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ADDA IN-DEPTH धामी सरकार का कमेटी झुनझुना: तीन साल तक वेतन समिति के अध्यक्ष रहते कार्मिकों की वेतन विसंगतियां दूर करने में नाकाम, अब तीन माह में इंदु कुमार पांडे वेतन कमेटी करेगी क्या चमत्कार!

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देहरादून: कभी पुलिस परिजनों के सड़क पर उतरकर प्रदर्शन से फजीहत तो कभी ऊर्जा निगम के कर्मचारियों के हड़ताल पर बैठ जाने से पैदा संकट! आए दिन की कर्मचारी संगठनों की हड़ताल या हड़ताल की धमकियों से पसीना-पसीना हुई धामी सरकार ने इसका हल खोज लिया है। धामी सरकार ने इंदु कुमार पांडे समिति बनाकर एक झटके में कर्मचारियों के रोज-रोज बढ़ रही माँगों से कम से कम तीन महीने यानी अक्तूबर तक के लिए तो पीछा छुड़ा ही लिया है।

फिर नवंबर-दिसंबर के बाद कभी भी विधानसभा चुनाव की आदर्श आचार संहिता लग सकती है।ऐसे में क्या धामी सरकार ने राज्य के कर्मचारियों को समिति बनाकर लॉलीपॉप थमा दिया है? यहीं सवाल कई कर्मचारी संगठनों के लिए अभी से चिन्ता का सबब बनने लगा है।

दरअसल, 27 जुलाई को हुई धामी कैबिनेट ने पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति गठित करने का फैसला किया है। इंदु कुमार पांडे समिति अधिकतम तीन माह के भीतर अपनी संस्तुतियां सरकार को सौंपेगी। सरकार चौतरफा कर्मचारी संगठनों की आए दिन की वेतन विसंगतियों को दूर करने की माँगों से चुनावी साल में पसीना-पसीना हो रही थी लिहाजा उसने आए दिन के धरने-प्रदर्शनों और ज्ञापनों से राहत पाने के लिए पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति बनाने का पूर्व में आजमाया जाता रहा फ़ॉर्मूला निकाला है।

धामी कैबिनेट ने सचिवालय, विधानसभा, पुलिस, फ़ॉरेस्ट, राजस्व, ग्राम विकास, उद्यान, ऊर्जा सहित तमाम विभागों के कर्मचारियों की वेतन विसंगति के मसले के लिए हल करने के लिए पुनः इंदु कुमार पांडे की अध्यक्षता मे यह वेतन विसंगति समिति गठित की गई है। कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल के अनुसार पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे की अध्यक्षता वाली इस समिति को जल्द से जल्द अपनी संस्तुतियां सौंपने के निर्देश दिए गए हैं। समिति अक्तूबर तक सिफ़ारिशें देगी और उन पर फिर सरकार निर्णय लेगी। लेकिन क्या इंदु कुमार पांडे वेतन समिति पिछले 03 साल मे न सुलझाए मामले तीन महीने में ही सुलझाकर कार्मिको के हित व अपेक्षाओ के अनुसार अपनी संस्तुतियाँ दे देगी या एक-दो और न जाने कई एक्सटेंशन पहले की तरह लेगी!

दरअसल वेतन कमेटी को लेकर कर्मचारी संगठनों की चिन्ता की वजह है वेतन विसंगति के नाम पर बनी पिछली इंदु कुमार पांडे वेतन समिति का ट्रैक रिकॉर्ड। तीन माह के लिए बनी समिति ने बढ़ते-बढ़ाते तीन साल का वक्त ले लिया था और कर्मचारी संगठनों की वेतन संबंधी विसंगतियाँ दूर होने की बजाय बढ़ी ही। एसीपी ग्रेड पे को लेकर पुलिस परिजनों का रविवार का धरना-प्रदर्शन भी उन्हीं पिछली संस्तुतियों का परिणाम समझा जा सकता है।


दरअसल सातवें वेतनमान लागू होने पर भत्तों की संस्तुतियों को लागू कराने एवं वेतन विसंगतियों को दूर करने के लिए इंदु कुमार पांडे वेतन समिति बनाई गई थी। लेकिन इस समिति ने जब सचिवालय सहित 5 विभागों के पदों का स्केल डाउनग्रेड करने की सिफ़ारिश की तो 8 सितंबर 2017 को सचिवालय कर्मचारियों ने एक दिन की हड़ताल कर विरोध दर्ज कराया और नतीजा ये रहा कि कैबिनेट में लिए गए फैसले को फिर कैबिनेट में ले जाकर पलटना पड़ा। इंदु समिति ने कर्मचारियों के कई तरह के भत्ते भी समाप्त करने की सिफ़ारिश की थी उसका भी विरोध हुआ था।

