मंत्री महाराज! आपके विभाग का सड़कों से ज्यादा बुरा हाल, सड़कों पर ठेकेदार विभाग में कारिंदे कर रहे ‘फर्जी’वाड़ा

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Uttarakhand News: हिमाचल प्रदेश के नतीजे देखकर जागिये सरकार! या फिर चौबीस की चुनौती में चारों खाने चित होकर ही चेतेंगे? यूं तो हर राज्य के चुनाव पर वहां के स्थानीय मुद्दों का ही असर रहता है लेकिन कई बार नतीजे हवाओं के बदलते रुख का संदेश दे जाया करते हैं। उत्तराखंड भाजपा की पुष्कर सिंह धामी की अगुआई वाली सरकार को हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद अपनी चाल ढाल दुरुस्त कर लेनी होगी। खासतौर पर सतपाल महाराज जैसे मंत्रियों के विभागों का हाल मुख्यमंत्री को समय रहते ले लेना होगा।

सबसे पहले मंत्री सतपाल महाराज ही क्यों? तो इस सवाल का जवाब खुद मंत्री महाराज की कसरतबाजी से मिलता है। कहने को सतपाल महाराज पिछले छह साल से मुख्यमंत्री कोई भी रहा हो उन्होंने हर बार नंबर दो पर ही शपथ ली,सिर्फ यह मैसेज देने के लिए कि भले उनको मुख्यमंत्री न बनाया गया हो लेकिन मंत्रियों में वे अग्रिम पंक्ति में सबसे आगे खड़े हैं। सवाल है मंत्री महाराज का सरकार में नंबर दो होना सूबे के लिए कितना कारगर रहा?

कहने को पिछली सरकार में जब तीरथ सिंह रावत को हटाकर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया तो युवा सीएम के साथ काम करने में खुद को असहज दिखा रहे महाराज पीडब्ल्यूडी मंत्रालय पाते ही कोपभवन से बाहर आ गए थे और शपथ ले ली थी। इस सरकार में भी लोक निर्माण विभाग उन्हीं के पास है लेकिन सड़कों पर गुणवत्तापरक कामकाज को लेकर विभाग में कितनी अंधेरगर्दी मची है इसके दो ताजा उदाहरण सामने हैं। एक तो खुद सतपाल महाराज कितने अंधेरे में काम काम कर रहे उसका अहसास उन्हीं के निजी सचिव आईपी सिंह और PWD के प्रमुख अभियंता अयाज अहमद करा देते हैं।

महाराज के विभागों से इतर अन्य कामों में बिजी रहने का नतीजा है या फिर वजह कुछ और! मंत्री महाराज को अपने निजी सचिव और पीडब्ल्यूडी विभागाध्यक्ष अयाज अहमद पर मुकदमा दर्ज कराना पड़ा है।

जरा सोचिए मंत्री के नाते सतपाल महाराज कितने बेपरवाह या सोए रहे कि उन्हीं के निजी सचिव आईपी सिंह ने उनके फर्जी हस्ताक्षर कर प्रमुख अभियंता अयाज अहमद को पीडब्ल्यूडी चीफ पद पर काबिज करा दिया। क्या ये मंत्री महाराज की भी घोर गफलत नहीं कि फर्जी हस्ताक्षर के सहारे मंत्री का अनुमोदन पाकर अयाज अहमद पीडब्लूडी चीफ बनकर कामकाज करने लगे?

अब मंत्री महाराज के जनसंपर्क अधिकारी कृष्ण मोहन ने SSP को शिकायत कर बताया है कि इस साल मई में मंत्री विदेश दौरे पर थे उस दौरान पीडब्ल्यू चीफ के लिए प्रमुख अभियंता अयाज अहमद का ऑनलाइन प्रस्ताव आया था जिस पर मंत्री को हस्ताक्षर कर मुख्यमंत्री को फाइल अनुमोदन को भेजनी थी। महाराज 14 मई को लौटे तो आराम करने निजी आवास पर ही रह गए और 15 मई को संडे के दिन भी निजी आवास पर आराम करते रहे।

उधर निजी सचिव आईपी सिंह आधिकारिक आवास गए और बिना मंत्री से मंत्रणा किए अनाधिकृत रूप से अयाज अहमद की ऑनलाइन प्रस्ताव संबंधी फाइल पर उनके फर्जी तरीके से हस्ताक्षर कर डाले। इस तरह मंत्री से अनुमोदित हुई फाइल पीडब्ल्यूडी के प्रमुख सचिव के पास पहुंची और शासन ने मंत्री का अनुरोध मान इस फाइल को मुख्यमंत्री के पास भेज दिया। और यहां से अनुमोदन होते ही अयाज अहमद पीडब्ल्यूडी का चीफ बना दिया गया। अब आईपी सिंह और अयाज अहमद के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और आईटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।

सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि कहने को भारी भरकम मंत्री सतपाल महाराज किस कदर विभागीय घड़ियालों के आगे बेबस और लापरवाह नजर आ रहे हैं। आखिर यह क्या आसान बात है कि एक मंत्री के फर्जी तरीके से हस्ताक्षर हासिल कर उन्हीं के विभाग में एक जालसाज इंजीनियर PWD का विभागाध्यक्ष ही बन बैठा और इतने दिन कामकाम भी करता रहा।

क्या यह महज इकलौता मामला रहा, जहां मंत्री महाराज के हस्ताक्षर फर्जी तरीके से इस्तेमाल किए गए? सिर्फ आईपी सिंह और अयाज अहमद की धोखाधड़ी तक ही जांच सीमित न रखते हुए क्यों न मंत्री महाराज सहित अन्य मंत्रियों के यहां घुसे बैठे आईपी सिंह और अयाज अहमद जैसे घड़ियालों को नहीं खोज लिया जाना चाहिए?

दूसरा मामला पीडब्ल्यूडी मंत्री सतपाल महाराज द्वारा पौड़ी गढ़वाल जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 121 के अंतर्गत बीरोंखाल और थैलीसैण में बन रही सड़क पर घटिया डामरीकरण के बाद करीब 10 किलोमीटर तक सड़क उखाड़कर दोबारा बनाने के निर्देश देने से संबंधित है। यह तो स्थानीय लोगों द्वारा सड़क के नाम पर घटिया डामरीकरण को लेकर हल्ला मचाने का असर रहा कि मंत्री महाराज की नींद टूटी और मानकों के अनुसार दोबारा सड़क बनाने के लिए उनको राष्ट्रीय राजमार्ग अफसरों को कहना पड़ा। वरना वे खुद पीडब्ल्यूडी मंत्री हैं और राज्य में मैदान से लेकर पर्वतीय क्षेत्र में उनके विभाग की सड़कों की हालत किसी से छिपी नहीं है।

बड़ा सवाल है कि आखिर कब तक सतपाल महाराज जैसे कद्दावर मंत्री फर्जी हस्ताक्षर कराकर ठगी का शिकार होते रहेंगे? जब मंत्री महाराज तक फर्जी हस्ताक्षर को धोखाधड़ी के पीड़ित ही चुके और उनके निजी सचिव से लेकर जिस विभाग को वे हेड कर रहे उसमें एक प्रमुख अभियंता एचओडी बनकर बैठ जाता है। आखिर इस तरह की गफलत उच्च स्तर पर हो रही है तब धरातल पर सड़कों के हाल समझे जा सकते हैं।

सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि अगर बिना मंत्री महाराज के अनुमोदन के यानी फर्जी हस्ताक्षर के सहारे अयाज अहमद पीडब्ल्यूडी चीफ बन बैठा तो आखिर उनकी नींद टूटने में सात-आठ महीने कैसे लग गए? क्या लोक निर्माण विभाग में धोखाधड़ी और गड़बड़ियों पर इस अंदाज में मंत्री महाराज एक्शन ले रहे हैं? अगर यह हाल है तो क्या इसका मतलब यह नहीं कि महाराज के विभाग भगवान भरोसे चल रहे?

आखिरी सवाल यह भी कि क्या मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी साहस दिखाकर मंत्री महाराज से पूछेंगे कि यह अंधेरगर्दी का कौनसा खेल चल रहा है उनके विभागों में? आखिर मंत्री महाराज के विभाग से फर्जी हस्ताक्षर वाली फाइल शासन से हो मुख्यमंत्री तक भी तो पहुंची!

वैसे भी पीडब्ल्यूडी विभाग की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। कहां तो महाराज राज्य को चमचमाती सड़कें देने का दम भर रहे थे और कहां ठेकेदारों की खुली लूट के बाद स्थानीय जनता हल्ला मचाने लगी और मुद्दा सोशल मीडिया में वायरल हुआ तो घटिया डामरीकरण उखड़वाने को भी अपनी उपलब्धि बता रहे हैं।

मंत्री महाराज ने यही हाल टूरिज्म विभाग का कर दिया है, जहां सपने तमाम धार्मिक और पौराणिक सर्किट बनाने से लेकर नए टूरिस्ट डेस्टिनेशन डेवलप करने के दिखाए गए। लेकिन हाल यह है कि एक अदद नया टूरिस्ट डेस्टिनेशन बीते छह सालों में वे तैयार नहीं कर पाए। मगर मंत्री महाराज से इन सबको लेकर सवाल करे तो कौन करे!


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