न्यूज़ 360

ADDA IN-DEPTH धामी ने 60 दिन में दिया भाजपा को 60 प्लस का कान्फिडेंस! चुनाव प्रभारी का डंके की चोट पर ऐलान चेहरा भी, चुनाव बाद चीफ मिनिस्टर भी होंगे धामी

Share now

देहरादून: चुनाव प्रभारी बनने के बाद पहली बार उत्तराखंड के दौरे पर आए प्रधानमंत्री मोदी व गृहमंत्री शाह के बेहद करीबी और केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सीएम पुष्कर सिंह धामी को चुनावी चेहरा और जीत के बाद सरकार के फिर से सुबेदार बनने का ऐलान कर कई तरह के संशय के बादल एक झटके में छाँट दिए हैं। यह सियासी गलियारे के उन क़यासों पर विराम लगाना है जिनके तहत चलाया जाता है कि चुनाव जीतने के बाद दिल्ली से किसी पैराशूट चेहरे की ताजपोशी कर दी जाएगी। प्रभारी प्रह्लाद जोशी का अपने पहले ही दौरे में डंके की चोट पर यह कहना कि किसी के मन में कोई संदेह न रहे क्योंकि धामी न केवल चुनाव का चेहरा हैं बल्कि चुनाव बाद मुख्यमंत्री भी होंगे, यह बयान बदली सियासी तस्वीर की ओर इशारा करता है। यह बदलाव भाजपा के आत्मविश्वास में भी दिख रहा जिसके तहत अब पार्टी को 60 प्लस सीट पर फतह मुमकिन दिख रही। हालाँकि अगर भाजपा सत्ता में दोबारा लौटती है तो यह पहाड़ पॉलिटिक्स में अभूतपूर्व होगा लेकिन धामी की धमक त्रिवेंद्र-तीरथ तक दिखी नकारात्मकता को पाटकर नई उम्मीद पार्टी काडर्स में भर रही है।

पहाड़ की सत्ता: कांग्रेस-भाजपा बारी-बारी भागीदारी

2017 की चुनावी जंग में मोदी सूनामी के सहारे भाजपा ने उत्तराखंड विधानसभा की 70 में से 57 सीट जीतकर न केवल तीन चुनावों से होते आ रहे 31-32 के खेल पर ब्रेक लगाया बल्कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी 2014 की तर्ज पर पांच की पांच सीट जीतकर उस सियासी मिथक को भी तोड़ दिया जिसके तहत यह माना जाता रहा कि ‘एक चुनाव की परफ़ॉर्मेंस दूसरे चुनाव में रिपीट नहीं हो सकती है।’ लेकिन अभी भी एक मिथक भाजपा नेतृत्व की पीठ पर बेताल का भूत बनकर लटक रहा है। वह है अब तक हुए उत्तराखंड विधानसभा के चार चुनावों में बारी-बारी सत्ता भागीदारी यानी पहला चुनाव कांग्रेस तो दूसरा भाजपा फिर कांग्रेस और भाजपा। इस लिहाज से बाइस बैटल में जीत का मिथक कांग्रेस के पाले में खड़ा दिख रहा लेकिन मोदी-शाह रिजीम में भाजपा नामुमकिन को मुमकिन करने का न केवल माद्दा पा चुकी है बल्कि कई राज्यों में उसने अभूतपूर्व नतीजे देकर न केवल विरोधियों के होश उड़ाये हैं बल्कि राजनीतिक पंडितों के आकलन भी औंधे मुँह गिराए हैं।

जब ‘खंडूरी है जरूरी’ नारा हो गया ‘गैर-जरूरी’

इस सब के बावजूद उत्तराखंड की पहाड़ पॉलिटिक्स में जीत का दोहराव ठीक वैसा ही है जैसे खड़ी पहाड़ी पर बिना सहारे चढ़ने की जिद पालना। भला भाजपा से बेहतर इसे और कौन जानता है! आखिर 2012 के देवभूमि दंगल में भाजपा ने ‘खंडूरी है जरूरी’ का नारा भी इसी आस मे बुलंद किया था कि शायद वह फिर सत्ता हासिल कर पाए। लेकिन जनता ने कोटद्वार में ही खंडूरी को ‘गैर-जरूरी’ करार दे दिया और इसी सेनापति की हार के साथ ही जीती हुई बाजी भाजपा हार गई। अब एक बार फिर 2022 में भाजपा 2012 की अपनी अधूरी हसरत को परवान चढ़ते देखना चाह रही है।

