- पूर्व आईएएस एके शर्मा की सरकार में एंट्री सीएम योगी के लिए झटका!
- प्रधानमंत्री के करीबी शर्मा का दखल सरकार में शामिल होते ही बढ़ना तय!
- बढ़ सकता है पॉवर शह-मात गेम दिल्ली-लखनऊ के बीच!
लखनऊ: मिशन 2022 को लेकर बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने मार्च में ही मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश अध्यक्ष बदल डाले थे, अब बारी उत्तरप्रदेश में बड़े बदलाव की है। तय माना रहा है कि यूपी की जातीय राजनीति में कमजोर पड़ती गोलबंदी की काट में बीजेपी नेतृत्व उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश संगठन की कमान सौंपकर फिर से ओबीसी कार्ड खेलने की तैयारी में है। वहीं मौर्य की जगह योगी सरकार में प्रधानमंत्री के करीबी पूर्व आईएएस AK शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया जाएगा।
हालाँकि यूपी में मिशन 2022 को लेकर बदलाव की चर्चाएँ काफी समय से चलती आ रही हैं लेकिन ऐसा लगता है कि पंचायत चुनाव में लचर प्रदर्शन और बंगाल में संपूर्ण ताकत झोंकने के बावजूद सत्ता से दूर रह जाने ने बीजेपी थिंकटैंक और संघ की पेशानी पर बल डाल दिया है। पिछले रविवार को दिल्ली में संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले की पीएम मोदी, गृहमंत्री शाह और अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाक़ात के बाद यूपी में बड़े बदलाव के संकेत मिल गए थे। अब जो मीडिया रिपोर्ट्स आ रही हैं उनके मुताबिक गुरुवार शाम सात बजे सीएम योगी आदित्यनाथ राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से मिलेंगे जो अपना मध्यप्रदेश का दौरा बीच में छोड़कर आज दोपहर ही लखनऊ लौटी हैं। तय माना जा रहा है कि 28 या 29 मई के बीच योगी सरकार का 2022 के चुनाव के आठ महीने शेष रहते दूसरा मंत्रिमंडल विस्तार होगा।
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दरअसल 19 मार्च 2017 को योगी सरकार का गठन हुआ था और 22 अगस्त 2019 में पहला मंत्रिमंडल विस्तार किया गया था। इसमें छह स्वतंत्र प्रभार मंत्रियों को कैबिनेट की शपथ दिलाई गई थी जिनमें तीन नए चेहरे थे। फिलहाल योगी मंत्रिमंडल में 56 सदस्य हैं और कोरोना की पहली लहर में दो मंत्री चेतन चौहान और कमला रानी वरुण का निधन हो गया था जबकि दूसरी लहर में राज्यमंत्री विजय कुमार कश्यप का निधन हो गया है।
यूपी सरकार में अधिकतम 60 मंत्री बनाए जा सकते हैं और फिलहाल योगी सरकार में 23 कैबिनेट मंत्री, 9 स्वतंत्र प्रभार मंत्री और 22 राज्यमंत्री शामिल हैं। यानी इस समय योगी सरकार के मंत्रियों की संख्या 54 है और 6 नए मंत्री बनाए जा सकते हैं।जाहिर है विधानसभा चुनावों को महज आठ महीने बचे हैं और पंचायत चुनाव में हार के साथ साथ कोरोना के कोहराम में गिरी साख ने संघ और बीजेपी नेतृत्व को सकते में डाल दिया है। ऊपर से बंगाल में तमाम ताकत झोंकने के बावजूद ममता बनर्जी की सत्ता में वापसी ने बेचैनी कई गुना बढ़ा दी है। ऐसे में यूपी की पार्टी सरकार को चुनावी शक्ल देने के लिए बीजेपी हर संभव सियासी और सामाजिक समीकरण साध लेने में कोर कसर नहीं छोड़ना चाहेगी।