आर्य-माहरा की मोर्चाबंदी फेल! हरदा के करीबी का विकेट चटका धाकड़ धामी ने दिखाया बागेश्वर बाई-इलेक्शन का ट्रेलर

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Uttarakhand News: दिवंगत चंदनराम दास जिस बागेश्वर सीट से बैक टू बैक चार चुनाव जीते वहां उनकी अनुपस्थिति में अब कमल खिलाने का जिम्मा युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कंधों पर है। धामी सरकार 2.0 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ताजपोशी के बाद पुष्कर ने जिस अंदाज में चंपावत उपचुनाव जीतकर इतिहास रचा था, उसके बाद आए इस बाई-इलेक्शन के जरिए टीम धामी 2024 की चुनौती के लिहाज से सूबे में बीजेपी की सियासी बढ़त का संदेश देना चाहेगी। 

हालांकि अवसर तो कांग्रेस के पास भी है कि वह बागेश्वर उपचुनाव की अग्निपरीक्षा में तपकर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में पांच की पांच सीटों पर जीत की हैट्रिक के दावे को बेदम कर दिखाए। लेकिन सुबाई सियासत में फिलवक्त करन माहरा और यशपाल आर्य की जुगलबंदी ऐसी पेशबंदी करती नज़र नहीं आ रही है। कम से कम शनिवार को हुई बड़ी राजनीतिक गतिविधि को देखकर तो नहीं लगता कि कांग्रेस बागेश्वर में जीत के जुनून के साथ उतरने जा रही है।

अगर ऐसा होता तो टिकट के संभावित दावेदारों में शुमार चेहरा यूं अचानक पालाबदल कर जंग में उतरने को तैयार कांग्रेस की कमर तोड़ने का काम नहीं करता। या फिर यूं कहिए कि माहरा आर्य देखते रह गए और सीएम धामी ने बागेश्वर बैटल के एलान के साथ ही कांग्रेस का मजबूत विकेट चटका कर नतीजों का ट्रेलर दिखा दिया है! 

2022 के विधानसभा चुनावों में जिस रंजीत दास के कंधों पर कांग्रेस को जीत दिलाने का जिम्मा था वह अब बागेश्वर के बाई-इलेक्शन में कमल खिलाने के अभियान पर निकल गए हैं। मुख्यमंत्री रहते हरीश रावत के निजी सचिव रहे रंजीत दास का बीजेपी चले जाने का मैसेज बागेश्वर उपचुनाव तक सीमित नजर नहीं आता बल्कि यह बताता है कि कांग्रेस की बची-खुची टुकड़ी में भी कई ऐसे चहेरे हैं जो न केवल नाराज और निराश हैं बल्कि अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर असुरक्षित भी हैं और अपने लिए बीजेपी में संभावनाएं देखते हैं।

अभी नाम लेना तो ठीक नहीं होगा लेकिन रंजीत दास ही क्या कई और बड़े नामों को लेकर भी समय समय पर अटकलें अफवाहें उड़ती रहती हैं। जानें कब उनमें से कौन धाकड़ धामी के संग खड़ा नजर आ जाए! 

 दरअसल, पुष्कर सिंह धामी बागेश्वर उपचुनाव को बिलकुल हल्के में नहीं लेना चाहते क्योंकि इस चुनाव के प्रदेश की राजनीति ही नहीं बीजेपी की आंतरिक राजनीति पर गहरे असर दिखाई देंगे। धामी बागेश्वर बैटल जीतकर दिल्ली को साफ संदेश देंगे कि चुनावी मोर्चाबंदी में वे लगातार प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस नेताओं पर तो भारी हैं ही, अपनी पार्टी के भीतर भी उनके मुकाबले दूर दूर तक कोई नहीं है।

धामी जिस तरह से हरदा के करीबी रंजीत दास को लेकर आए है, यह उनकी दूरगामी सोच का संकेतक हैं क्योंकि न रंजीत को बीजेपी से टिकट मिल रहा, अलबत्ता कांग्रेस भी 2022 में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी रहे बसंत कुमार को तवज्जो दे, बावजूद इसके दास वर्षों से जिस दल में थे उसे छोड़कर आए यह कांग्रेस के भीतर के असंतोष की कहानी का खुलासा कर देता है।

सवाल है कि लोकसभा चुनाव तक ऐसे कितने और असंतुष्ट चेहरे हैं जो भगवा पटका पहनकर अपनी कहानी कहने को उचित अवसर के इंतजार में हैं? 


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