ADDA IN-DEPTH: याद कीजिए वह दौर जब, आजकल पेपर लीक कांड के चलते चर्चित उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) द्वारा वर्ष 2016 में कराई गई ग्राम पंचायत विकास अधिकारी (VPDO) की 196 पदों पर भर्ती परीक्षा में इस कदर धांधली हुई कि नकल माफिया झोले में दो हफ्ते तक OMR sheet लेकर घूमता रहा और गुप्त स्थान पर ले जाकर ओएमआर सीट से छेड़छाड़ की गई। छह मार्च 2016 को ये परीक्षा कराई गई थी और 26 मार्च 2016 को रिजल्ट आया तो दो सगे भाई इस भर्ती परीक्षा के टॉपर निकले।
एक टॉपर तो ऐसा था जिसे दसवीं से इंटर में जाने में चार साल लगे लेकिन हरदा राज में डॉ आरबीएस रावत की अगुवाई वाले आयोग की VPDO परीक्षा वह चुटकी बजाकर पास कर गया। इतना ही नहीं ऊधमसिंहनगर के एक ही गांव महुआडाबरा के 20 से ज्यादा युवा इस भर्ती परीक्षा को पास कर सिलेक्ट हो गए।
UKSSSC की इस VPDO भर्ती परीक्षा पर खूब बवाल मचा तो तत्कालीन सीएम हरीश रावत ने ना सीबीआई जांच की सिफारिश की और ना ही एसटीएफ को जिम्मा देकर ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां कराई। हां उच्च स्तरीय जांच जरूर बिठाई लेकिन उसका नतीजा क्या रहा आप खोज कर पता लगा सकते हैं।
हल्ला मचा तो एस राजू की तरह नैतिकता का नकाब ओढ़कर तत्कालीन अध्यक्ष डॉ आरबीएस रावत भी 6 अप्रैल 2016 को इस्तीफा देकर भागे लेकिन उनका ये इस्तीफा 6 महीने तक कहीं धूल फांकता रहा और 21 सितंबर 2016 को ही मंजूर हो सका। इस तरह 26 सितंबर 2014 को हरीश रावत सरकार में गठित उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की नींव में ही भ्रष्टाचार का ईंट गारा और पत्थर भर दिए गए।
हालांकि अब हरदा यह दलील दे सकते हैं कि वे तो पारदर्शी परीक्षा तंत्र कैसे bns पाते जब उनके सामने अपनी सरकार बचाने का संकट आन खड़ा हुआ था। सवाल है कि क्या 2015 में VPDO के 196 पदों को लेकर जो भर्ती निकाली गई और 1.40 लाख युवाओं ने नौकरी के लिए आवेदन किया उनके साथ न्याय करने को हरदा सरकार कुछ भी नहीं कर सकती थी सिवाय उच्च स्तरीय कमेटी गठित करने के?
क्या आज जब धामी सरकार है तो क्या उसी कछुआ चाल से UKSSSC पेपर लीक कांड में जांच आगे बढ़ रही है? क्या आयोग के ‘कलाकार’ सचिव संतोष बडोनी को सस्पेंड करने से लेकर कईयों को जांच की आंच में लेने की कार्रवाई तब नहीं हो सकती थी? क्या तब आरबीएस रावत और आयोग में बैठे लोगों की भूमिका की जांच नहीं हो जानी चाहिए थी?
