ADDA IN-Depth: उत्तराखंड में साल के शुरू में जो चुनावी चमत्कार हुआ, जिसने ‘बारी-बारी भागीदारी’ के रिवाज को पलटकर बीजेपी को दोबारा सत्ता शिखर पर बनाए रखा, मोदी-शाह को पक्के तौर पर यकीन था कि साल के आखिरी में ही रही अंतिम बैटल में पड़ोसी हिमाचल प्रदेश में भी इसे आसानी से दोहरा दिया जाएगा। लेकिन शायद पहाड़ी प्रदेश होकर भी अलहदा मिजाज रखने वाले इस हिमालयी सूबे की जनता मन बनाकर बैठी थी कि वह 1985 से चली आ रही ‘राज बदलने की रवायत’ नहीं बदलेगी।
अब सवाल है कि हिमाचल चुनाव का उत्तराखंड के लिए क्या संदेश है क्योंकि सत्ताईस की लड़ाई भले दूर हो पर चौबीस की चुनौती अब साल भर के फासले पर आ चुकी है। यानी हिमाचल का मैसेज जितना बड़ा बीजेपी और कांग्रेस के लिए दिखता है उससे कहीं अधिक बड़ा मैसेज मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और दो-दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए है।
सबसे पहले बात अगर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजों से निकले मैसेज की करें तो उनके लिए ये रिजल्ट राहत के साथ-साथ राजनीतिक रण तेज हो का संदेश लेकर आया है। मुख्यमंत्री धामी को समझ लेना चाहिए कि हिमाचल के निवर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर खुद 76 फीसदी से अधिक वोट लेकर चुनाव जीत गए लेकिन पार्टी शिकस्त खा बैठी। सीएम धामी भी भले खटीमा हार गए थे लेकिन चंपावत उपचुनाव में उनकी जीत का आंकड़ा ऐतिहासिक रहा था जब 93 फीसदी वोट उनकी मिले।
जयराम ठाकुर भी पुष्कर सिंह धामी की तरह सरल और सादगी पसंद रहे लेकिन राजनीतिक जमीन पर अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रहे। हिमाचल की राजनीति में वे महज ‘Man of Nadda’ यानी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के करीबी ही दिखाई दिए। यही से ये सवाल युवा सीएम धामी के सामने भी खड़ा होता है कि क्या वे जयराम ठाकुर द्वारा की गई गलती से सबक लेकर सरकार और सियासी लिहाज से अपनी अलग छवि गढ़ पर रहे हैं जिसका बेनिफिट उनको अपने विरोधियों की हर चाल नाकाम करने में मिल सके? Dhami Govt 2.0 का हनीमून पीरियड अब ओवर हो चुका है और क्या उस लिहाज से राज काज के मोर्चे पर उनकी छवि धाकड़ मुख्यमंत्री की छवि तैयार हो पा रही है या फिर “धाकड़ धामी” महज मीडिया जनित अनुप्रास अलंकार का बहुधा हो रहा प्रयोग भर है?
