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ADDA IN-DEPTH गुजरात फ़ॉर्मूला देखकर उत्तराखंड के कई भाजपाई दिग्गज सदमे में, जानिए अगर ऐसा हुआ तो कई खाँटी और कई कांग्रेसी गोत्र वाले बैठेंगे घर

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DEHRADUN: 2017 में 70 में से 57 सीट जीतकर तीन-चौथाई ताकत पाने वाली भाजपा बाइस बैटल में उतरते कई सिटिंग विधायकों के टिकट काट सकती है! इसका इशारा बीजेपी नेतृत्व भी कर चुका और अपने दौरे में जेपी नड्डा ने भी विधायकों की परफ़ॉर्मेंस को टिकट पाने का आधार बताकर संकेत दे दिए थे। हारते दिख रहे विधायकों-सांसदों के टिकट काटकर नए चेहरों को मौका देने वाले मोदी-शाह का चुनावी दांव कई राज्यों में कामयाब रहने से इसके उत्तराखंड में आज़माने की पूरी संभावना है। जाहिर है पार्टी के सिटिंग विधायकों को भी इस बात का बखूबी अहसास है। लेकिन गुजरात में जिस तरह से मुख्यमंत्री पद से विजय रुपाणी की छुट्टी की गई और फिर पुराने मंत्रियों को भी ड्रॉप कर नए सीएम भूपेन्द्र पटेल को नए मंत्रियों की टीम मिली है, उसने चुनावी दहलीज़ पर खड़े उत्तराखंड के भाजपाई विधायकों, खासकर भारी-भरकम मंत्रियों के होश उड़ा दिए हैं।


दरअसल भाजपा के सामने बाइस बैटल में सत्रह के संग्राम जैसे प्रचंड बहुमत को दोहराने की चुनौती है तो राज्य का अब तक का पॉलिटिकल डीएनए यह रहा कि यहाँ चार चुनाव कांग्रेस-भाजपा में बारी-बारी भागीदारी वाले रहे हैं। इस लिहाज से सत्ता वापसी का पहाड़ सरीखा भाजपा के कंधों पर है और दो-दो मुख्यमंत्री की छुट्टी कर तीसरा मुख्यमंत्री बनाना दीवार पर लिखी इबारत की तरह भाजपा के भीतर घर कर चुके डर को दर्शा रहा है। ऐसे में गुजरात में एक हफ्ते में जिस तरह से राजनीतिक हालात ने करवट बदली है उसने उत्तराखंड भाजपा के कई क़द्दावर मंत्रियों-विधायकों से लेकर पहली बार टिकट पाकर विधानसभा पहुँचे युवा विधायकों को सकते में डाल दिया है।


खासकर बुजुर्ग होते कई भाजपाई दिग्गजों में जिनकी जीत पर पार्टी नेतृत्व को जरा भी संदेह होगा उनको बाइस बैटल में उतारने की बजाय घर बिठाया जा सकता है। लेकिन जिताऊ वरिष्ठ विधायक को फिर उतारने से भी पार्टी गुरेज़ नहीं करेगी। इसके अलावा ऐसे युवा विधायक जो पहली बार जीते लेकिन जमीन से कनेक्ट नहीं हो पाए उनके टिकट पर कैंची चल सकती है। लेकिन सबसे गुजरात मॉडल के बाद ज्यादा हल्ला भाजपा के कांग्रेसी गोत्र के कई नेताओं में देखा जा सकता है। कैबिनेट मंत्री डॉ हरक सिंह रावत और पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की जुबानी जंग इसी दबाव का असर हो सकती है।

भाजपा कॉरिडोर्स में अक्सर इसे लेकर हल्ला रहता है कि सरकार में कांग्रेसी बैकग्राउंड वाले नेताओं का दबदबा है और अगर 2022 में पार्टी को दोबारा सत्ता मिलेगी तो खाँटी भाजपाईयों को सरकार में ज्यादा हिस्सेदारी का मौका मिलेगा। वैसे भी 2016 की बगावत के बाद पार्टी नेतृत्व के साथ कांग्रेसी गोत्र के नेताओं का कमिटमेंट पांच साल के लिए था और अब अगर भाजपा बाइस बैटल जीतती है तो बाकी नेताओं की तरह मेरिट और समीकरण के आधार पर सत्ता में हिस्सेदारी मिलेगी। शायद हरक सिंह रावत और दूसरे नेताओं की चिन्ता भी यही हो!

वैसे भी भाजपा ने उत्तराखंड मे 60 प्लस सीट यानी 2017 से बड़ी जीत का टारगेट तय किया है जो बताता है कि पार्टी बड़े बहुमत के साथ सरकार बनाकर किसी भी तरह के दांव-पेंच खेलने से गुरेज़ नहीं करेगी और चार माह में तीन सीएम बदलकर वह अपने इरादों का इज़हार पहले ही कर चुकी है।


ऐसे में पहली लड़ाई तो टिकट पाने को लेकर लड़नी होगी और जीत गए व सरकार बनी तो मंत्रीपद को मोदी-शाह के गुजरात जैसे किसी चौंकाने वाले फ़ॉर्मूले के लिए भी तैयार रहना होगा।

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