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ADDA INSIDER त्रिवेंद्र, धामी न भगतदा की चली! कहीं सर्वे के आधार पर टिकट कहीं रिप्लेसमेंट मिलते ही विधायक बेटिकट, यूपी की भगदड़ ने बचाए कई विधायकों के टिकट

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देहरादून: भाजपा ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के लिए अपने प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। अब सियासी गलियारे में चर्चाएं तेज हैं कि आखिर किस दिग्गज नेता का टिकट बँटवारे पर असर रहा? क्या टिकट बंटवारे में युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की चली या महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का दबदबा टिकट बँटवारे में दिखा? या फिर पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के क़रीबियों को कितने टिकट मिले?

आपके THE NEWS ADDA ने भाजपा के कई दिग्गजों से टिकट बँटवारे को लेकर साधे गए समीकरणों और किस नेता की कितनी चली इसे लेकर पड़ताल की। ऊपरी तौर पर एकाध सीट पर उतारे गए नए उम्मीदवार को देखकर एकबारगी लग सकता है कि फ़लां नेता या धड़े को टिकट बँटवारे में तवज्जो मिली। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की छाप एक टिकट पर साफ दिखती है। कपकोट से खुद चुनाव जीत चुके भगतदा ने भाजपा द्वारा 2022 बैटल के लिए बनाएंगे प्रत्याशी सुरेश गढ़िया की ज़ोरदार पैरवी की है। भाजपा के जानकार सूत्रों ने कहा भी कि भगतदा ने इस सीट पर जीत का ज़िम्मा भी अपने ऊपर लिया है।

जानकार सूत्रों की मानें तो कपकोट सीट के अलावा कहीं भी न सीएम धामी और न ही भगतदा की पैरवी से टिकट बँटते दिखे हैं। धारचूला में नए चेहरे के तौर पर धन सिंह धामी को अगर टिकट दिया गया है तो उसके पीछे भगतदा या किसी अन्य नेता का योगदान नहीं बल्कि सर्वे में अव्वल आना और संघ व सांगठनिक अनुभव की बदौलत मौका दिया गया है। अल्मोड़ा में रघुनाथ सिंह चौहान का टिकट काटा गया है और अगर कैलाश शर्मा को टिकट दिया गया है तो इसके पीछे इंटरनल सर्वे में सिटिंग विधायक की कमजोर स्थिति व कैलाश शर्मा का विकल्प के तौर पर मजबूत दिखना काम आया है। वरना कैलाश शर्मा को सीएम पुष्कर सिंह धामी या भगतदा का करीबी तो कतई नहीं कहा जा सकता है।

एक भाजपा के भीतर से पक्की जानकारी यह भी आई कि नैनीताल में सीएम धामी व भगतदा कैंप मोहन पाल के समर्थन में था और मोहन पाल का टिकट भी करीब-करीब तय हो गया था लेकिन आखिरी समय में दिल्ली के निर्देश पर सरिता आर्य की ज्वाइनिंग कराई गई और पाल की बजाय टिकट भी दे दिया गया। इनसाइडर की मानें तो ये धड़ा भीमताल में रामसिंह कैड़ा को टिकट दिए जाने के पक्ष में भी नहीं था लेकिन पार्टी नेतृत्व ने सर्वे और दूसरे फीडबैक में कैड़ा को मजबूत पाया और विरोध के बावजूद टिकट दे दिया।

चार साल तक सीएम रहे और कुर्सी जाते ही एक कैंप के तौर पर उभरे त्रिवेंद्र सिंह रावत के कई समर्थक भी कमजोर फीडबैक मिलने के बाद बेटिकट कर दिए गए हैं। डोईवाला से चुनाव लड़ने से खुद त्रिवेंद्र सिंह रावत इंकार कर चुके हैं। द्वाराहाट विधायक महेश नेगी को न केवल त्रिवेंद्र सिंह रावत का करीबी माना जाता रहा है बल्कि उनके सीएम धामी और भगतदा से भी बेहतर संबंध रहे हैं। लेकिन सर्वे में कमजोर स्थिति के बाद तमाम दिग्गजों की पैरवी भी महेश नेगी का टिकट नहीं बचा पाई और अनिल साही के सर्वे में अव्वल आने और रिप्लेसमेंट ऑप्शन दिखने पर उनको टिकट दे दिया गया। साही को संघ और सांगठनिक तजुर्बे की बदौलत भी तवज्जो मिली न कि वे किसी खास धड़े से जुड़े रहे।

त्रिवेंद्र के क़रीबियों में पौड़ी विधायक मुकेश कोली की परफ़ॉर्मेंस भी सर्वे में कमजोर आई तो टिकट काट दिया गया। जबकि एक और समर्थक टिहरी विधायक धन सिंह नेगी का टिकट भी अभी फंसा हुआ है। वहीं त्रिवेंद्र के करीबी विधायक मुन्ना सिंह चौहान की पत्नी मधु चौहान का चकराता से टिकट भी एक परिवार एक टिकट फ़ॉर्मूले के चलते कट गया है।

टिकट बँटवारे में न निशंक की चली है और जनरल खंडूरी कैंप की कितनी चली होगी इसका अंदाज़ा तो ऋतु खंडूरी का टिकट कट जाने से हो जाता है। दरअसल, यमकेश्वर में भाजपा द्वारा कराए सर्वे में खंडूरी की स्थिति बेहद कमजोर पाई गई और रेनू बिष्ट के रूप में बेहतर विकल्प मिलते ही ऋतु खंडूरी का टिकट काटने में पार्टी जरा भी नहीं हिचकी। रुके हुए 11 टिकटों में भी पार्टी काग्रेस के उम्मीदवार और मौजूदा विकल्पों के लिहाज से प्रत्याशी तय करेगी और लालकुआं, हल्द्वानी, रानीखेत और जागेश्वर जैसी सीटों पर भी उम्मीदवार किसी कैंप या धड़े की बजाय राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों को साधने वाले होंगे।

दरअसल भाजपा ने अपने आंतरिक सर्वे और पर्यवेक्षकों के जरिए मिले फीडबैक के आधार पर ही टिकट बाँटे हैं। हालाँकि सर्वे में कई सीटों की पॉजीशन सी और डी कैटेगरी में आने के बावजूद सिटिंग विधायकों का रिप्लेसमेंट न होने या जो विकल्प में नाम आए उनके और कमजोर होने के चलते विधायक को ही मजबूरी में तवज्जो देनी पड़ी है। पार्टी चंपावत जिले से लेकर पिथौरागढ़, नैनीताल, यूएसनगर, चमोली, टिहरी, उत्तरकाशी और हरिद्वार जिले में कुछ और सिटिंग विधायकों को बेटिकट करना चाहती थी लेकिन कहीं बेहतर रिप्लेसमेंट और कहीं विद्रोह की आशंका में ठिठक गई। ऊपर से यूपी में पिछले दिनों मची भगदड़ ने भी उत्तराखंड में कई सिटिंग विधायकों को बचा लिया है।

ऐसे हालात में भाजपा ने टिकट वहीं काटा जहां बेहतर रिप्लेसमेंट मिल गया और विधायक के विद्रोह की आशंका भी न्यूनतम लगी। लेकिन कोई यह कहे किसी दिग्गज के दखल से किसी को टिकट मिल गया या टिकट कटने से बचा लिया गया तो यह बेमानी होगा। हां सुरेश गढ़िया जैसे एकाध अपवादस्वरूप नाम जरूर हैं जिसकी जीत का दम किसी दिग्गज ने भरकर टिकट दिलाया है।

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