मुख्यमंत्री धामी को अब अफसरशाही को 10 से 5 ड्यूटी फॉर्मेट से बाहर आने का संदेश ही देते रहने की बजाय ऐसा न होता देख सख्ती का हंटर भी चलाते दिखना होगा। वरना अधिकारी किस तरह का फर्जीवाड़ा कर रहे यह पीडब्ल्यूडी में मंत्री महाराज के कारिंदों की कलाकारी से दिख गया है।
हिमाचल की जनता ने जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस इमोशनल कनेक्ट स्थापित करने के प्रयास को नकारा है जिसके तहत उन्होंने ठीक वोटिंग से पहले सोलन की एक रैली में कहा था,”आप किसी को याद मत रखो, बस याद रखो कि आपको कमल के फूल पर वोट देना है। अगर वोट डालते आपको कमल का फूल दिखता है तो समझिए यह बीजेपी है, यह मोदी है जो आपके पास आया है। आपका कमल के फूल को दिया हर वोट सीधे आशीर्वाद के रूप में मोदी के खाते में जमा हो जाएगा।” लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का भावुकता का पुट लिए दिया गया ये और ऐसे अन्य संबोधन हिमाचल के वोटर को लुभा नहीं पाए। जाहिर है जयराम सरकार से नाराजगी ऐसी रही कि लोकसभा चुनाव में मोदी के साथ खड़ी रही जनता विधानसभा चुनाव में किनारा कर गई।
उत्तराखंड की राजनीतिक जमीन पर आगे का रास्ता सीएम धामी के लिए अब बहुत आसान नहीं रहने वाला है। इतना जरूर है कि हिमाचल में जयराम ठाकुर रिप्लेस नहीं किए जा सके और उत्तराखंड में TSR 1 और TSR 2 से नाराजगी को धामी धो पाए जिसने बीजेपी के खिलाफ उत्तराखंड में सत्ता विरोधी माहौल कंट्रोल कर डाला, इसलिए आलाकमान इसका आकलन जरूर करेगा कि धामी की धमक जरूर मददगार रही। लेकिन आगे विरोधी यह नैरेटिव भी सेट करेंगे कि चौबीस की चुनौती फतह करने को उत्तराखंड में तोड़ा फोड़ी कराई जाए। जाहिर है इसके लिए धामी को कमर कस कर मोर्चे पर अभी से जुटना होगा। खाली मंदिर मंदिर दर्शन भ्रमण अब बहुत मददगार नहीं साबित होगा।
अंकिता भंडारी हत्याकांड, बैकडोर भर्तियों का जंजाल और UKSSSC पेपर लीक कांड में “हाकमों” से लेकर आरबीएस जैसों पर अदालती रुख आने वाले दिनों में राजनीतिक संकट घटा बढ़ा सकता है। लिहाजा इस मोर्चे पर मुख्यमंत्री को डटे दिखना होगा। कुछ घटनाओं के बाद लॉ एंड ऑर्डर का मुद्दा विरोधी निर्मित कर चुके हैं जिसमें घी डालने का काम पूर्व सीएम TSR जैसे घर के दिग्गज जब तब करते रहते हैं। जाहिर है हिमाचल की जंग नतीजों के बाद खत्म हो चुकी है लेकिन उत्तराखंड की सियासत में अब 2024 के मद्देनजर एक दांव पेंच का वॉर अंदरूनी तौर पर तेज हो जाएगा। धामी को पहले चुनौती बलूनी और TSR जैसे खिलाड़ियों से ही थी, अब स्पीकर ऋतु खंडूरी भी एक मोर्चे पर आन खड़ी हुई हैं, उनको नजरंदाज करना भारी पड़ सकता है। ऋतु के पीछे सत्ता से महरूम गढ़वाल क्षेत्र का एक बड़ा धड़ा लामबंद होने को आतुर है।
हिमाचल नतीजे एक संदेश TSR को भी देकर गए हैं। जयराम के जरिए हिमाचल ने बीजेपी का जो हाल हुआ उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत नए सिरे से समझ सकते हैं कि उनको रिप्लेस कर बीजेपी ने उत्तराखंड में क्या हासिल कर लिया जिससे वह पड़ोसी राज्य में चूक गई।
अब बात हिमाचल में चुनावी जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस के दिग्गज नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के लिए ही है। हरीश रावत को इन नतीजों के बाद बखूबी समझ आ चुका होगा कि उत्तराखंड में राजा साहब की अनुपस्थिति में कांग्रेस ने ब्रांड मोदी के आगे घुटने न टेक स्थानीय मुद्दों को ढाल बनाकर जंग जीत ली है। हरदा, प्रीतम सिंह, देवेंद्र यादव और दूसरे नेताओं को बैठकर अब पड़ताल कर लेनी चाहिए कि आखिर वे कहां चूक गए। साथ ही हरिद्वार से 2024 में चुनावी ताल ठोकने को भागदौड़ कर रहे हरदा को भी देख लेना चाहिए कि सीट बंटवारे से लेकर खुद के चुनाव तक विधानसभा चुनाव में उनका और प्रीतम कैंप का “प्यार” किस तरह से छलकता दिखा, अब क्या उसका दोहराव फिर दिखेगा!