धामी की धमक: 60 प्लस का आत्मविश्वास

दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा ने जनरल बीसी खंडूरी के राजनीतिक शिष्य और गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत को त्रिवेंद्र सिंह रावत से मार्च में कुर्सी छीनकर सत्ता का सिरमौर बनाया। लेकिन पार्टी ने जून में हुए रामनगर चिन्तन शिविर में 60 प्लस सीट पर फतह का दम भरते हुए यह जान लिया था कि टीएसआर-1 से टीएसआर-2 तक सत्ता का हस्तांतरण जरूर हो गया लेकिन बाइस बैटल के नतीजे अपने पक्ष में करने लायक हालात नहीं बन पाए हैं। लिहाजा संवैधानिक संकट के हल्ले के बीच भाजपा ने उस चेहरे की तलाश तेज कर दी जो 60 प्लस के सियासी ख़्वाब को हकीकत में बदलने में न केवल मददगार साबित हो बल्कि अगुआ बनकर पार्टी के अगली पीढ़ी के नेतृत्व को नई धार देता भी दिखे।


धामी धो रहे पुराने दाग लिख रहे नई पटकथा

मुख्यमंत्री बनते ही पुष्कर सिंह धामी ने मोदी-शाह ही उस उम्मीद पर खरा उतरने की रणनीति बनाई जिसके तहत कई मठाधीशों को नकारते हुए एक युवा चेहरे की ताजपोशी की गई। धामी ने रोजगार के गंभीर सवाल जिसे त्रिवेंद्र राज में कभी सात लाख रोजगार तो कभी सवा लाख करोड़ के इनवेस्टर्स समिट जैसे जुमलों से मज़ाक़ बनाकर बेरोजगार युवाओं के ज़ख़्मों पर नमक डालने का काम किया, उसे एड्रेस किया। 22 हजार सरकारी खाली पदों को भरने का अभियान छेड़कर धामी ने उन सुप्त अवस्था में चलते आ रहे भर्ती आयोगों को दौड़ाना शुरू किया जो चार-चार साल में फ़ॉरेस्ट गार्ड की एक भर्ती नहीं करा पा रहे थे। हालाँकि धामी को मिले थोड़े वक्त में तमाम सरकारी नौकरियाँ भरने का टास्क अपने आप में बेहद कठिन कार्य है लेकिन तेजी से शुरूआत कराकर वह युवा सीएम के भरोसे को मजबूती जरूर दे चुके हैं। धामी ने त्रिवेंद्र राज में पार्टी और सरकार के बीच की खाई को एक झटके में पाट दिया है। टीएसआर जहां भाजपा कार्यकर्ता छोड़िए विधायकों तक को मुँह नहीं लगाते थे वही आज धामी ने अपने घर और दफ्तर के दरवाजे विधायक छोड़िए काडर और आम जनता के लिए खोल दिए हैं।

जाहिर है चार साढ़े चार साल की नकारात्मकता किसी जादूई छड़ी की तर्ज पर दूर नहीं की जा सकती है और डबल इंजन सरकार से अपेक्षाओं के जो शिखर जनता ने बुने थे उन तक पहुंचना आसान भी नहीं। लेकिन धामी ने अपने 60 दिन में सहज होकर समस्या के हर सेक्टर में मोर्चा लेने के अपने साहसी तेवर दिखाकर पार्टी को अंदरूनी तौर पर 60 प्लस के आत्मविश्वास से लबरेज़ कर दिया है। अगर ऐसा न होता तो मोदी-शाह के विश्वासपात्र केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ख़म ठोककर यह न कहते कि धामी न केवल चुनाव का चेहरा हैं बल्कि चुनाव बाद मुख्यमंत्री भी रहेंगे।

Show More

The News Adda

The News अड्डा एक प्रयास है बिना किसी पूर्वाग्रह के बेबाक़ी से ख़बर को ख़बर की तरह कहने का आख़िर खबर जब किसी के लिये अचार और किसी के सामने लाचार बनती दिखे तब कोई तो अड्डा हो जहां से ख़बर का सही रास्ता भी दिखे और विमर्श का मज़बूत मंच भी मिले. आख़िर ख़बर ही जीवन है.

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!