
देहरादून/दिल्ली: एक बड़ी पुरानी कहावत है कि चौबे जी चले छब्बे जी बनने दुबे जी बनकर लौट आए। उत्तराखंड की मौजूदा सियासत में इसका ताजा उदाहरण देहरादून की रायपुर सीट से विधायक उमेश शर्मा काऊ बने हैं। काऊ 18 मार्च 2016 को कांग्रेस में हुई बड़ी टूट के किरदार रहे और 2017 में बीजेपी के टिकट पर राज्य में सबसे बड़े अंतर से चुनाव जीतने वाले विधायक बने। 2017 में टीएसआर सरकार में मंत्री बनना वैसे ही कठिन था लेकिन अब यशपाल आर्य की कांग्रेस में घर वापसी होने के बाद खाली हुई कुर्सी मिलना भी दूर की कौड़ी ही नजर आ रहा है। ये अलग बात है कि आर्य पिता-पुत्र के साथ ही कांग्रेस में घर वापसी करने के इरादे से राहुल गांधी के घर हाज़िरी लगाने पहुँचे काऊ सीएम बनने को आतुर दिल्ली में सक्रिय एक नेता के फ़ोन पर हुए वादे पर यकीन कर उलटपांव भाजपा लौट आए। लेकिन अब लगता है आस कमजोर ही पड़ती जा रही! वैसे भी जब एक नेता पार्टी को छोड़ने का इरादा लेकर विरोधी पक्ष के पाले में हो आया हो फिर उसकी विश्वसनीयता दोनों तरफ संदिग्ध हो जाती है। काऊ के साथ भी ऐसा ही हो रहा है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि अब काऊ न घर के रहे न घाट के! अलबत्ता काऊ के इस फ़्लिप-फ़्लॉप ने राहुल गांधी के दरबार में नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह की और कच्ची कराने का काम किया है। शनिवार को प्रीतम सिंह, उमेश काऊ और हरक सिंह रावत देहरादुन से एक जहाज से दिल्ली के लिए उड़े तो हल्ला मच गया कि फिर कुछ बड़ा ‘खेला’ होने जा रहा है लेकिन हरक-काऊ ने बलूनी संग जेपी नड्डा से मुलाकात कर सोशल मीडिया में एक फोटो नुमाया कि जिसके ज़रिए भाजपा आलाकमान से कुछ बड़ा लेकर लौटने की हवा बनाने की कोशिश की गई। लेकिन हकीकत यह है कि अब हरक सिंह रावत और अनिल बलूनी को विधायक काऊ को मंत्रीपद दिलाने के लिए बहुत पसीना बहाना पड़ेगा। कहने को हरक भी चुनाव न लड़ने की बात बार-बार दोहरा रहे और संगठन की सेवा के लिए बड़ी चुनावी भूमिका तलाश रहे हैं लेकिन क्या बीजेपी आलाकमान अपनी सीट छोड़कर विपक्षी दल को वॉकऑवर देने की तैयारी में बैठे नेता को चुनावी कैंपेन का कमांडर बनाएगी, यह बड़ा सवाल है?
दरअसल काऊ ने चुपके-चुपके कांग्रेस में प्रीतम के सहारे घर वापसी की सीढ़ी बनाने और फिर हरदा से दुआ-सलाम में पेश आई दिक्कत से भविष्य के हालात भांपकर भाजपा में ही टिके रहने के फैसले में जो जल्दबाज़ी दिखाई उसके हरक सिंह रावत और दूसरे 2016 के बाग़ियों के दरवाजे भी बंद कराने का काम कर दिया है। अब काऊ और हरक के सामने भाजपा नेतृत्व के दरवाजे दस्तक देकर कुछ पाने की कोशिश करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। लेकिन यह भी दिलचस्प होगा कि चुनावी बिगुल फूँक चुकी भाजपा अब काऊ पर क्या क़ुर्बान करती है और चुनाव लड़ते-लड़ते थक गए हरक सिंह रावत को संगठन में कौनसा करिश्माई ज़िम्मा सौंपती है! इतना तय है कि भाजपा नेतृत्व भी यह जान चुका है कि राहुल गांधी के दरवाजे पहुंचकर लौटे काऊ पर पूरी तरह कॉॉन्फ़िडेंस दिखाने का जोखिम घाटे का सौदा भी साबित हो सकता है।