देहरादून: उत्तराखंड की पाँचवी विधानसभा का पहला सत्र 29 मार्च से शुरू हो रहा है। भाजपा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के रूप में अपना नेता सदन चुन चुकी है लेकिन कांग्रेस किसे नेता प्रतिपक्ष बनाएगी इसका इंतजार है। वैसे कांग्रेस आलाकमान को उत्तराखंड का नया प्रदेश अध्यक्ष भी बनाना है। नये अध्यक्ष की तैनाती को लेकर कुछ दिनों तक इंतजार किया भी जा सकता है लेकिन विधानसभा सत्र का ऐलान हो चुका है लिहाजा सत्तापक्ष पर हमलावर तेवर के लिए विपक्ष का नेता चुना जाना बेहद जरूरी है।
जाहिर है कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष पद पर क़ाबिज़ होने वालों की कमी नहीं है। चुनाव जीतकर आए 19 विधायकों में हर दूसरा विधायक नेता प्रतिपक्ष बनने को आतुर है लेकिन कांग्रेस का अगला प्रदेश अध्यक्ष कौन हो?, इस सवाल पर दिग्गज नेता आलाकमान से नज़रें चुरा रहे हैं। लेकिन पहले बात नेता प्रतिपक्ष को लेकर कांग्रेस में छिड़े कुरुक्षेत्र की करते हैं।
वैसे तो निवर्तमान नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह की इस पद पर दोबारा तैनाती की संभावना ज्यादा मानी जा रही थी । लेकिन पूर्व सीएम हरीश रावत के करीबी और धारचूला विधायक हरीश धामी नेता प्रतिपक्ष को लेकर खुलकर दावेदारी पेश कर चुके हैं। जबकि बदरीनाथ विधायक राजेन्द्र भंडारी से लेकर ममता राकेश और मदन बिष्ट जैसे तमाम विधायक विपक्ष की आवाज बनने को आतुर हैं। कांग्रेस का एक तबका दलित चेहरे यशपाल आर्य को नेता प्रतिपक्ष बनवाना चाहता है क्योंकि आर्य तिवारी सरकार में स्पीकर रहे थे और पिछली दो सरकारों में मंत्रिमंडल का अनुभव भी है। लिहाजा आर्य के अनुभव को देखते हुए आखिरी दौर में हरदा कैंप प्रीतम सिंह कैंप के लिए चुनौती पेश करने की रणनीति के तहत आर्य को भी आगे कर सकता है। जाहिर है कांग्रेस आलाकमान के लिए नेता प्रतिपक्ष का चुनाव बिना झगड़े के करा लेना पहाड़ चढ़ने जैसी चुनौती साबित होगा।
कांग्रेस मे नेता प्रतिपक्ष को लेकर तो मारामारी है लेकिन असल चुनौती प्रदेश अध्यक्ष की है जिसे लेकर कोई भी दिग्गज नेता राजी नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो 2017 की चुनावी हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष बने
प्रीतम सिंह अब दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनने की बजाय नेता प्रतिपक्ष को लेकर भी अधिक संजीदा हैं। जबकि कांग्रेस में सबसे लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष रहे यशपाल आर्य जिनके खाते में 2009 के लोकसभा और 2012 के विधानसभा चुनाव की जीत दर्ज हैं, वे भी अध्यक्ष बनने की बजाय पार्टी नेता प्रतिपक्ष बनाए तो उसके लिए राज़ी हैं।
ठीक उसी प्रकार हरीश धामी ने भी लोकसभा चुनाव 2024 और विधानसभा चुनाव 2027 के मद्देनज़र कांग्रेस को मजबूत करने के लिए संगठन की कमान संभालने की बजाय विधानसभा के सदन में सत्तापक्ष से दो-दो हाथ करने के सुविधाजनक विकल्प पर दावा ठोका है। यही हाल बाकी दिग्गज नेताओं का दिखाई दे रहा है। ऐसे में सीएम पुष्कर सिंह धामी को धूल चटाकर विधानसभा पहुँचे भुवन कापड़ी जैसे युवा चेहरे या अल्मोड़ा से करीबी मुकाबले में जीतकर आए मनोज तिवाड़ी को अध्यक्ष बनाने की बातें हो रही हैं। वैसे सबसे कम समय के लिए अध्यक्ष रहे गणेश गोदियाल को चुनावी हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देना पड़ा है, उनको भी हरदा कैंप दोबारा अध्यक्ष बनाने की हिमायत कर नेता प्रतिपक्ष पद कुमाऊं ले जाने की रणनीति पर चल रहा है।
वैसे एक नाम भाजपा से ठीक चुनाव बाद घर वापसी करने वाले हरक सिंह रावत का भी लिया जा रहा लेकिन बहू की लैंसडौन की लड़ाई में करारी हार ने हरक के तेज़ाबी हौसलों पर मानो बर्फ़ीला पानी उड़ेल दिया है? यही वजह है कि हरक के अगले एक्शन को लेकर अधपकी खबरें राजनीतिक गलियारे में देहरादून से दिल्ली तक तैरने भी लगी हैं।
बहरहाल, विधानसभा में लगातार दूसरी चुनावी हार ने उत्तराखंड के कांग्रेसी दिग्गजों की हिम्मत तोड़ दी है। यही वजह है कि तममा दिग्गज ताकतवर भाजपा से सड़क पर संघर्ष की बजाय सदन के सूरमा बनकर ही विपक्षी धर्म निभाकर संतोष हासिल करना चाहते हैं। सवाल है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव ( General Election 2024) और उससे पहले नगर निकाय चुनाव (Local Body Election) के नतीजों का अहसास कंपकंपी छुड़ा दे रहा है?