देहरादून/चंपावत: कहते हैं दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है। अगर मसला पुष्कर सिंह धामी के राजनीतिक भविष्य से जुड़ा हो तब खटीमा हारकर भी कुर्सी पा गए मुख्यमंत्री, अब चूकना नहीं चाहेंगे। धामी छह माह के भीतर होने वाले विधानसभा उपचुनाव को लेकर ज़मीन तलाशने निकल पड़े हैं। ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री का चम्पावत दौरा इसी कड़ी में हुआ है। चम्पावत से भाजपा विधायक कैलाश गहतोड़ी तो सबसे पहले धामी के लिये सीट छोड़ने की इच्छा जाहिर करते हैं और लगातार मुख्यमंत्री को उपचुनाव लड़ने का न्योता दे रहे। लेकिन मुख्यमंत्री धामी के लिये अपने लिए सुरक्षित सीट तय करना इतना आसान भी नहीं रहने वाला है।
वजह साफ है कि खटीमा हारे धामी नहीं चाहेंगे कि पार्टी के भीतर बैठे उनके विरोधियों को दोबारा उनको निपटाने का मौका आसानी से मिल जाए। ऐसा इसलिए कि मुख्यमंत्री कैम्प मानता है कि धामी पार्टी के भीतर चले अंदरूनी ‘खेल: का शिकार हुए हैं। हालांकि धामी धड़े के अलावा एक धड़ा यह भी मानता है कि साढ़े नौ साल की विधायक की एन्टी इनकंबेंसी छह माह के मुख्यमंत्री पर भादू5 पड़ गयी और ऊपर से रमेश राणा के ज़रिए थारू वोट कटवा पॉलिटिक्स से दो बार की जीत का दांव तीसरी बार फेल हो गया। ख़ैर वजह चाहे जो हो लेकिन मुख्यमंत्री धामी नहीं चाहेंगे कि उपचुनाव में खटीमा दोहराया जाए।
यही वजह है कि मां पूर्णागिरि का आशीर्वाद लेने बनबसा पहुंचे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि मां का आशीर्वाद सदा उनके साथ रहा है और जनता की यहां से उपचुनाव लड़ाने की भावनाओं को पार्टी हाईकमान तक पहुंचाया जाएगा क्योंकि फैसला वहीं से होना है।
दरअसल मुख्यमंत्री धामी भी ‘दूध का जला छाछ भी पूछ पूछ कर पीता है’ वाले अंदाज़ में अपनी सुरक्षित सीट चुनना चाहते हैं। धामी को डर है कि कहीं फिर से उनके घर के विरोधी उनको निपटा न दें। ऐसे में चम्पावत की सीट शुरुआती लिहाज़ से सेफ नज़र आती हैं लेकिन मुख्यमंत्री संभलकर फैसला करेंगे।कहने को राजनीतिक गलियारे में चर्चा यह भी खूब है कि एक-दो कांग्रेसी विधायक भी अपने कारोबारी फायदे की फिक्र में मुख्यमंत्री के लिए सीट छोड़ने को आतुर हुए जा रहे हैं। लेकिन सेफ सियासी खेल खेलने को तैयार दिखते धामी शायद ही विरोधी कैम्प में टूट कराकर विधानसभा पहुंचने का जोखिम मोल लेना चाहें!