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ADDA ANALYSIS टिकटों पर टकराव बाकी है अभी! 50-55 सीटों पर साफ हुई पिक्चर, 15-20 सीटों पर कुहासा बरक़रार, बीजेपी में चेहरे बदलने का दबाव तो कांग्रेस में हरदा vs प्रीतम टकराव

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देहरादून/दिल्ली: 22 बैटल को लेकर सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी कांग्रेस में प्रत्याशी चयन की कसरत अब करीब-करीब अंतिम दौर में है। उत्तराखंड की चुनावी लड़ाई में मुकाबला इस बार भी कांग्रेस और भाजपा में ही आमने-सामने का हो रहा है लिहाजा दोनों ही दल प्रत्याशियों के चयन में बेहद सावधानी बरत रहे हैं। माना जा रहा है कि दोनों ही दलों में 50-55 सीटों पर प्रत्याशी तय ही हैं, बस झगड़ा 15-20 सीटों पर एक नाम पर सहमति बनाने को लेकर ही है।

पहले बात अगर सत्ताधारी भाजपा की करें तो पार्टी राज्य स्तर पर अपना होमवर्क पूरा कर पैनल दिल्ली पार्टी आलाकमान तक भेज चुकी है। पार्टी के सामने स्थानीय स्तर पर सत्ता विरोधी लहर के आगे हाँफते अपने दो डेढ़-दो दर्जन विधायकों के टिकट काटने न काटने की चुनौती है, तो सत्रह की मोदी सूनामी में भी जो सीटें कांग्रेस का अभेद्य किला बनी रही, वहां कैसे कमल खिले इस प्रश्न का उत्तर भी खोजना पड़ रहा है। वहीं विधायकों के निधन और नेताओं के पालाबदल से जहां समीकरण बदल गए वहां दमदार कैंडिडेट खोजने में भाजपा के पसीने छूट रहे हैं। इन सीटों पर दावेदारों की तो फ़ौज है लेकिन एक जिताऊ दावेदार खोजने की पहेली सुलझाते कहीं बाकी नाराज न हो जाए ये खतरा भी है।

इन सीटों पर भाजपा रणनीतिकारों के छूट रहे पसीने

विधायक दिला पाएंगे विजय!

पार्टी नेतृत्व के सामने ये सवाल डेढ़-दो दर्जन विधानसभा सीटों को लेकर बार-बार खड़ा हो रहा है। इन सीटों में रामनगर, अल्मोड़ा, गंगोलीहाट, लालकुआं, लोहाघाट, चंपावत, राजपुर रोड, टिहरी, घनसाली, झबरेड़ा, ज्वावालार और पौड़ी जैसी सीटों पर सिटिंग विधायकों की दोबारा चुनाव जीतने की क्षमता पर सवाल उठे हैं। जबकि यशपाल आर्य और उनके पुत्र संजीव आर्य की कांग्रेस में घर वापसी से बाजपुर व नैनीताल में भाजपा के समीकरण गड़बड़ा गए हैं। विधायक गोपाल रावत के निधन से खाली गंगोत्री और हरबंश कपूर के बाद अब देहरादून कैंट सीट पर किसे चेहरा बनाया जाए यह बड़ा सवाल भाजपा के सामने खड़ा है।

हरक सिंह रावत के स्टैंड से कोटद्वार में भाजपा उलझ गई है तो काशीपुर विधायक हरभजन सिंह चीमा चुनाव नहीं लड़ रहे जिसके बाद उनके बेटे या किसको टिकट दिया जाए यह टेंशन भी पार्टी रणनीतिकारों के सामने है। डोईवाला भाजपा की मजबूत सीट रही लेकिन पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत लड़ेंगे या नहीं लड़ेंगे इसका कुहासा दिल्ली दरबार में ही छंटेगा। जागेश्वर, पिरान कलियर, भगवानपुर, मंगलौर और हल्द्वानी जैसी सीटों पर दमदार दावेदार कौन होगा यह प्रश्न भी अभी अनसुलझा है।

बात कांग्रेस की करें तो 45-50 लोगों की पहली सूची तय हो चुकी है लेकिन अभी भी हरदा वर्सेस प्रीतम कैंपों में 15 से 20 सीटों पर जंग जारी है। कांग्रेस सूत्रों ने खुलासा किया है कि कई सीटों पर हार और जीत से इतर पूर्व सीएम हरीश रावत और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह में शह-मात की अदावत जारी है।


सीट जहां संग्राम से पहले कैंप वॉर छिड़ा है?

हल्द्वानी सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है और दिवंगत डॉ इंदिरा ह्रदयेश के बाद अब बाइस बैटल में उनके बेटे सुमित ह्रदयेश को टिकट की दौड़ में सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है। लेकिन जब कांग्रेस में जंग हरदा बनाम प्रीतम छिड़ी हुई है तो इस सीट पर भी सुमित के सामने दीपक बल्यूटिया आ चुके हैं। यानी प्रीतम अगर सुमित की पैरवी में हैं तो हरदा ‘दीपक’ को सियासी चमक दिखाने का मौका देने की मांग कर रहे। इसी तरह रामनगर सीट पर सबसे मजबूत दावेदार कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत हैं लेकिन वहां भी तीन दावेदारों ने ताल ठोककर जंग हरदा वर्सेस प्रीतम बना रखी है। इसी तरह हरदा कैंप पुरोला में प्रीतम कैंप की तरफ से मालचंद का नाम आने के बाद दुर्गेश लाल को आगे कर रहा है। इसी तरह प्रीतम कैंप भी यमुनोत्री में पिछली बार प्रत्याशी रहे संजय डोभाल को टिकट दिलाना चाह रहा जबकि हरदा-गोदियाल हाल में कांग्रेस में आए दीपक बिजल्वाण की पैरवी कर रहे।

सहसपुर से पिछली बार बागी लड़ गए आर्येन्द्र शर्मा को प्रीतम कैंप इस हार टिकट दिलाने का दम लगाए हुए हैं तो हरदा कैंप कड़ा विरोध कर रहा है। यही हाल कैंट सीट पर सूर्यकांत धस्माना को लेकर बताया जा रहा है। यहाँ हरदा कैंप के वार पर जवाबी पलटवार प्रीतम कैंप धनौल्टी में करता दिख रहा है, जहां हरीश रावत चाह रहे कि टिकट जोत सिंह बिष्ट को मिले जबकि प्रीतम सिंह डॉ वीरेन्द्र सिंह का नाम आगे कर रहे हैं।

अल्मोड़ा में मनोज तिवारी की टक्कर में हरदा कैंप ने बिट्टू कर्नाटक का नाम आगे कर दिया है। प्रीतम चाहते हैं कि पिछली बार सोमेश्वर सीट महज 510 वोट से रेखा आर्य से हारे राजेन्द्र बाराकोटी को बाइस बैटल में मौका मिले लेकिन हरदा कैंप प्रदीप टम्टा की पैरवी कर रहा है। इसी तरह गंगोलीहाट में भी नारायण राम आर्य और खजान गुड्डू के बहाने द्वन्द्व छिड़ा है।सितारगंज, यमकेश्वर और लालकुआं जैसी सीटों पर भी आपसी कैंप वॉर जारी है।

जाहिर है कांग्रेस हो या भाजपा पहले दौर की लड़ाई सही टिकट बँटवारे के तौर पर ही लड़ी जानी होती है। लिहाजा न केवल हर तरह के समीकरण परखे जा रहे बल्कि जीत के बाद विधायक किस कैंप में बैठेगा यह भी अभी से तय हो रहा है।

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The News Adda

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