देहरादून: पु्ष्कर सिंह धामी सरकार 2.0 का शपथग्रहण समारोह न केवल भाजपा की सत्ता में ‘बारी-बारी हिस्सेदारी’ के सियासी मिथक के टूटने का जश्न रहा बल्कि इस मेगा शो के मंच से बिना एक शब्द बोले प्रधानमंत्री मोदी ने 2024 की चुनावी बिसात का संदेश भी दे दिया। प्रधानमंत्री मोदी का न उतराखंड से लगाव नया है और ना वे भाजपा सरकार के शपथग्रहण समारोह में पहली बार आए!
मोदी 2017 में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के शपथग्रहण समारोह के वक्त भी इसी परेड मैदान में नजर आए थे लेकिन इस बार बात जुदा थी। प्रधानमंत्री 2022 का दंगल जीतकर दोबारा सत्ता में आई धामी सरकार के शपथग्रहण में शिरकत करने पहुँचे तो इस बार मंच से डेढ़ साल बाद होने वाले 2024 के चुनावी संग्राम की भूमिका भी लिख गए। यह इस तरह की प्रधानमंत्री मोदी की देहरादून के ऐतिहासिक परेड मैदान में एंट्री से पहले मंच कुछ इस तरह सज चुका था कि यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर करीब एक दर्जन राज्यों के मुख्यमंत्री, कई केन्द्रीय मंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अगवानी को तैयार थे। उसके बाद मंचासीन हुए प्रधानमंत्री मोदी ने बिना बोले अहसास करा दिया कि देवभूमि उत्तराखंड उनके और भाजपा के लिए कितना अहम है।
धामी कैबिनेट 2.0 के शपथग्रहण समारोह में भाजपाई दिग्गजों की फ़ौज उतारकर मोदी ने साफ कर दिया कि राज्य बनने के बाद अगर 22 सालों में भाजपा को दोबारा सत्ता में आने का मौका मिला है तो जनता के इस भरोसे को बनाए रखने के लिए मंच पर भाजपा को न केवल एकसूत्र में दिखना पड़ेगा बल्कि पहाड़ पॉलिटिक्स में यह भी संदेश देना होगा कि महज पांच लोकसभा सीटों वाला छोटा राज्य उत्तराखंड अपने आध्यात्मिक और भौगोलिक महत्व के चलते सत्ताधारी दल के लिए कितना अहम है।
मोदी बखूबी जानते है कि पिछली सरकार में ऐसी कई ख़ामियां रही जिनके आधार पर जनता चुनावी शिकस्त की सजा सुनाने का मन बनाए बैठी थी लेकिन प्रधानमंत्री के साथ पहाड़ की जनता के जुड़ाव ने भाजपा की राह दोबारा आसान कर दी। इसी जुड़ाव ने मोदी को मज़बूर किया कि धामी सरकार के शपथग्रहण को ऐसा मेगा शो बनाया जाए कि इसका असर देर तलक और दूर तलक महसूस होता रहे। आखिर 2024 में अगर भाजपा को लोकसभा की लड़ाई में जीत की हैट्रिक लगानी है तो मोदी मैजिक को बनाए रखना होगा। धामी के मंच पर मोदी ने नेताओं की अपनी पूरी फ़ौज उतारकर उसी रिश्ते को गहरा करने की कोशिश की है।
अब चुनाव जीतकर सत्ता में लौटी भाजपा के चेहरे पुष्कर सिंह धामी के लिए ऐतिहासिक अवसर है तो पहाड़ जैसी चुनौती भी कि वादों को हकीकत की जमीन पर उतारकर दिखाया जाए। न केवल सीएम धामी बल्कि मंत्रिमंडल का हिस्सा बने सतपाल महाराज, प्रेमचंद अंग्रवाल, गणेश जोशी, डॉ धन सिंह रावत, सुबोध उनियाल, रेखा आर्य, चंदन राम दास और सौरभ बहुगुणा के लिए भी कठिन परीक्षा का वक्त है कि जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति के दोबारा मिले अवसर के न गँवाये। अपनी नौ सदस्यीय ‘टीम धामी’ के जरिए मुख्यमंत्री पुष्कर ने ठाकुर, ब्राह्मण और दलित समीकरण के साथ वैश्य वर्ग को भी प्रतिनिधित्व देकर संतुलन साधा है। हालाँकि अभी भी तीन कैबिनेट बर्थ यानी एक चौथाई सरकार रिक्त है। बेहतर होता कि सरकार पूरी शक्ति के साथ कामकाज के मोर्चे पर जुटती लेकिन राजनीति में सबको संतुष्ट करना कहां आसान रहा है।
बिशन सिंह चुफाल जैसे कद्दावर सरकार से दूर हैं तो शपथग्रहण के जश्न के बीच दर्द छलकने लगा है। वहीं किसी ने कहा कि उमेश शर्मा काऊ का ‘गाला लंच पार्टी’ का मेन्यू इस बार धरा रह गया है। रेखा आर्य ने अहसास कराया कि उनकी पहुंच भाजपा में ऊपर तक हैं तभी तो ऋतु खंडूरी कहां सीएम रेस में थी और अब स्पीकर बनना पड़ रहा है। हरिद्वार की कठिन पिच पर पाँचवी जीत के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ‘टीम धामी’ का हिस्सा बनने से चूक गए हैं। ऊधमसिंहनगर में सत्ता विरोधी और किसान आंदोलन की तपिश लू बनकर चली तो धामी से लेकर कई दिग्गज धराशायी हो गए फिर भी बचे रहे अरविंद पांडे मंत्रीपद से महरूम रह गए। ऐसा लगता है कि बंशीधर भगत की चुनाव में बजी कथित ‘ऑडियो बाँसुरी’ ने उनको मार्गदर्शक मंडल की तरफ धकेल दिया। जाहिर है अभी कैबिनेट में रिक्त तीन कुर्सियों को लेकर तेरह में मारामारी है। अगर ऐसा रहा तो कहीं मंत्रिमंडल विस्तार को टीएसआर राज की तर्ज पर लंबा इंतजार न करना पड़ जाए!