देहरादून: वही कातिल वही मुंसिफ़ ! कुछ इसी अंदाज में हरिद्वार महाकुंभ फ़र्ज़ी कोविड टेस्टिंग घोटाले की जांच नहीं हो रही? घोटाले का भंडाफोड़ एक जागरूक नागरिक की पहल और ICMR के निर्देश के बाद होता है। वरना हरिद्वार जिला प्रशासन और मेला प्रशासन तो कब का कुंभ संपन्न कराकर आगे बढ़ चुके थे।
अब सवाल फर्जीवाड़े का भांडा फूटने के बाज़ तीरथ सरकार के ढीले-ढाले रवैये को लेकर उठ रहे हैं। पहले कुंभ के समय से जिले में क़ाबिज़ हरिद्वार डीएम को ही जाँच के लिए कहना। फिर सीडीओ की जांच शुरू होना और उधर मेला सीएमओ का भी समानांतर जांच जारी रहना। फिर एसपी रैंक ऑफ़िसर की अगुआई में एसआईटी गठित कर जांच शुरू कराना। अब सवाल है कि जिस तरीके से नियमों को दरकिनार कर निजी एजेंसियों से करार किए गए तो भला क्या सारी कारस्तानी हरिद्वार में बैठे छुट्टे अधिकारी ही कर गए? हरिद्वार महाकुंभ कोई मोहल्ले या शहर भर का आयोजन था क्या?
महाकुंभ यानी एक अन्तरराष्ट्रीय आयोजन और उस पर वैश्विक महामारी कोरोना से जंग का वक्त! महाकुंभ के दौरान कोरोना महामारी को लेकर सरकार इतनी उदासीन क्यों बनी रही ये सवाल नहीं पूछा जाएगा या इन्वॉल्वमेंट का कनेक्शन हरिद्वार मेला क्षेत्र से निकलकर शासन के किसी स्तर तक कनेक्टिड था? ये सवाल खामख्याली नहीं है इसके पीछे एक नहीं कई वजहें साफ़ दिखाई दे रही हैं। मसलन,
कोरोना सैंपलिंग जांच का कार्य लैब की बजाय एक आउटसोर्सिग एजेंसी को क्यों दे दिया गया?
कोविड टेस्टिंग कार्य किसी एजेंसी को किस नियम के तहत दिया गया?
आउटसोर्स एजेंसी मैक्स कारपोरेट सर्विस को काम दिलाने वाले हरिद्वार तक महदूद या दून कनेक्शन?
इसी एजेंसी ने टेस्टिंग कार्य नलवा और डॉ लालचंदानी लैबों को सबसेट कर दिया।
आईसीएमआर नियम कहते हैं कि कोविड टेस्टिंग कार्य उन्हीं लैब को दिया जा सकता है जो ICMR और NABL से अप्रूव हो, फिर किसके कहने पर नियम दरकिनार?
खुद राज्य सरकार के नियम कि ICMR, NABL अप्रूवल के साथ साथ Clinical Establishment Act में रजिस्टर्ड हो और पैथोलॉजिस्ट के लिए भी रजिस्टर्ड हो, फिर किसके इशारे पर खेला हुआ?
कोविड जंग में अहम भूमिका अदा कर रहे स्वास्थ्य महानिदेशालय को शासन से किसके इशारे पर नजरअंदाज कर दिया गया?
महाकुंभ में शासन के आदेशों के अनुसार मेलाधिकारी कार्यालय काम कर रहा था फिर जांच की आंच शासन तक मौजूदा SIT के सहारे पहुंच पाएगी?
बहरहाल SIT से बड़ी उम्मीदें पालने वालों को NH 74 मुआवजा घोटाले का हश्र देख लेना चाहिए। अब कोई टीएसआर-2 समर्थक सोच सकता है कि भला टीएसआर-1 उस दौर में सीबीआई और हाईकोर्ट सिटिंग जज की अगुआई में
न्यायिक जांच पर विचार क्यों नहीं कर पाए। खैर! क्यों ना बेहतर होता मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत दूध का दूध पानी का पानी करने को सीबीआई जांच की सिफ़ारिश कर देते? क्यों न कोई जांच आयोग गठित कर समयबद्ध तरीके से जांच कराई जाती? क्यों न हाइकोर्ट के सिटिंग या रिटायर्ड जज से जांच कराने का फैसला हो गया होता? अब सरकार इस बहुत बड़े स्कैम पर इसी तरह सुस्त चाल चली तो कहीं ऐसा न हो कि यहाँ भी हाईकोर्ट को संज्ञान लेकर तीरथ सरकार को रास्ता दिखाना पड़े!