देहरादून: हरदा और हरक का प्रेम भी पुराना ठहरा, सियासी बैर तो खैर है ही पुराना! फिर चाहे 18 मार्च 2016 की बगावत हो या उससे पहले विजय बहुगुणा के सीएम बनने पर हरक का थोड़े दिन ही सही हरदा कैंप में चले जाना रहा हो।हरदा और हरक सियासत में मुहब्बत और अदावत को सिक्के के दो पहलुओं की तरह आज़माते रहे हैं। आजकल एक बार फिर दोनों में कभी इशारों-इशारों में तो कभी खुलकर जुबानी वार-पलटवार हो रहा है। एक तरह पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत मीडिया को मार्च में सत्ता से हटाए गए पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ख़ूबियां गिना रहे हैं तो दूसरी तरफ मंत्री हरक सिंह रावत दोनों पर हमला बोल रहे हैं।
हरीश रावत भी टीएसआर की तारीफ इस अंदाज में कर रहे कि तारीफ भी हो जाए और 2016-17 में कांग्रेस से बगावत करने वालों को चोट भी गहरी लगती रहे। तभी तो हरदा ने कहा कि त्रिवेंद्र रावत एक सामान्य उत्तराखंडी की तरह स्पष्टवादी नेता हैं और चार साल उज्याड़ू बल्दों (उज्याड़ू बल्दों से हरदा का आशय 2016-17 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए विजय बगुगुणा से लेकर हरक सिंह रावत जैसे नेताओं से हैं) पर लगाम कसकर रखते थे,जो क़ाबिले तारीफ़ है लेकिन यही उज्याड़ू बल्द आखिर में उनकी कुर्सी छिनवा देते हैं।
हरदा के वार पर अब कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने न्यूज 18 को दिए एक इंटरव्यू में पलटवार कर दिया है। हरक सिंह रावत ने भी एक तीर से दो निशाने साधे हैं। हरक सिंह ने ढेंचा बीज घोटाले का जिन्न फिर से बोतल से बाहर निकालते हुए बड़ा बयान दिया है कि हरीश रावत मुख्यमंत्री रहते त्रिवेंद्र सिंह रावत को जेल भेजना चाहते थे लेकिन उन्होंने मंत्री के नाते टीएसआर की तारीफ में दो पेज की नोटिंग भेजकर जेल जाने से बचाया। हरक ने कहा है कि हरदा एम्स में गर्दन का इलाज कराते समय डेढ़ महीने ढैंचा बीज घोटाले की फाइल अपने सिरहाने तकिए के नीचे दबाए रहे लेकिन टीएसआर के समर्थन में उनकी नोटिंग ने बचा लिया। हरक ने कहा कि अगर भ्रष्टाचार के आरोप में त्रिवेंद्र रावत की जेल हो जाती तो क्या वे 2017 में मुख्यमंत्री बन पाते।
जाहिर है मंत्री हरक सिंह रावत ने जहां ढैंचा बीज घोटाले का जिन्न बोतल से निकालकर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को असहज करने की कोशिश की है, वहीं हरीश रावत पर आरोप लगाकर ‘उज्याड़ू बल्द’ बयान पर पलटवार भी किया है। हालाँकि टीएसआर ने अब हरक के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि ढैंचा बीज की फाइल की फोटो कॉपी सचिवालय के चारों तरफ चिपका दें और जनता खुद फैसला कर लेगी कि भ्रष्टाचार हुआ कि नहीं हुआ।
अब इस बयानबाज़ी की इनसाइड स्टोरी क्या है भला आइये वह समझते हैं।
दरअसल धामी सरकार में कैबिनेट मंत्री डॉ हरक सिंह रावत बहुत ही सुलझे हुए और कैलकुलेट करके बयान देने वाले नेता हैं। भावनाओं का मुलम्मा चढ़ाकर भी शेर ए गढ़वाल (अपने समर्थकों में इसी नाम से चर्चित) बोलते उतना ही हैं जितना अपने विरोधियों पर हमले के लिए जरूरी मानते हैं। पहाड़ के पॉलिटिकल कॉरिडोर्स में जो चर्चा चल रही बीजेपी की डाल पर बैठे पंछियों के वापस घर वापसी करने की उसमें काफी गहराई ठहरी। हरदा की बेचैनी यही है कि पहले ही प्रीतम कैंप इंदिरा के जाने के बाद भी कार्यकारी अध्यक्षों के नए गणित से मजबूती पा गया है और अगर अब इसमें कुछ पुराने पंछी भी आ जुड़े और सरकार बन भी गई तो संकट बढ़ जाएगा।
लिहाजा सियासी खेल के सबसे माहिर खिलाड़ी हरदा उज्याडू बल्द जैसे बाण चलाकर घर वापसी के रास्ते की दुश्वारियां बाग़ियों को भी दिखा देना चाह रहे। लेकिन जिस जोखिम के साफ काऊ प्रकरण और अब ढैंचा बीज घोटाले के जिन्न को बोतल से बाहर निकालने और 2016 का बगावत के पीछे मुख्यमंत्री बन जाने की अपनी हसरत का इज़हार कर रहे, वह साफ बताता है कि वह नए सिरे से जोखिम मोल लेने का मन बना चुके हैं। पटकथा दिल्ली के स्तर पर लिखी जा चुकी है और किसी ने कहा ‘सौ सुनार की और एक लोहार की’ चोट वाली स्थिति न बन जाए!