खैर UKSSSC की यही VPDO भर्ती का मुद्दा मार्च 2017 में कांग्रेस की सत्ता से विदाई के बाद आई भाजपा की सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत के सामने भी आया था। लेकिन न आयोग के पूर्व अध्यक्ष आरबीएस रावत की जांच हुई और ना ही आयोग भंग करने जैसा इनोवेटिव आइडिया तब TSR को आया।
खैर सीबीआई जांच से तो सीएम रहते त्रिवेंद्र सिंह रावत NH-74 मुआवजा घोटाले में विधानसभा के सदन में एलान कर मुकर गए थे फिर UKSSSC के कांड का पर्दाफाश कराने को सीबीआई की याद कहां आती? अब भले प्वाइंट स्कोर करने को UKSSSC पेपर लीक कांड में रह रहकर उनको सपनों में भी सीबीआई जांच दिखाई दे रही हो।
याद रखना होगा कि UKSSSC की VPDO भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी की जांच के लिए 2016 में हरीश रावत ने सीएम रहते उच्च स्तरीय जांच बिठाई और फिर भाजपा सत्ता में आई तो सीएम TSR ने विजिलेंस में मुकदमा भी दर्ज कराया लेकिन उस विजिलेंस जांच का क्या हुआ आज तक किसी को पता नहीं। अब उस विजिलेंस जांच को भी धामी सरकार एसटीएफ से पूरा कराएगी।
त्रिवेंद्र राज में जीरो टॉलरेंस का झंडा विजिलेंस कितना बुलंद कर रही थी इसकी बानगी जिस एस राजू की तारीफ में हरदा तमाम आरोपों के बावजूद कशीदे पढ़ थे, उन्हीं का कहना था कि 2016 की VPDO भर्ती परीक्षा की OMR sheet से छेड़छाड़ की पुष्टि फोरेंसिक लैब जांच रिपोर्ट में हो गया था जिसके बाद विजिलेंस जांच बिठाई गई। लेकिन विजिलेंस ने छह साल में कुछ भी नहीं किया। राजू ने कहा कि उन्होंने छह बार विजिलेंस को पत्र भी लिखे थे।
हां इतना जरूर हुआ कि जब नैनीताल हाईकोर्ट का हंटर चला और अदालत ने एक दिसंबर 2017 को परीक्षा रद्द कर दी तो TSR राज में कोर्ट आदेश पर 25 फरवरी 2018 को दोबारा परीक्षा करा दी गई जिसमें पहली परीक्षा में चयनित 196 में से मात्र 8 अभ्यर्थी ही दूसरी परीक्षा में चयनित हो सके।
सवाल है कि आज जब सीएम धामी युवाओं की मांग और परीक्षाओं पर उठे प्रश्नचिन्हों के चलते कई भर्ती परीक्षा रद्द कर जांच करा रहे तब क्यों हर बार मुख्यमंत्री रहते त्रिवेंद्र सिंह रावत की नींद हाई कोर्ट के हंटर से ही टूटी? क्या विजिलेंस जांच का झुनझुना बजाने की बजाय आयोग में बैठे युवाओं के सपनों को नकल माफिया के हाथों बेच खाने वालों को तभी नहीं दबोचा जा सकता था?
आखिर आयोगों को पारदर्शी बनाने का कोई एक कदम तो हरदा राज या TSR राज में उठाया जा सकता था। आज उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी में जिन भर्तियों को सेटिंग गेटिंग करार दिया जा रहा वह भी तो अधिकतर टीएसआर राज की ही हैं जिनका भंडाफोड़ भी एक दिन विधानसभा बैकडोर भर्तियों की तर्ज पर होना है।
TSR सरकार में ही फॉरेस्ट गार्ड भर्ती हुई जिसमें ब्लूटूथ की मदद से नकल माफिया ने पेपर लीक करा डाला था लेकिन दो चार सेंटरों की परीक्षा दोबारा कराने से आगे क्या किया गया? उल्टे अब सवाल उठ रहे कि नकल माफिया हाकम सिंह रावत को चालाकी से बचा लिया गया था, जिसके घर पर TSR के सलाहकारों ने सरकारी हेलीकॉप्टर उतार दिया था, उसका भंडाफोड़ हुआ तो आज धामी राज में वह जेल में पहुंच गया है। अभी तो हाकम सिंह रावत के साथ उनके कौनसे सलाहकार के लेन देन के कारोबारी रिश्ते चल रहा थे उसका पर्दाफाश होना बाकी है।
