- पूर्व तक परीक्षाओं में धांधलियों पर पूर्व मुख्यमंत्रियों के ढीले रवैए ने नौकरियों में धांधलियों को पाला पोसा
- CM धामी के सख्त रवैये से युवा उनके मुरीद पर मौका है युवाओं के बीच हीरो बनने का, उनकी आवाज सुनने का
दृष्टिकोण (पंकज कुशवाल): उत्तराखंड में नौकरियों को अवैध कारोबार बना चुके अपराधियों पर जिस तरह से कार्यवाही हुई है इससे मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी से संतुष्ट हुआ जा सकता है। जब एसटीएफ ने पेपर लीक में पहली गिरफ्तारी की उसके बाद लगातार यह सिलसिला चल रहा है और उत्तराखंड में नौकरियों के दलालों से लेकर बाहरी राज्यों से पेपर लीक कराने के बड़े काले कारोबार में संलिप्त आरोपियों की धरपकड़ भी हुई है। ज़ाहिर है मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी द्वारा उत्तराखंड एसटीएफ को यह खुली छूट देने से ही यह संभव हो सका है।
राज्य में हर बार सरकारी नौकरियों को लेकर आयोजित होने वाली परीक्षाओं में खूब खेल चला है और अब वही ‘खेल’ गड़े मुर्दों की शक्ल में सामने आ रहा है। दरअसल, सीएम पुष्कर सिंह धामी के सामने चुनौती यह थी कि ये खुलासे राज्य सरकार की साख को भी बट्टा लगा सकते थे लेकिन उन्होंने युवाओं के भविष्य से जुड़े इस बेहद संवेदनशील मामले में यह जोखिम लेना मुनासिब समझा।
विधानसभा में बैकडोर से नियुक्तियों पर भी उनके तेवर सख्त रहे हैं। हालांकि हम सब जानते हैं कि विधानसभा की नौकरियों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है और वहां तैनात ज्यादातर लोग राज्य में भाजपा, कांग्रेस, संघ, पत्रकारों के सगे संबंधी हैं और ऐसे में उन्हें नौकरी से निकालने का अगर जोखिम राज्य सरकार ले भी ले तो वह न्यायालय से विधान सभा अध्यक्ष के उन अधिकारों की दुहाई देकर अपनी बहाली कराने की हरसंभव कोशिश कर सकते हैं। लेकिन, जांच के बाद यदि सरकार उन कर्मियों को हटाने का जोखिम लेती है, भले ही इसके बाद वह कोर्ट से बहाली करवा लें, यह भी एक मजबूत संदेश माना जाएगा।
बाकी, तमाम सरकारी नौकरियों में गड़बड़ी हुई है, लेकिन उन सभी परीक्षाओं को रद्द करना भी न्यायालय में ज्यादा देर नहीं टिक सकेगा। ऐसे में जरूरी है कि क्रमबद्ध तरीके से जांच हो और अनुचित तरीके से नौकरी पाए कर्मी को बाहर करने के साथ ही जेल की हवा भी खिलाई जाए।
पुष्कर सिंह धामी के पास मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य के युवाओं के बीच हीरो बनने का मौका है। आज परेड ग्राउंड से सचिवालय तक बड़ी तादाद में युवा एकत्र हुए और राज्य के अलग अलग जिलों, ब्लॉक मुख्यालयों में भी प्रदर्शन हुए हैं। बेरोजगार युवा प्रदर्शनकारी दरअसल सरकार के खिलाफ नहीं हैं,वे बस यह चाह रहे हैं कि ‘कैश के बदले जॉब’ वाले इस स्कैम की सीबीआई जांच हो।
हालांकि, सीबीआई जांच को लेकर हाईकोर्ट का रूख कर चुके कांग्रेसी विधायक भुवन कापड़ी को कोर्ट पूछ भी चुका है कि आपको एसआईटी की जांच पर भरोसा क्यों नहीं है। एसआईटी का अब तक का प्रदर्शन बेहतर रहा है लेकिन युवाओं व जनता में निराशा इस बात से है कि अब तक नौकरी स्कैम में सिर्फ पेपर लीक करवाने वाली छोटी मछलियों तक ही एसटीएफ पहुंची है। जबकि यूकेएसएसएससी के पूर्व अध्यक्ष से लेकर सचिव तक की नाक के नीचे नौकरियां पैसे देकर बिकती रहीं, परीक्षा दर परीक्षा पेपर लीक होते रहे, लेकिन वह आखिर अनजान क्यों बने बैठे थे?
क्यों मध्य प्रदेश में चर्चित व्यापमं घोटाले में ब्लेक लिस्टेड कंपनी को वन दरोगा की परीक्षा आयोजित करने का काम दिया गया, क्यों दो सालों से बिना अनुबंध के एक कंपनी उत्तराखंड में प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित करवाती रही? यह भी जानकारी सामने आ रही कि यूपीसीएल से लेकर कई विश्वविद्यालयों की विभिन्न नियुक्ति या अन्य परीक्षाओं का जिम्मा भी इसी दागी एजेंसी NSEIT के पास रहा है। आखिर यह भी जांच का विषय है कि इस दागी एजेंसी पर किस मुख्यमंत्री के शासनकाल में सबसे ज्यादा मेहरबानी बरसाई गई और वह कौनसा मंत्री है जिसका संरक्षण इस एजेंसी को मिला हुआ था?
यह सवाल आयोग के पूर्व अध्यक्षों रिटायर्ड आईएफएस आरबीएस रावत, रिटायर्ड आईएएस एस राजू, पूर्व सचिव संतोष बडोनी की भूमिका को भी संदिग्ध बना रही है। लेकिन संतोष बडोनी को निलंबित करने के अलावा पूर्व अध्यक्षों के खिलाफ जांच व कार्यवाही होती न देख लोग निराश हैं।
सीबीआई जांच की मांग अब राज्य में युवाओं की भावनाओं से जुड़ चुकी है। स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षा पेपर लीक मामले में एसटीएफ की कार्रवाई की खूब वाहवाही हो रही है लेकिन सीबीआई जांच की मांग असल में उस पूरे भ्रष्ट तंत्र की पोल खोलने के लिए भी है, जो राज्य में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को नौकरी की मंडी बना चुका था। जहां आसानी से चतुर्थ श्रेणी में तैनात पीआरडी का जवान भी अपने घर में ही परीक्षा से पहले ही पेपर की फोटो कॉपी कर अपनी पत्नी को दे देता है और वह नकल माफिया की बदौलत परीक्षा पास कर नौकरी भी पा जाती है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के फैसलों, उनके कार्यकाल में हो रहे इन खुलासों और उनके द्वारा हर बार अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई के उनके तेवरों की जनता मुरीद है लेकिन उनके पास राज्य में युवाओं और आम जनता के बीच हीरो बनने का बड़ा मौका है। बस वह सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे युवाओं की बात सुनें और एक बार फिर से सरकारी नौकरियों में पैसों को सीढ़ी बनाकर घुसे कर्मियों के फिल्टरेशन के लिए कड़े कदम उठाएं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और सामयिक विषयों पर लिखते हैं। विचार निजी हैं।)