देहरादून/ दिल्ली: हरक सिंह रावत के सामने खड़ा हुआ बड़ा सियासी संकट! भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों ने खुलासा किया है कि पार्टी ने लैंसडौन से टिकट मांग रही उनकी पुत्रवधू अनुकृति गुंसाई को टिकट देने से साफ इंकार कर दिया है। इतना ही नहीं हरक सिंह रावत की अपनी मौजूदा सीट कोटद्वार छोड़कर केदारनाथ या किसी और सीट से चुनाव लड़ने की चाहत को भी खारिज कर दिया है। हालाँकि हरक सिंह ने हथियार नहीं डाले हैं और वे दिल्ली दरबार पहुंच चुके हैं। सूत्रों ने दावा किया है कि वे कल तक केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर अपना दुखड़ा व्यक्त करेंगे। माना जा रहा है कि वे तीन टिकट की डिमांड कर रहे हैं। खुद के लिए केदारनाथ, अपनी करीबी लक्ष्मी राणा के लिए रुद्रप्रयाग और बहू अनुकृति गुंसाई के लिए लैंसडौन सीट। जाहिर है मोदी-शाह दौर में भाजपा नेतृत्व के सामने यह डिमांड हवा के विपरीत कश्ती चलाने जैसा है। लेकिन हरक हिम्मत कहा हारने वाले! बैकडोर चैनल से कांग्रेस प्रदेश प्रभारी से मुलाकात का दांव भी तो खेला जा सकता है।
हरक सिंह रावत! धामी सरकार में कद्दावर मंत्रियों में एक रहे हरक सिंह रावत बाइस बैटल से पहले अपने राजनीतिक जीवन के सबसे बड़े संकट का सामना करते नजर आ रहे हैं। उत्तराखंड की राजनीति का हरक सिंह रावत को सबसे अनुभवी मौसम वैज्ञानिक कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। राज्य बनने के बाद से चार चुनाव हुए हैं लेकिन हरक सिंह रावत पिछले दो दशक से एक ही सरकारी आवास में क़ाबिज़ हैं। जाहिर है सत्ता की एक दल से दूसरे दल में अदला-बदली होती रही लेकिन हरक हमेशा बीते दो दशकों में कुर्सी पर क़ाबिज़ ही रहे। अब बाइस बैटल यानी पाँचवा विधानसभा चुनाव है और राजनीतिक पंडितों से लेकर सियासी खिलाड़ियों की नजर हरक सिंह रावत पर टिक गई हैं।
सवाल है कि क्या 2017 के चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हरक सिंह रावत अब फिर पाला बदलेंगे? हरक सिंह रावत जिस तरह से कोटद्वार से चुनाव न लड़ने या कभी इस बार विधानसभा का चुनाव ही न लड़ने या फिर कोटद्वार छोड़कर चार-चार सीटों से जीत दर्ज कराने जैसे बयान देकर लगातार संकेत देते रहे हैं कि उनकी सियासी कश्ती मँझधार में फँसी है। और अगर उनकी कश्ती फँसी तो फिर वे किसी भी हद तक जाकर राजनीतिक कलाबाज़ी दिखाने से परहेज़ नहीं करेंगे।
दरअसल, हरक सिंह रावत वहीं पुराना दांव आज़मा रहे कि पांच साल के बाद अगला चुनाव लड़ने के लिए नई सीट की तलाश। मुराद पूरी नहीं तो पार्टी से पालाबदल कर नई सियासी बिसात बिछाने की कसरत। लेकिन इस बार हरक के सामने दिक्कत दो हैं। एक, अमित शाह ‘हमने दोस्ती निभाई है आप भी निभाएं’ का मंत्र दे चुके हैं जिसके बाद हरक सिंह के सामने आगे खाई पीछे कुआँ वाली स्थिति है। दूसरी दिक्कत यह कि पूर्व सीएम हरीश रावत अपनी सरकार गिराने का ग़म भुलाने को तैयार नहीं लिहाजा लोकतंत्र की लूट की तोहमत लगाकर माफ़ीनामा मांग रहे।
वैसे तीन-तीन टिकट तो कांग्रेस भी हरक सिंह रावत को देने से रही लेकिन यह राहत जरूर मिल सकती है कि कोटद्वार के क़िले से निकालकर कोई नई सीट दे दी जाए। कांग्रेस में हरक की एंट्री होती भी है तो पंजे के पराक्रमी जरूर चाहेंगे कि हरक सिंह रावत को टीएसआर, सतपाल महाराज या किसी मजबूत भाजपाई के सामने खड़ा कर अपनी एक सीट तो बढ़ाई ही जाए।
बहरहाल, दिल्ली से अगले कुछ घंटों में आने वाली तस्वीरों का इंतजार करना होगा जिसके बाद साफ हो पाएगा कि हरक के कदम से उत्तराखंड और उनकी खुद की राजनीति पर कितना फरक पड़ेगा!