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Punjab Congress Politics कुर्सी छोड़ते कैंप्टन का ऐलान सिद्धू को नहीं बनने देंगे CM …क्या भाजपा की तर्ज पर चेहरा बदलने का दांव कांग्रेस को पड़ेगा भारी?

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दिल्ली: भाजपा ने गुज़रे चंद महीने में एक के बाद एक पाँच मुख्यमंत्री बदल डाले लेकिन कहीं तिनका भर विरोध में उठता नहीं दिया। ऐसा लगता है पंजाब में कांग्रेस ने भाजपा की तर्ज़ पर शॉट खेल ज़रूर दिया लेकिन अब कहा जा रहा है कि पार्टी हिट विकेट हो गई है। इसकी वजह है मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देते कैप्टन अमरिंदर सिंह का पंजाब कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू पर तीखा हमला बोलते यह कहना कि उनकी दोस्ती पाक पीएम इमरान खान और सेना प्रमुख बाजवा से है लिहाज़ा वे देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं।

कैप्टन ने ऐलान कर दिया है कि वे सिद्धू को सीएम नहीं बनने देंगे। यह चेतावनी तब ज़्यादा अहमियत रखती है जब पार्टी के क़रीब 25 विधायक कैप्टन के पाले में खड़े हैं और ख़ुद अमरिंदर इसे ख़ुद को तीसरी बार अपमानित करना बता रहे हैं। यह वह कैप्टन हैं जिनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गहरी दोस्ती की चर्चा लुटियंस दिल्ली से लेकर चंडीगढ़-पंजाब तक रहती है। सवाल है कि जब कांग्रेस आलाकमान नए सीएम चेहरे का ऐलान करेगा तब कैप्टन की रणनीति क्या रहेगी? क्या कैप्टन चुनाव तक जो भी नया सीएम हो उसके ख़िलाफ सिद्धू की तर्ज़ पर दबाव गुट बनाकर हमलावर रहेंगे या फिर अलग राह पकड़ने जैसा बड़ा क़दम उठाकर कांग्रेस सरकार को ही संकट में डालेंगे?

ज़ाहिर है अगले कुछ घंटों में पंजाब की राजनीति में किसी भी तरह का बड़ा डेवलपमेंट देखने को मिल सकता है। साफ़ है कांग्रेस पार्टी और नेतृत्व के लिए कठिन चुनौतियों भरा असल वक़्त अब शुरू हो चुका है। ऐसे में यह सवाल बेहद मौजूं है कि क्या कांग्रेस ने भाजपा की तर्ज़ पर चुनाव से पहले चेहरा बदलने का जो दाँव खेला है वह उसे उलटा भी पड़ सकता है?

भाजपा ने असम में दोबारा सरकार बनवाने वाले सिटिंग सीएम सर्बानंद सोनोवाल को हटाकर हेमंत बिस्वा सरमा की ताजपोशी करा दी लेकिन कोई हल्ला नहीं हुआ। उत्तराखंड में भाजपा ने चार माह में त्रिवेंद्र-तीरथ से पुष्कर सिंह धामी तक तीन मुख्यमंत्री ताश के पत्तों की तरह बदल डाले लेकिन सूई की नोंक को बराबर विवाद नहीं दिखा। कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा को हटाकर बोम्मई लाए गए और हाल में गुजरात में विजय रुपाणी को हटाकर भूपेन्द्र पटेल मुख्यमंत्री बना दिए गए और पूरी कैबिनेट तक बदल डाली लेकिन विरोध के स्वर कहीं भी सुनाई नहीं दिए।

कांग्रेस ने यही फ़ॉर्मूला अपनाया तो कैप्टन की नाराज़गी उसके राह का बड़ा रोड़ा बन गई है। अब अगर प्रधानमंत्री मोदी ने तीन कृषि क़ानूनों पर एक क़दम पीछे खींच लिया तो कैप्टन कई क़दम भाजपा की ओर बढ़ सकते हैं और यह पंजाब की राजनीति के तमाम समीकरणों को उलटफेर करना होगा। ज़ाहिर है कांग्रेस नेतृत्व कैप्टन को अपने पाले में बनाए रखने के लिए ख़ूब पसीना बहा रहा होगा!

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