आज जिस ग्रेड पे के मुद्दे पर पुलिस परिवार आंदोलित हैं उसकी वजह भी एसीपी की जगह एमएसीपी लागू करना ही है। इंदु समिति की सिफ़ारिश पर जब एचआरए प्रतिशत घटाया गया तो 31 जनवरी 2019 को उत्तराखंड अधिकारी कर्मचारी शिक्षक समन्वय समिति ने एक दिन की हड़ताल कर विरोध दर्ज कराया था जिसके बाद सरकार को डीए की दरों को बढ़ाना पड़ा तथा साथ ही इंदु कुमार पांडे समिति द्वारा की भत्तों पर चलायी गयी कैंची की धार भी सरकार को दुरूस्त कर पुनः ऐसे भत्ते लागू करने पड़े।
इसी तरह के पुराने अनुभवों को निराशाजनक मानते हुए कर्मचारी तबका आशंकित हो रहा है।

इंदु कुमार पांडे समिति का कार्मिकों के वेतन भत्तों एवं वेतन विसंगति के मामलों में पूर्व का अनुभव निराशाजनक रहा है। किसी भी राज्य में कार्मिकों की वेतन विसंगति के मामलों के निस्तारण हेतु मुख्य सचिव की अध्यक्षता में ही समितियां गठित रहती हैं। इसके लिए किसी सेवानिवृत्त मुख्य सचिव की आवश्यकता शायद कार्मिकों के हितों पर कुठाराघात जैसा है। जबकि वित्त विभाग के स्तर पर 01 अपर मुख्य सचिव व 03-03 सचिव तैनात हैं। इसके अलावा वित्त सेवा के अपर सचिवो की लम्बी चौड़ी फौज है। इंदु कुमार पांडे समिति ने कार्मिको के हर मामले में नकारात्मक संस्तुतियां ही दी हैं तथा कई विभागों के पदों तथा सचिवालय के कई अनुभागों की कटौती की संस्तुति कर कार्मिकों के मामलों में अपना दृष्टिकोण उजागर किया है।

उत्तराखंड सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी

उत्तराखंड राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के कार्यकारी जनरल सेक्रेटरी अरुण पांडे ने धामी सरकार द्वारा वेतन विसंगति को लेकर गठित इंदु कुमार पांडे समिति को लेकर तीन बातें रखते हुए इस समिति के औचित्य पर सवाल उठाया है। कर्मचारी नेता ने कहा कि

तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के निर्देश पर अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी के साथ जब कर्मचारी संगठनों की बैठक हुई थी तो उसमें पूर्व की व्यवस्था के तहत मुख्य सचिव के नेतृत्व में वेतन समिति बहाल कर वेतन विसंगतियां दूर करने की मांग रखी गई थी। इस पर वित्त विभाग की तरफ से बताया गया कि शासन स्तर पर पुरानी व्यवस्था बहाल कर दी गई है और कर्मचारी अपने प्रस्ताव दें। फिर अब अचानक दोबारा इंदु कुमार पांडे की अगुआई में चार संसदीय वेतन समिति क्यों बनाई गई ? उन्होंने कहा कि सातवें वेतनमान को लेकर इंदु कुमार पांडे वेतन समिति की अधिकतर सिफ़ारिशें कर्मचारी विरोधी रही और जो सकारात्मक सिफ़ारिशें दी भी गई थी उन पर शासन स्तर से फैसला लेना था लेकिन उन्हें आज तक दबाकर रखा गया है।

उत्तराखंड राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के कार्यकारी जनरल सेक्रेटरी अरुण पांडे


जाहिर है धामी सरकार जहां पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे की अगुआई में वेतन समिति बनाकर चुनावी साल में कर्मचारियों की समस्त शिकायतें दूर करने का दम भर रही, वहीं इससे उम्मीद की बजाए कर्मचारियों द्वारा आशंकाएँ जताई जाने लगीं हैं। कर्मचारियों का यह भी कहना है कि जैसे पुलिस ग्रेड पे मसले पर पहले मंत्रिमंडल उपसमिति बनाई गई अब इंदु कुमार पांडे वेतन समिति भी बना दी गई है। यानी पहले उपसमिति के स्तर पर जो कसरत हुई वो फ़िज़ूल साबित हुई!

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The News Adda

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