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डॉ निधि उनियाल प्रकरण में मुख्यमंत्री धामी कमेटी बनाकर कर रहे लीपापोती, स्वास्थ्य सचिव पद से पंकज पांडेय को हटाया जाए, निलंबन हो और NH 74 घोटाले में लगे आरोपों की हो जांच

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देहरादून: राजकीय दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सीनियर फिज़िशियन और एसोसिएट प्रोफसर पद पर तैनात डॉ निधि उनियाल के इस्तीफे ने हेल्थ सेक्टर में सरकारी सिस्टम की पोल खोल कर रख दी है। डॉ निधि उनियाल के इस्तीफे ने बताया कि कैसे सरकारी डॉक्टरों पर नौकरशाही दबाव बनाकर अपनी तीमारदारी कराती है और हनक ऐसी कि अपनी बेगम की सेवा में कमी रह जाए तो एक आईएएस अपने पद का दुरुपयोग करते हुए एक सीनियर डॉक्टर को माफी माँगने पर मजबूर करता है और अगर ऐसा न हो पाए तो तबादला कर देता है। डॉ निधि उनियाल और सूबे के स्वास्थ्य सचिव पंकज कुमार पांडेय की पत्नी के बीच हुई कहा-सुनी के बाद जिस तरह से सरकारी सिस्टम की पोल खुली है, उसने बताया है कि आखिर अफ़सरशाह कैसे अपनी जिद के आगे किसी कर्तव्यनिष्ठ डॉक्टर को झुकाने के लिए किस हद तक तुग़लक़ी फैसले लेने पर उतारू हो सकते हैं।

सिस्टम की इसी हालत को देखते हुए धामी सरकार की अब तक की कार्यवाही के बावजूद डॉ निधि उनियाल दोबारा दून अस्पताल में ड्यूटी ज्वाइन नहीं करना चाहती हैं क्योंकि सिस्टम ने गहरी चोट पहुँचाई है।

इतना ज़रूर है कि मामला सोशल मीडिया में वायरल हुआ और खामोश रहने को लेकर स्वास्थ्य मंत्री और सरकार निशाने पर आई तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने डॉ निधि उनियाल का तबादला निरस्त करते हुए एसीएस मनीषा पंवार की अगुआई में जांच कमेटी बना दी है। लेकिन अब धामी सरकार पर आरोप लग रहा है कि इस गंभीर मसले में भी मुख्यमंत्री लीपापोती कर रही है।

पढ़िए हूबहू भाकपा(माले) के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी ने इस मुद्दे पर धामी सरकार को कैसे घेरा है।

इन्द्रेश मैखुरी, गढ़वाल सचिव, भाकपा(माले)

दून अस्पताल की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.निधि उनियाल को ओपीडी छोड़ कर स्वास्थ्य सचिव डॉ.पंकज पांडेय के घर, उनकी पत्नी को देखने भेजना, फिर सचिव की पत्नी का डॉ.निधि उनियाल से अभद्रता करना और सचिव द्वारा डाक्टर को दून मेडिकल कॉलेज से सोबन सिंह जीना मेडिकल कॉलेज संबद्ध करने की घटना बेहद निंदनीय है। यह घटना दर्शाती है कि राज्य में अफसरशाही किस कदर बेलगाम और निरंकुश है।

इस प्रकरण में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा की गयी कार्यवाही महज़ लीपापोती है। संबद्धिकरण निरस्त करना, नाममात्र की कार्यवाही भर है। स्वास्थ्य सचिव और उनकी पत्नी पर कार्यवाही के नाम पर केवल कमेटी बनाई गयी है। एक डॉक्टर को ओपीडी से उठा कर अपनी पत्नी को देखने के लिए भेजना प्रथम दृष्टया पद के दुरुपयोग का मामला है। स्वास्थ्य सचिव की पत्नी द्वारा डाक्टर के साथ अभद्रता, डाक्टर पर स्वास्थ्य सचिव की पत्नी से माफी मांगने के लिए दबाव डालना और डाक्टर द्वारा माफी न मांगने पर उन्हें तत्काल ही दूसरे मेडिकल कॉलेज संबद्ध करना, स्पष्ट तौर पर निरंकुशता और अपनी शक्तियों के दुरुपयोग के उदाहरण हैं। लेकिन इस सब के बावजूद डॉ.पंकज पांडेय के खिलाफ न्यूनतम कार्यवाही भी न होना और उन्हें स्वास्थ्य सचिव के पद से भी न हटाया जाना दिखाता है कि पुष्कर सिंह धामी जी की सरकार, नौकरशाहों के सामने किस कदर लाचार है। पंकज पाण्डेय उक्त प्रकरण में जांच के दौरान भी स्वास्थ्य सचिव बने रहेंगे तो क्या स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच मुमकिन है ? डॉ.निधि उनियाल के संबद्धिकरण को निरस्त करने का आदेश भले दे दिया गया हो पर वे उन्हीं पंकज पांडेय के अधीन होंगी, जिन्होंने अपनी पत्नी के अहम की तुष्टि के लिए उनका कुछ ही घंटों में देहरादून से अल्मोड़ा संबद्धिकरण कर दिया था। पंकज पांडेय के स्वास्थ्य सचिव रहते तो डॉ.निधि उनियाल को प्रताड़ित किए जाने का खतरा बना रहेगा।

इसलिए डॉ. पंकज पांडेय को स्वास्थ्य सचिव के पद से हटाया जाये, पद के दुरुपयोग के लिए उन्हें निलंबित किया जाये। साथ ही उन पर पूर्व में एनएच 74 समेत अन्य घोटालों के आरोपों की भी जांच हो।

इन्द्रेश मैखुरी, गढ़वाल सचिव, भाकपा(माले)

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