देहरादून: वोटिंग और काउंटिंग में लंबे गैप ने राजनीतिक दलों को खूब मौका दे दिया है हार-जीत के तमाम समीकरणों के जोड़-घटा करना का। लेकिन अब जब काउंटिंग का वक्त करीब आता जा रहा है तब सियासी दलों के गणित भी गड़बड़ाते दिख रहे और अपनी-अपनी जीत के दावे भले ठोके जा रहे हों लेकिन अंदर ही अंदर एक बेचैनी और उधेड़बुन साफ दिख रही है। इसी वजह है बाइस बैटल में वोटर का साइलेंट नजर आना।
सत्रह संग्राम में नतीजों से पहले ही अंजाम की कहानी समझ आने लगी थी भले भाजपा 57 सीटें जीतेगी यह किसी ने कल्पना न की हो लेकिन 40 प्लस सीटों को लेकर खूब बात होने लगी थी। इसकी बड़ी वजह यह भी थी कि जिस तरह से 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड में मोदी मैजिक चला उसको सत्रह में भी दोहराव के संकेत दिखने लगे थे। ऊपर से दर्जनभर नेताओं की टूट ने ठीक चुनाव से पहले कांग्रेस को बड़ा झटका दे दिया था। लेकिन बाइस बैटल में हालात ठीक उलट दिखे।
2022 का चुनाव जीत सत्ता में ‘बारी-बारी भागीदारी’ के सियासी मिथक को तोड़ने मैदान में उतरी भाजपा के पक्ष में 2014, 2017 या 2019 जैसी मोदी लहर तो गायब थी ही, तीन-तीन मुख्यमंत्री बदल चुकी पार्टी के लिए एंटी इनकमबेंसी से पार पाने की पहाड़ जैसी चुनौती भी थी। लेकिन बावजूद इसके पिछली बार भाजपा के पक्ष में जो लहर बनी थी, वैसा ही माहौल कांग्रेस के पक्ष में बन गया हो, ऐसा भी स्पष्ट तौर पर नहीं दिखा। यानी भाजपा सरकार से नाराजगी के बावजूद वोटर मुखर न होकर साइलेंट दिखा इसने भाजपा की टेंशन तो बढ़ा ही रखी है, कांग्रेस भी जीत के दावे के साथ साथ बेचैन नजर आ रही है।
कहने को भाजपा ने चुनाव में ‘अबकी बार 60 पार’ का नारा दिया। हालाँकि बाद में चुपके से इस नारे से किनारा भी कर लिया लेकिन जब, तब जोर देकर मीडिया ने पूछा तो सीएम पुष्कर सिंह धामी ने 60 सीट जीतने का दावा दोहराया। लेकिन अब अंदरूनी आकलन में भाजपा में दो थ्योरी चल रही हैं। THE NEWS ADDA पर एक भाजपा नेता ने कहा कि या तो हम 42 सीटें जीतेंगे या फिर 22 पर ही अटक जाएंगे। एक और भाजपा नेता ने या तो 26 या 37 सीटें जीतने का गणित पेश किया है। जबकि सूत्रों ने THE NEWS ADDA पर खुलासा किया है कि पिछले दिनों वोटिंग होने के बाद एक वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलने गए थे। अमित शाह ने प्रदेश भाजपा दिग्गज को आश्वस्त किया कि भाजपा 38 सीटें जीतकर सरकार बना रही है।
जबकि कांग्रेस कैंप की बात करें तो वैसे तो तमाम कांग्रेसी नेता और दिग्गज पूरे जोश में सरकार बनाने का दम भर रहे हैं। पूर्व सीएम हरीश रावत 48 प्लस और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह 45 प्लस सीटों पर जीत के साथ सरकार बनाने का दावा ठोक रहे। प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल से लेकर बाकी नेता भी कंफ़रटेबल जीत का ख़म ठोक रहे हैं। बावजूद इसके अंदरूनी तौर पर भाजपाई दावों के बीच कॉन्फ़िडेंस गड़बड़ाता भी दिखता है। THE NEWS ADDA पर एक कांग्रेसी नेता ने समीकरण रखा कि जिस तरह से सत्ता विरोधी लहर दिखी उसके बाद आराम से 40 प्लस सीट जीत रहे लेकिन भाजपा नेता जिस तरह से हरदा से लेकर तमाम कांग्रेसी दिग्गजों को संकट में बता रहे अगर ऐसा है तो 26-27 सीटों पर ही न अटक जाएँ!
दरअसल, कांग्रेस हो या भाजपा बड़ी जीत के दावों के बीच चुनाव फंसने की जिस बेचैनी से जूझ रहे हैं, उसकी बड़ी वजह साइलेंट वोटर को समझा जा रहा है। वोटर्स की चुप्पी तमाम दावों के बीच अंदर ही अंदर दलों को सहम जाने को मजबूर कर दे रही। यही वजह है कि भाजपा हो या कांग्रेस सबसे पहले तो अपने-अपने बाग़ियों तक प्यार-दुलार भेजने का सिलसिला शुरू हो चुका है ताकि अगर सत्ता का समीकरण निर्दलीयों के भरोसे बने तो उसके कील-काँटे दुरुस्त किए जा सकें। साथ ही यह भी खबर है कि बसपा के जीतते दिख रहे दो-तीन प्रत्याशियों तक भी दोनों तरफ के संदेशवाहक एक दौर की बातचीत कर आए हैं।
जाहिर है अपनी-अपनी जीत के बड़े दावों की बीच कहीं न कहीं एक गहरी ख़ामोशी है जिसको साइलेंट वोटर ने बेचैनी की हद तक बढ़ा दिया है।इस बेचैनी को यह तथ्य भी बढ़ा रहा कि पिछली बार 24 सीटों पर हार जीत का अंतर पांच हजार वोटों से भी कम था और उसमें भी करीब 10 सीटें ऐसी हैं जहां हार-जीत दो हजार वोटों से भी कम अंतर से हुई थी। यही वजह है कि अब पोस्टल बैलेट से नई उम्मीदें दिखने तो किसी को झटके की फ़िक्र होने लगी है।