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कोविड कर्फ़्यू में न धार्मिक आयोजन, न खुल रहे मंदिर और न रही शादियों की रौनक़ तो मुरझा गए फूलों के काश्तकार

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हरिद्वार : कोरोना संक्रमण और कर्फ्यू के कारण धार्मिक और सामाजिक गतिविधियां लगभग थमी हुई हैं। ऐसे में फूलों के काश्तकारों के सामने बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है। बड़े-बड़े खेतों में ग्राहकों के इंतजार में फूल मुरझा रहे हैं। हरिद्वार में भी फूलों की खपत कम हो जाने से काश्तकार अपने हाथों से ही फूलों को तोड़कर नष्ट कर रहे हैं। दरअसल, कोई धार्मिक कार्यक्रम हो, मंदिरों में भगवान को अर्पण करना हो या फिर शादियों में सजावट की बात हर शुभ कार्य में ताजे फूलों की जरूरत हमेशा रहती है। फूलों के बुके और मालाओं के खूब चलन का नतीजा है कि फ्लॉवर कारोबार खूब फल-फूल रहा लेकिन अब ऐसा लगता है जैसे इस कारोबार को भी कोरोना की नजर लग चुकी है।
कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए सरकार की ओर से कर्फ्यू लगाया गया है जिसके चलते शादियों और दूसरी सामाजिक गतिविधियों पर रोक है। जो समारोह हो भी रहे हैं वे काफी प्रतिबंधों के साथ हो रहे हैं। ऐसे में साल भर फूलों की खेती करने वाले काश्तकारों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। फूल उगाने की लागत और मेहनत आज भी उतनी ही है लेकिन मांग में भारी गिरावट आ जाने से फूल खेतों में खड़े खड़े मुरझा रहे हैं। जिसे देखकर काश्तकारों के मन में निराशा है।

पिछले साल लगे लॉकडाउन के बाद से फूलों के बाजार में लगातार मंदी छाई हुई है। आगे भी फूलों के काश्तकारों को उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आ रही है। ऐसे हालात देखकर सालों से फूलों की खेती करते आ रहे काश्तकार शालीन वालिया और मुश्ताक़ कहते हैं कि अगर हालात नहीं सुधरे तो उन्हें फूलों की खेती छोड़कर दूसरे काम के बारे में सोचना पड़ेगा।
दरअसल कोरोना संक्रमण और उसे रोकने के लिए लगाए जा रहे लॉकडाउन ने कई उद्योगों और व्यवसायों की कमर तोड़ दी है। ऐसे कारोबारी चाहते हैं कि कोरोना संक्रमण रोकने का एकमात्र जरिया लॉकडाउन या कर्फ़्यू ही न समझा जाए बल्कि जल्दी से जल्दी लोगों को टीके लगाए जाएँ ताकि थम गए कारोबार भी चलते रहे और महामारी को मात भी दी जा सके। सवाल है कि क्या अब जब कोरोना के नए मामले दो हजार से नीचे आ रहे तब बंद पड़े धंधों के कारोबारी उम्मीद करें कि एक जून से अनलॉक हो रहा है उत्तराखंड! आखिर फूलों के काश्तकारों के मुरझाए चेहरे भी कोरोना संक्रमण की रफ्तार पर ब्रेक और जिंदगी के तेज रफतार से दोबारा दौड़ने लगने के बाद ही खिलेंगे।

रिपोर्ट: आशीष मिश्र, स्थानीय पत्रकार, हरिद्वार

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