देहरादून: पर्यटन व धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज की अध्यक्षता में गठित कैबिनेट सब-कमेटी जिसमें कृषि मंत्री सुबोध उनियाल और स्वामी यतीशवरानंद भी सदस्य हैं, ने उत्तराखंड देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड पर गठित हाई पॉवर कमेटी द्वारा दी गई रिपोर्ट की स्टडी कर अपनी सिफ़ारिश रिपोर्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंप दी है। सतपाल महाराज ने सोमवार को मुख्यमंत्री को जो रिपोर्ट सौंपी है उस पर मुख्यमंत्री आज निर्णय ले सकते हैं। THE NEWS ADDA पर सूत्रों ने खुलासा किया है कि मंत्री महाराज की अगुआई वाली कमेटी ने देवस्थानम बोर्ड भंग करने की सिफ़ारिश की है। हालांकि आधिकारिक घोषणा का इंतजार है।
दरअसल, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पहले भी संकेत दे चुके हैं कि बाबा बदरी-केदार ने बोर्ड बनवाया था और अगर बाबा का आदेश होगा तो बोर्ड भंग भी हो जाएगा। जाहिर है मुख्यमंत्री धामी लगातार कोशिश कर रहे हैं कि त्रिवेंद्र राज में ज़बरन तीर्थ-पुरोहितों और हक-हकूकधारियों पर थोपे गए देवस्थानम बोर्ड पर मचा बवाल थमे।
चुनावी साल में भाजपा को बखूबी अहसास हो गया है कि बोर्ड पर मचे बवाल का सियासी फ़ायदा कांग्रेस और AAP को मिल सकता है लिहाज़ा अब पार्टी त्रिवेंद्र राज में 20 साल का सबसे ऐतिहासिक क़दम क़रार देने की रट से मुक्त होना चाह रही है। ख़ासकर किसान आंदोलन पर जिस तरह से मोदी सरकार ने यू-टर्न मारकर तीनों कृषि क़ानूनों को संसद के रास्ते वापस ले लिया है, अब देवस्थानम बोर्ड को भंग करने के लेकर धामी सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही पुष्कर सिंह धामी ने वरिष्ठ भाजपा नेता मनोहर कांत ध्यानी की अध्यक्षता में हाई पॉवर कमेटी गठित कर देवस्थानम बोर्ड पर रास्ता निकालने की पहल कर दी थी। हाई पॉवर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज की अध्यक्षता में कृषि मंत्री सुबोध उनियाल और स्वामी यतीश्वरानंद को सदस्य बनाकर कैबिनेट सब-कमेटी गठित की गई। इस उप-समिति ने भी सोमवार को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।
माना जा रहा है कि कमेटी की सिफारिश के आधार पर मंगलवार यानी आज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भावनाओं के अनुरूप बड़ा निर्णय ले सकते हैं।
उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन विधेयक को 27 नवम्बर 2019 में विधानसभा से पास कराया गया था। इस अधिनियम को लागू कर तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड गठित किया था जिसका तीर्थ-पुरोहित लगातार विरोध कर रहे थे।
त्रिवेंद्र ने तमाम विरोध के स्वरों को दरकिनार कर बोर्ड को बीस साल का सबसे बड़ा ऐतिहासिक क़दम प्रचारित किया और कुर्सी जाने के बाद भी वे लगातार इसे चंद लोगों द्वारा किया जा रहा विरोध क़रार दे रहे लेकिन बदले सियासी हालात और चुनावी माहौल में भाजपा जब टीएसआर को ही किनारे लगा चुकी, तब उनकी बोर्ड पर दलीलों को भी और तवज्जो देने का जोखिम मोल लेना नहीं चाह रही है।