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अड्डा In-depth फिर दीदी के शरणागत: मुकुल रॉय की ‘घर वापसी’ मोदी मैजिक और शाह की ‘चाणक्य’ नीति का मुंह चिढ़ा गई!

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दृष्टिकोण (पवन लालचंद) : केन्द्र की सत्ता पर 2019 में दोबारा क़ाबिज़ होने से बहुत पहले बीजेपी सोनार बांग्ला के अपने सियासी स्वप्न को धरातल पर साकार करने के लिए ‘ऑपरेशन लोटस’ शुरू कर चुकी थी। इसी शुरूआती दौर में तृणमूल कांग्रेस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का साथ छोड़कर सबसे पहले आने वाले नेताओं में एक मुकुल रॉय वापस दीदी की शरण में चले गए हैं। वो भी तब जब हफ्तेभर पहले प्रधानमंत्री मोदी ने रॉय की अस्पताल में एडमिट पत्नी का हालचाल जानने के लिए करीब दस मिनट फोन पर बातचीत की थी और बीजेपी नेतृत्व आश्वस्ति की तरफ बढ़ रही थी कि अब शायद टीएमसी जाने का मोह छोड़ दें मुकुल रॉय। लेकिन तीन जून को पीएम मोदी ने फोन पर मुकुल रॉय से बातचीत की और 11 जून आते-आते मुकुल दीदी कैंप मे दोबारा चले गए हैं।


दरअसल विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के मैजिक और शाह की चाणक्य नीति के साथ ‘खेला होबे’ कर गई दीदी अब उस ऑपरेशन लोटस के वार पर पलटवार कर हिसाब चुकता कर रही हैं जिसने चुनाव पूर्व उनकी नींद उड़ाकर रख दी थी। चुनाव पूर्व शायद ही कोई दिन रहा हो जब अखबार की सुर्खी न बनी हो कि अब फ़लाँ टीएमसी नेता-विधायक पाला बदलकर बीजेपी के मंच पर चढ़ गया है। ये सब उस सोनार बांग्ला सियासी स्वप्न के जादूई आभामंडल का असर था जो मोदी मैजिक और चाणक्य नीति के सहारे पश्चिम बंगाल में बुना गया था। अब बीजेपी तीन विधायक से 70 पार जाकर भी उन नेताओं के लिए धेले भर की नहीं रही है जो ममता को झटका देकर सत्ता की सवारी करने आए थे। कहावत है कि बंगाल की राजनीति में सत्ता ही सबकुछ होती है विपक्ष कहां किसे रास आता है।
मुकुल रॉय बीजेपी की टिकट पर जीते विधायक भर नहीं हैं बल्कि उनको पार्टी ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर ममता के खिलाफ खड़ा करने की खूब कोशिश की। लेकिन कहते हैं एक तो शुभेंदु अधिकारी के बढ़ते कद से मुकुल रॉय परेशान थे दूसरे ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने उनकी बीमार पत्नी का हालचाल जानने अस्पताल पहुंचकर दीदी के दरवाजे खुले होने का संदेश दे दिया था। अब सवाल कोलकाता से दिल्ली तक पहुँच चुकी उस अटकलबाज़ी का है जिसके तहत बीजेपी के एक, दो या तीन नहीं बल्कि पूरे 33 विधायक-सांसद-नेता पार्टी छोड़कर दीदी के साथ दोबारा खड़े होने को बेचैन हैं। सवाल है कि क्या बंगाल की सियासत में अभी वो पर्याप्त मोदी मैजिक और शाह की चाणक्य नीति का चुंबक शेष है जो मुकुल रॉय के पीछे कांरवा बनने पर रोक लगा पाएगा।

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