदेश देने की कोशिश भी की है। वैसे भी जब-जब बीजेपी ने हरदा को घेरने के लिए ठाकुर चेहरा उतारा मात कांग्रेसी दिग्गज के खाते में आई है। बचदा इसके सबसे बड़े उदाहरण रहे हैं।
वैसे भी हरदा सरकार के दौरान कांग्रेस में हुई बड़ी टूट के बाद गढ़वाल में पहले से उसके पास दिग्गज नेताओं का अकाल है। बहुगुणा, महाराज और हरक जैसे चेहरे न होने से अकेले ‘चकराता के चैंपियन’ प्रीतम सिंह और ले-देकर किशोर उपाध्याय जैसे नेताओं पर ही उसकी निर्भरता रहने वाली है। हालांकि अपनी सीट पर टक्कर देने वाले सुरेंद्र सिंह नेगी, राजेन्द्र भंडारी और गणेश गोदियाल जैसे नेता हैं लेकिन अपनी सीट से बाहर इन नेताओं की ताकत न के बराबर ही है। ऐसे में हरदा को कुमाऊं में घेरकर गढ़वाल में अपने नेताओं की भीड़ पर भरोसा कर रही है बीजेपी।
एक तरह हरदा घर में प्रीतम सिंह से उलझे हुए हैं तो दूसरी तरह सत्ताधारी बीजेपी ने कुमाऊं से मुख्यमंत्री बनाकर उनकी घेराबंदी तेज़ कर दी है। अब देखना होगा कांग्रेस या हरदा इसका काउंटर कैसे करते हैं, क्या वे फिर किच्छा आकर तराई को साधने का दांव खेलेंगे या फिर धारचूला या कोई और सेफ़ सीट से 2022 बैटल में उतरेंगे!