दिल्ली: पंजाब की कुर्सी छीनने को अपना अपमान बता रहे पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आज यानी बुधवार को दिल्ली में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इस मुलाकात ने जहां कांग्रेस लीडरशिप तो नए सिरे से कंपकंपी दे दी, वहीं पंजाब की राजनीति में आने वाले दिनों में नए समीकरण बनने की सुगबुगाहट तेज हो गई है। सवाल है कि क्या बीजेपी के दरवाजे की तरफ बढ़ते दिख रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह आसानी से कांग्रेस छोड़ पाएंगे? वह भी ऐसे हालात में जब पंजाब में चंद माह बाद यूपी-उत्तराखंड के साथ विधानसभा चुनाव हैं और तीन कृषि क़ानूनों और एमएसपी की गारंटी को लेकर किसान पिछले 10 महीनों से पंजाब, हरियाणा से लेकर दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डालकर आंदोलन की बिगुल बजा रहा है।
जाहिर है कैप्टन जिस तरीके से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा लिया गया उसे अपना अपमान करार दे रहे और इसका बदला लेने के लिए उन्हें मोदी-शाह-नड्डा के दरवाजे पहुँचने से भी गुरेज़ नहीं। लेकिन कांग्रेस छोड़कर मौजूदा हालात में बीजेपी जाने का जोखिम कैप्टन हरगिज नहीं लेंगे। दरअसल कृषि क़ानूनों के खिलाफ जिस तरह का माहौल पूरे पंजाब में बन चुका है ऐसे में चाहकर भी इस दीवार को पार करने की हिम्मत कैप्टन नहीं जुटा पाएंगे। इसकी तसदीक़ कैप्टन के मीडिया सलाहकार रवीन ठुकराल ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद कर भी दी है। गृहमंत्री के साथ चली करीब 45-50 मिनट की मुलाकात कि जानकारी देते रवीन ठुकराल ने कहा कि मुलाकात में लम्बे समय से चले आ रहे किसान आंदोलन को लेकर चर्चा हुई। साथ ही नए तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने और किसानों को MSP की पक्की गारंटी देने की मांग रखी।
जाहिर है कैप्टन कांग्रेस लीडरशिप को सबक सिखाने की मंशा पाले हैं और बीजेपी स्वाभाविक विकल्प के तौर पर सामने है। अमरिंदर सिंह की प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ गहरी दोस्ती भी ठहरी लेकिन नए कृषि क़ानूनों के बाद से पंजाब में बीजेपी की हालत बेहद खराब है और दशकों पुराना दोस्त शिरोमणि अकाली दल भी साथ छोड़ चुका लिहाजा कैप्टन जानते हैं कि बीजेपी की तरफ कदम बढाने से पहले में कृषि बिलों के रोड ब्लॉक हटाने होंगे। लेकिन क्या पंजाब की राजनीति के ‘कैप्टन’ को अपने पाले में लेकर कृषि बिलों पर पीछे हटना प्रधानमंत्री मोदी को गंवारा होगा? आखिर किसान आंदोलन ने पिछले सात सालों में पहली बार मोदी मैजिक के खिलाफ इतने महीनों से मोर्चा संभाल रखा है और बंगाल की शिकस्त के बाद यूपी में इसे दोहराने का दम भरा जा रहा है। ऐसे में क्या किसानों के आगे मोदी सरकार झुकने की क़ीमत पर कैप्टन को अपने पाले में लेना चाहेगी? या फिर किसान आंदोलन के आगे थकती मोदी सरकार को अब किसी ऐसे ही खेवनहार ‘कैप्टन’ का इंतजार जिसके सहारे चेहरा बचाने का दांव खेला जाए!