जब एक के बाद एक कई राज्यों में मोदी मैजिक बेअसर तब 2022 के देवभूमि दंगल में हरदा को सबके ज्यादा डर मोदी से ही क्यों?
देहरादून (pawan_lalchand): 2017 में प्रदेश की सत्ता पर क़ाबिज़ हरदा बाहुबली बनकर प्रधानमंत्री मोदी को चित करने का दम भर रहे थे। लेकिन कांग्रेस को 11 सीटों पर पहुंचा और खुद दो जगह से शिकस्त खाए हरदा 2022 में ‘दूध का जला छाछ को भी फूँक-फूँक कर पीता है’ वाले अंदाज में दंगल तो दूर अब मोदी से टकराने से भी कतराने लगे हैं। न्यूज 18 को दिए एक इंटरव्यू में हरदा ने अपने भीतर के इस डर का इज़हार इसे नारे के साथ किया है,”नरेन्द्र तुझसे बैर नहीं भाजपा तेरी खैर नहीं”, इंटरव्यू में हरदा इसे कांग्रेस की सोच और रणनीति बताते फिर दोहराते हैं,” मोदी तुझसे बैर नहीं, भाजपा तेरी खैर नहीं।”
जाहिर है ऐसा नारा 2018 के राजस्थान विधासनभा चुनाव में बीजेपी काडर के एक बड़े तबके और जनता में चला था, ‘मोदी तुझसे बैर नहीं वसुंधरा तेरी खैर नहीं’ और इसका नुकसान बीजेपी को सूबे की सत्ता गंवाकर हुआ लेकिन चंद माह बाद 2019 का लोकसभा चुनाव हुआ तो मोदी के नाम पर एक सीट गठबंधन सहयोगी और बाकी 24 सीटें बीजेपी ने जीत ली थी। उसी चुनाव में बीजेपी की राज्य सरकारों को लेकर ऐसी नाराजगी मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी दिखी। लेकिन उत्तराखंड की जनता में बीजेपी सरकार के खिलाफ ऐसा माहौल बने या न बने, उससे पहले ही बाइस को लेकर कांग्रेस कैंपेन कमेटी के चीफ हरीश रावत ने अपनी लाइन स्पष्ट कर दी है। यानी 2017 मे सीएम रहते खुद को बाहुबली के तौर पर पेश कर रहे हरदा अब पांच साल विपक्ष में रहकर भी मोदी मैजिक के सामने चुनावी जंग छिड़ने से पहले ही नतमस्तक हो गए हैं। लेकिन क्या किसी भी तरह 2022 में सत्ता पा जाने की हरदा की यह चाहत उनके अपने नेता राहुल गांधी की पूरी राजनीतिक धार को ही कुंद नहीं करने वाली है?
विपक्षी कैंप से राहुल गांधी इस दौर में इकलौते नेता हैं जो खुलकर प्रधानमंत्री मोदी और केन्द्र सरकार की नीतियों पर सीधा और तीखा हमला बोलते हैं। सत्ताधारी बीजेपी लाख इंकार करे लेकिन कोविड महामारी को लेकर तैयारियों और फिर सुस्त वैक्सीनेशन अभियान पर राहुल गांधी के हल्लाबोल ने मोदी-शाह को सबसे ज्यादा बेचैन किया है। ये भी जाहिर होता जा रहा कि अगर कांग्रेस का ओल्ड गार्ड राहुल गांधी के हमलों की धार भौंथरा न करे तो मोदी सरकार के लिए परेशानी और बढ़े।
खैर अब अपनी सियासत के ढलान काल में हरदा 2022 में मोदी विरोध मोल लेकर आखिरी मौका नहीं खोना चाहते, फिर भले राहुल गांधी की सियासत को ही ठेंगा दिखाना क्यों न पड़ जाए! लेकिन क्या यह उत्तराखंड में विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे हरीश रावत की ‘बिल्ली को देखकर कबूतर के आँख बंद करने’ वाली नीति को उजागर नहीं करता है? क्या यह अकेले हरीश रावत की ख़ुशफ़हमी साबित नहीं होगी अगर वे मोदी-शाह दौर में बीजेपी को अलग करके देख रहे! खासतौर पर चुनावी जंग में मोदी को माइनस कर बीजेपी की चुनावी मशीनरी की तस्वीर गढ़ रहे।