आयोग ही क्या विधानसभा में बैकडोर भर्तियों का खेल तो राज्य बनने के बाद से ही शुरू हो गया था। विधानसभा बैकडोर भर्तियों पर जांच का अनुरोध कराने की पहल पूर्व में भी कोई मुख्यमंत्री करा सकते थे? लेकिन यह साहसिक फैसला लेकर भी पुष्कर सिंह धामी ने ही दिखाया। यह सही है कि जिस तरह की भावना पत्र लिखते समय सीएम पुष्कर की थी स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण ने भी सीएम और प्रदेश के युवाओं की भावना से खुद को संबद्ध करते हुए साहसिक फैसला लिया जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है।
कहने को पिछली सरकार में स्पीकर रहते प्रेमचंद अग्रवाल ने जब 72 तदर्थ नियुक्तियों की फाइल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास भेजी तो उन्होंने उस पर नियमों के पालन की टिप्पणी ज़रूर की लेकिन राज्य बनने के बाद से विधानसभा अध्यक्षों द्वारा खेले जा रहे चहेतों के बैकडोर भर्ती के भ्रष्ट खेल पर कैबिनेट और विधानसभा के रास्ते कोई पाबंदी की पहल करने से वे चूक गए। वरना आज जो श्रेय आज स्पीकर और सीएम को जा रहा वह उनके खाते में होता लेकिन सलाहकारों की ‘चांडाल चौकड़ी’ से घिरे रहे TSR जमीनी हकीकत से नावाकिफ बने रहे।
ऐसे समय जब पिछले दो पूर्व विधानसभा अध्यक्षों गोविंद सिंह कुंजवाल और प्रेमचंद अग्रवाल के चलते बैकडोर भर्तियों के हमाम में कांग्रेस और भाजपा दोनों नंगे थे, तब क्या पुष्कर सिंह धामी चाहते तो बीच का रास्ता निकालकर आगे नहीं बढ़ सकते थे! आखिर मित्र विपक्ष की भूमिका बारी बारी इसी दिन के लिए ही तो भाजपा और कांग्रेस निभाते आए आए हैं। लेकिन धामी ने युवाओं से पारदर्शी भर्तियों के कमिटमेंट और प्रधानमंत्री मोदी के मिजाज से मैच करते हुए स्पीकर को बाकायदा पत्र लिखा और एक्शन का अनुरोध किया।
यह सही है कि आज भी सीएम धामी के UKSSSC पेपर लीक कांड पर एक्शन और भर्तियों को लेकर पारदर्शी सिस्टम बनाने की कसरत की तारीफ के साथ साथ एक बड़ा युवा वर्ग सीबीआई जांच की मांग कर रहा है। हालांकि सीबीआई जांच से सीएम धामी ने इंकार भी नहीं किया है लेकिन आज के दिन का सच तो यही है कि फिलहाल जांच एसटीएफ ही कर रही। उम्मीद है इस दिशा में भी साहसिक फैसला पुष्कर सिंह धामी ही ले पाएंगे।
जाहिर है सीबीआई जांच की मांग को लेकर बेरोजगार युवाओं को पूरा लोकतांत्रिक हक है कि वे अपनी मांग मनवाने को सरकार और सीएम पर दबाव डालते रहें। लेकिन यह पुष्कर राज ही है कि युवा आज सड़क पर मांग उठाते हैं और फिर सचिवालय के फोर्थ फ्लोर या मुख्य सेवक सदन पहुंचकर सीएम से अपनी बात भी कह आते हैं। वरना उसी जगह जनता दरबार में जनता कितनी बेबाकी से अपनी बात मुख्यमंत्री के समक्ष रख पाती थी उसकी बानगी उत्तरा पंत बहुगुणा एपिसोड में सभी देख ही चुके।