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CAG Report: ज़ीरो टॉलरेंस वाले त्रिवेंद्र राज में घाटे में सरकारी कंपनियां, बजट का रोना रोते सरकारी विभाग करोड़ों रु खर्च नहीं कर पाए, वित्त वर्ष के आखिरी दिन किया सरेंडर

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देहरादून: गुरुवार को विधानसभा में रखी गई वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान की कैग (CAG) रिपोर्ट में राज्य सरकार की नाकामी के कई किस्से बयां किये गए हैं। ऐसे दौर में जब राज्य के विभिन्न सरकारी विभागों के पास बजट का संकट बना रहता है तब विभिन्न योजनाओं के मद में जारी 259 करोड़ रु का फंड वित्त वर्ष गुजर जाता है लेकिन विकास कार्यों पर खर्च ही नहीं हो पाता है। अब अधिकारियों ने इस तरह से फंड पार्किंग कराकर राज्य को दोहरी चोट दी। एक, समय पर पैसा खर्च न होने से संबंधित विकास योजनाएं लटक गई, दूसरा, फंड पार्किंग यानी पैसा किसी मद में रखकर उसे यूटिलाइज न कर पाने से अन्य जनहित की योजनाओं को वित्तीय संकट से गुज़रना पड़ा।
दरअसल विभागों तक बजट आवंटन में देरी का ही नतीजा है कि 31 मार्च को वित्त वर्ष समाप्ति से चंद दिनों पहले या तो फंड को अनाप-शनाप तरीके से खर्चा जाता है या फिर वित्त वर्ष की अवधि गुजर जाती है और आखिर में विभागों को फंड सरेंडर करना पड़ता है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में चिन्ता जाहिर की है कि आखिरी दिन 259 करोड़ रु सरेंडर करने का नतीजा यह निकला कि कई दूसरे जरूरी विकास कार्य बाधित होते रहे।
कैग ने अनूपूरक बजट में से 2481 करोड़ रु खर्च न होने को गैर-जरूरी प्रावधान करार दिया। यानी सरकार अनुपूरक बजट लेकर आई लेकिन इसका करीब ढाई हजार करोड़ रु उसे कहां खर्च करना था इसका पता ही नहीं था।

कैग रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि यूपीसीएल जैसे राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के 20 उपक्रम भारी घाटे में हैं। 634 करोड़ के घाटे में अकेले UPCL की हिस्सेदारी 577 करोड़ से अधिक के साथ 91. फीसदी है। जबकि UJVNL, PITCUL और वन विकास निगम से सरकार को करोड़ों का मुनाफ़ा हुआ है। कैग रिपोर्ट में सकल राज्य घरेलू उत्पाद यानी GSDP में कृषि सेक्टर के तेजी से घटते योगदान पर भी चिन्ता जाहिर की गई है।
कैग रिपोर्ट में राज्य के राजस्व घाटे को लेकर भी चिन्ता जाहिर की गई है। वर्ष 2018-19 में राजस्व घाटा 980 करोड़ पर था जो वित्त वर्ष 2019-20 में बढ़कर 2136 करोड़ रु हो गया।

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