क्या हरदा का ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, बीजेपी की खैर नहीं’ वाला नारा सुनकर बीजेपी थिंकटैंक मुस्कुरा नहीं रहा होगा! आखिर बीजेपी ने तो धामी को लाने से पहने ही रामनगर चिंतन शिविर के दौरान साफ कर दिया था कि प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा आगे कर बीजेपी बाइस में फिर इक्कीस साबित होने को उतरेगी। अब हरदा लाख चाहें कि मोदी से बैर नहीं लेकिन सच यही है कि सत्ता का पहाड़ चढ़ने के लिए कांग्रेस और हरीश रावत को टकराना मोदी से ही पड़ेगा।
ऐसे दौर में जब, एक तरफ राहुल गांधी कहते हैं कि नरेंद्र मोदी ने कोरोना जंग में देश को निराश किया है और यहां भी पहाड़ कांग्रेस का आरोप है कि मोदी-शाह की बीजेपी ने उत्तराखंड को राजनीतिक लेबोरेटरी बना डाला है। क्या तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलकर खुद बीजेपी ने भी यह मैसेज नहीं दिया है कि 2017 के मुकाबले 2022 में उसकी सियासी जमीन बेहद कमजोर हो चुकी है।
फिर 2019 के बाद जिस तरह की राजनीतिक तस्वीर उभरी है उसमें पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने मोदी-शाह ग़ुब्बारे की हवा निकालकर नई सियासी पटकथा लिख दी है। उससे पहले अगर बिहार में ज्यादा टिकटों की जिद और फिर ओवैसी के आगे कांग्रेस कमतर न साबित हुई होती बिहार भी हाथ से निकल गया था। बाइस में जब हरीश रावत के साथ साथ अखिलेश यादव भी यूपी का दंगल लड़ रहे होंगे तब क्या यही नारा देंगे! ममता बनर्जी का उसी मोदी मैजिक को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती देने का साहस नहीं दिखा रही!
क्या अरविंद केजरीवाल ने 2014 और 2019 यानी दो-दो लोकसभा चुनाव में मोदी सुनामी बनने के चंद माह बाद दिल्ली विधानसभा के दंगल में मोदी-शाह ग़ुब्बारे ही हवा नहीं निकाल कर दिखाई! ऐसे में उत्तराखंड में बाइस बैटल से पहले मोदी मैजिक को लेकर हरदा का ‘मोदी तुझसे कोई बैर नहीं बीजेपी तेरी खैर नहीं’ नारा रक्षात्मक कम और सरेंडर दांव ज्यादा लग रहा है। आखिर अगर सूबे पर पैराशूट सीएम थोपे गए तो इसकी ज़िम्मेदारी मोदी-शाह की ही मानी जाएगी या इसके लिए किस बीजेपी को दोष देने जाएंगे हरदा!
आखिर 2014 के बाद मोदी-शाह माइनस बीजेपी है कहां! बाइस में कांग्रेस के सामने बीजेपी कैंप से सबसे अग्रिम पंक्ति से हमलावर मोर्चा मोदी-शाह नही संभालेंगे तो क्या त्रिवेंद्र-तीरथ-धामी की तिकड़ी जीत दिलाने उतरेगी, हरगिज नहीं! बाइस बैटल में अभी से घबराए और सत्ता के लिए ललचाए हरदा के लिए चुनौती अकेले मोदी ही होंगे। लिहाजा बाइस में सत्ता का सपना देख रहे हरदा को समय रहते समझ लेना होगा कि मुकाबला तो मोदी से ही होना है फिर चाहे आँखें बंद कर लें संभावित चुनौती से या फिर हार-जीत भूलकर राहुल गांधी की तर्ज पर लड़ाई लड़ने उतरें।