देहरादून: सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी कांग्रेस के बड़ी जीत के अपने-अपने दावों के परीक्षण का वक्त अब चंद घंटों दूर है। किसके दावों में दम था और कौन अपने भीतर की कमज़ोरियों को छिपाने को बराबर हल्ला मचाए था इसके फैसले की घड़ी अब दूर नहीं है। यही वजह कि ‘यही रात अंतिम यही रात भारी’ से पहले कांग्रेस हो या भाजपा दोनों के प्रदेश मुख्यालयों में दिनभर बैठकों का दौर चलता रहा। जहां दिग्गज नेताओं में फ़िज़िकल बैठकों का दौर चला तो वर्चुअल बैठकों के जरिए 10 मार्च की मतगणना के अपने एक सिपहसालार को तमाम दांव-पेंच समझाए गए। वहीं बहुमत के दावों के पार प्लान बी पर भी भाजपा हो या कांग्रेस अंदरखाने कसरत जारी है।
नेता जीत की मनोकामना के लिए मंदिर-मंदिर
चुनावी जीत के लिए नेताजी क्या-क्या न कर जाएंगे! फिर चुनावी जीत की गारंटी के लिए भगवान के दरबार पहुँचने में भला क्या हर्ज! कुछ इसी अंदाज में खबर मिली है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने मध्यप्रदेश के दतिया पहुंचकर तांत्रिक पीठ श्री पीताम्बरा मंदिर पहुंचकर मां बगुलामुखी से राजसत्ता का आशीर्वाद लिया है। कौशिक से एक कदम आगे रहे कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी इससे पहले शुक्रवार को ही सपरिवार दतिया पहुँचाकर सिद्धपीठ पीताबंरा मंदिर में पूजा अर्चना कर माँ बगुलामुखी से चुनावी जीत का आशीर्वाद ले आए हैं।
जब तमाम नेता राजसत्ता बचाए रखने को भगवान की शरण में भी पहुंच रहे हैं तो सीएम धामी भी क्यों न भगवान के दरबार पहुँचते! नतीजों से ठीक दो दिन पहले यानी बीते कल सीएम पुष्कर सिंह धामी सपरिवार जौनसार-बावर के सिद्धपीठ श्री महासू देवता मंदिर हनोल पहुँचे और पूजा अर्चना कर जीत का आशीर्वाद माँगा। सीएम धामी ने लखस्यार व लखवाड़ चालदा-महासू मंदिर में भी पूजा-अर्चना की थी।
जाहिर है पांच साल की सत्ता बचाने या पाने के लिए नेताजी तमाम पापड़ बेलने को सदा तैयार रहते हैं। फिर भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर-मंदिर घूमने में किस बात का परहेज़! लिहाजा कोई मां बगुलामुखी की पूजा करा रहा तो कोई चावल गणना में उलझा है।
लेकिन बड़ा सवाल यही है कि आखिर जनता ने जनादेश किसे दिया है? क्या भाजपा को फिर मोदी मैजिक का सहारा मिलेगा या फिर एंटी इनकमबेंसी का फायदा उठाकर कांग्रेस सत्ता में आ जाएगी? बहरहाल नतीजे अब चंद घंटों की दूरी पर हैं। लेकिन इस चुनाव में पूर्व सीएम हरदा और वर्तमान सीएम धामी के अलावा करीब डे़ढ दर्जन नेताओं की साथ दांव पर लगी है।
जिनकी साख है दांव पर ?
खटीमा सीट पर सीएम पुष्कर सिंह धामी की साख दांव पर है तो लालकुआं में पूर्व सीएम हरीश रावत की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। चकराता में नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह, हरिद्वार शहर में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक और श्रीनगर में
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल की साख दांव पर है।
जबकि धामी के मंत्री सतपाल महाराज चौबट्टाखाल सीट पर, मंत्री डॉ धन सिंह रावत श्रीनगर सीट, मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद हरिद्वार ग्रामीण, गदरपुर सीट पर मंत्री अरविंद पांडे, नरेन्द्रनगर सीट पर मंत्री सुबोध उनियाल और मंत्री गणेश जोशी मसूरी में साख की लड़ाई लड़ रहे हैं। मंत्री बंशीधर भगत कालाढूंगी सीट, डीडीहाट सीट पर मंत्री बिशन सिंह चुफाल और मंत्री रेखा आर्य सोमेश्वर सीट पर साख की लड़ाई लड़ रही हैं।
वहीं, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य बाजपुर सीट और हरक सिंह रावत की साख अपनी बहू अनुकृति गुंसाई के चुनाव को लेकर लैंसडौन में दांव पर लगी हुई है। जबकि पूर्व सीएम हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत भी हरिद्वार ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ रही लिहाजा साख बजाने की हरदा के सामने दोहरी चुनौती खड़ी है।
आम आदमी पार्टी के सीएम चेहरे कर्नल अजय कोठियाल गंगोत्री सीट की चुनावी जंग में फ़ंसे हैं और उनकी हार-जीत से AAP की राजनीतिक ज़मीन का अहसास हो जाएगा। यूकेडी की सियासी ज़मीन बचाने का दारोमदार देवप्रयाग सीट पर अध्यक्ष दीवाकर भट्ट के कंधों पर टिका है।
जबकि ऋषिकेश में स्पीकर प्रेम चंद अग्रवाल, कोटद्वार में पूर्व सीएम बीसी खंडूरी की बेटी ऋतु खंडूरी चुनावी जंग में साख बचाने उतरी हैं। जबकि कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत सल्ट सीट पर अपनी सियासी ज़मीन और साख बचाने के संग्राम में उतरे हैं।
मिथक रहेंगे कि टूटेंगे?
पाँचवी विधानसभा के लिए छिड़ी चुनाव जंग में क्या मिथक बचेंगे या टूटेंगे इस पर भी राजनीतिक पंडितों की नज़र है। एक सियासी मिथक है कि जो गंगोत्री जीतेगा उसी प्रत्याशी के दल की सूबे में सरकार बनेगी। रामनगर की सीट से भी जीत मिलने पर उसी दल की सूबे में सरकार का मिथक रहता है या टूटता है देखना होगा। रानीखेत जो हारेगा उसी प्रत्याशी के दल की सरकार बनेगी यह भी देखना होगा। पुरोला में हार से जुड़ा ऐसा ही सियासी मिथक है।