अड्डा In-depth: हरदा के लिए इतना भी आसान नहीं चकराता के चैंपियन से सरेंडर करा पाना!

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दिल्ली/ देहरादून: कांग्रेस राजनीति की ये पुरानी परिपाटी रही है कि चुनावी जंग में सियासी दुश्मन से टकराने से पहले घर के उन ‘अपनों’ से हिसाब-किताब चुकता कर लिया जाए जो कल को सत्ता आ जाए तो रास्ते का रोड़ा बन सकते हों। नेता प्रतिपक्ष के बहाने उत्तराखंड कांग्रेस में इन दिनों यहीं चल रहा हैं। नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा ह्रदयेश के आकस्मिक निधन ने म्यान में रखी शमशीरें हरदा और प्रीतम के हाथ में फिर से थमा दी हैं। ये इंदिरा का ही दम था कि भले हरदा कैंप उनको हल्द्वानी सीट की नेता करार देता रहा लेकिन उनकी प्रीतम के साथ राजनीतिक जुगलबंदी ने हरीश रावत को गुज़रे साढ़े चार सालों में सूबे की सियासत में पार्टी पर हावी होने का अवसर नहीं दिया।

यहां तक कि पार्टी आलाकमान को भी इसका अहसास खूब रहा कि अगर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पहाड़ पॉलिटिक्स के लिए फ्री छोड़ दिए गए तो नए प्रदेश नेतृत्व के सामने संकट बना रहेगा। लिहाजा पहले असम प्रभार और फिर उत्तराखंड के साथ जिस पंजाब राज्य में चुनाव होने हों वहां का ज़िम्मा सौंपकर मैसेज दे दिया कि पहाड़ पॉलिटिक्स में बाइस बैटल को लेकर पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व हरदा की किस तरह की भूमिका ज़ेहन में रखे बैठा है। दरअसल हाईकमान को क़रीने से ये बताया गया कि न केवल 2017 में कांग्रेस की शर्मनाक हार के अकेले ज़िम्मेदार हरीश रावत हैं बल्कि 18 मार्च 2016 को हुई बड़ी टूट और उसके बाद चुनाव से पहले दलित चेहरे व सबसे लंबे समय तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे यशपाल आर्य भी हरदा की चुनावी रणनीति से रूष्ट होकर बीजेपी चले गए।


बहरहाल अब इंदिरा के जाने के बाद हरदा बखूबी जानते हैं कि अकेले प्रीतम उनका रास्ता बहुत देर तक नहीं रोक पाएंगे और आलाकमान के लिए भी अब ‘हरदा है जरूरी’ की थ्योरी से बचे रहना कठिन चुनौती होगा। लिहाजा नेता प्रतिपक्ष के चुनाव के बहाने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह से दो-दो हाथ कर बाइस बैटल से पहले अपने रास्ते का आखिरी सियासी रोड़ा भी हटा लेना चाह रहे हैं। लेकिन पहाड़ पॉलिटिक्स में ‘चकराता के चैंपियन’ प्रीतम भले प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर वो छाप न छोड़ पाए हों कि कांग्रेस सत्ता में वापसी को आश्वस्त हो जाए लेकिन हरीश रावत के साथ जंग में इंदिरा के जाने के बावजूद वह कमजोर पड़ते कतई नहीं दिखना चाह रहे।

यही वजह रही कि हरदा के तमाम दांव-पेंच के बावजूद न प्रीतम अध्यक्ष पद छोड़ रहे और न नेता प्रतिपक्ष पर संतोष करने को तैयार हैं। खबर यहां तक उड़ रही कि प्रीतम सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ने की स्थिति में न नेता प्रतिपक्ष न कोई और पद लेने से इंकार कर दिया है। मतलब साफ है हरदा प्रदेश में अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष अपनी मर्ज़ी का चाह रहे तो प्रीतम भी पीछे हटने को तैयार नहीं। वन लाइनर रिज्यॉलुशन जरूर सोनिया गांधी को भेज दिया गया है लेकिन चुनाव से पहले हरदा वर्सेस प्रीतम जंग की लकीर लंबी खींच चुकी है।


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