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श्रमिक वर्ग ने खो दी अपनी बुलंद आवाज: संजय गांधी से भिड़ जाने वाले, इंदिरा के लिए सड़क पर निकलने वाले अंबरीष कुमार नहीं रहे

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हरिद्वार: अंबरीष कुमार नहीं रहे। श्रमिक वर्ग ने अपनी एक बुलंद आवाज खो दी है। राजनीति में वह धर्मनिरपेक्षता की पहचान और गांधीवादी राजनेता थे। वह अपने आप एक दल थे, जिसने झूकना नहीं सीखा था। श्रमिकों, किसानों का ऐसा कोई आंदोलन नहीं रहा जिसके साथ अंबरीष कुमार खड़े न रहे हों। आज उन्होंने अपना हितैषी को दिया है।


राजनीति में उनके शिक्षक कामरेड आरके गर्ग, जो सुप्रीमकोर्ट के जाने-माने अधिवक्ता, भाकपा के नेता तथा 1974 में हरिद्वार के विधायक रहे, की माने तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अपनी सिद्धांतवादी राजनीति से कभी समझौता नहीं करने वाले कांग्रेस के दिग्गज अंबरीष कुमार युवा अवस्था में ही संजय गांधी से भिड़ गए थे और कांग्रेस छोड़ दी थी।


आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो पूरी कांग्रेस कोप भाजन बन गई थी। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जनता पार्टी की सरकार बदले की भावना से इंदिरा गांधी के खिलाफ अभियान चला रही है, कांग्रेस उसका मुकाबला कैसे करें। सत्ता से बाहर होने पर कांग्रेसी इतने ज्यादा हतोत्साहित थे कि कुछ करने को तैयार नहीं थे।


अंबरीष कुमार के राजनीतिक सफर के आजीवन सहयोगी मुरली मनोहर कहते हैं कि जनता पार्टी की सरकार ने एक प्रकार से कांग्रेस के खिलाफ आतंक का माहौल बना दिया था। इंदिरा गांधी को जेल में डाल दिया गया था। इसके विरोध में अंबरीष कुमार के नेतृत्व में हजारों कार्यकर्ता जेल भरने के लिए रेजिडेंट मजिस्ट्रेट हरिद्वार की कोर्ट के बाहर जमा हो गए थे। मुरली मनोहर बताते हैं कि इंदिरा गांधी जब जेल से बाहर आई तो अंबरीष कुमार ही थे जो सितंबर व दिसंबर में दो बार उनको हरिद्वार लेकर आए। इस प्रकार जनता शासन के खौफ से घरों में दुबके कांग्रेस कार्यकर्ताओं को देशभर में घरों से बाहर निकालने में अंबरीष कुमार कामयाब रहे और 1980 में कांग्रेस फिर से सत्ता में आई और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी।

उनकी एक बड़ी कमजोरी व्यक्तिवादी होना रही है जिसका नुकसान उन्हें भी हुआ लेकिन उनसे ज्यादा उस सिद्धांत की राजनीति को हुआ जिससे वह कभी विचलित नहीं हुए और प्रलोभन में नहीं आए। सही में कहा जाए तो कांग्रेस ने उस शख्स को उतनी तरजीह नहीं दी जिसके वे वास्तव में हकदार थे। उत्तराखण्ड ने एक प्रगतिशील राजनेता को को दिया है। यह कांग्रेस का ही नहीं उत्तराखण्ड का नुक़सान है, जिसकी भरपाई आसान नहीं है।

प्रगतिशील तथा वामपंथी पार्टियों के नेताओं के साथ उनके मित्रवत संबंध थे। मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिकता भड़काने तथा मुसलमानों पर जानलेवा हमलों के खिलाफ तथा सांप्रदायिक सद्भाव के लिए उन्होंने हरिद्वार में बड़ा सम्मेलन आयोजित किया था। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में उन्होंने किसी कांग्रेस नेता को नहीं बल्कि माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य एवं पूर्व सांसद सुभाषिनी अली को आमंत्रित किया था। शहीद भगत सिंह के शहादत दिवस के मौके पर 23 मार्च को आयोजित एक विशाल कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एवं वक्ता के रूप में माकपा नेता कामरेड सीताराम येचुरी को भी उन्होंने ही हरिद्वार आमंत्रित किया था।

सपा से पहली बार वह विधायक चुने गए थे और उन्हें दो राज्यों उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड में रहने का अवसर मिला। पहली बार के इस विधायक को उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष केसरी नाथ त्रिपाठी ने सर्वश्रेष्ठ विधायक के खिताब से नवाजा था। विधायक के रूप में उनके जो काम है वह अजर अमर हैं। जो चार बार से विधायक हैं और कबीना मंत्री रहे हैं, उन पर एक बार के विधायक अंबरीष कुमार के काम आज भी भारी पड़ते हैं।
श्रद्धांजलि

साभार एफबी वॉल: हरिद्वार से वरिष्ठ पत्रकार रत्नमणि डोभाल

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