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हरदा का छलका दर्द: 2002 से 2012 तक पार्टी ने ना कहा तब भी झंडा थामे रहा, आपदा के बाद पुनर्निर्माण का सवाल न होता तो कभी मुख्यमंत्री नहीं बनता, हरक, यशपाल आर्य पर तंज,राहुल जी! युवा जोड़िए पर बूढ़ी हड्डियों में संघर्ष से तपा तेज आह्वान तो करिए

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देहरादून: 2014 की चुनावी जंग में करारी शिकस्त खाने के बाद से कांग्रेस को लगातार नेताओं के जाने से झटके लग रहे हैं। सुष्मिता देव ने कांग्रेस छोड़कर टीएमसी का दामन थामकर राहुल गांधी को ताजा झटका दिया है। कांग्रेस में पहले से युवा बनाम ऑल्ड गार्ड का द्वन्द्व राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन तक में बाधक बना हुआ है। सुष्मिता देव के पार्टी छोड़ने के बहाने पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत का सोशल मीडिया में दर्द झलक गया है। हरदा ने कांग्रेस को मजबूत करने के लिए जहां युवा जोश को तवज्जो देते रहने की वकालत की है वहीं, अनुभव और संघर्ष में तपे सीनियर नेताओं का भी आह्वान करने की बात कही है। हरीश रावत ने खुद के राजनीतिक दर्द को बयां करते कहा है कि 2002 में उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार बनाने के बावजूद उनको पार्टी नेतृत्व ने ना कही तो भी झंडा थामे रखा। 2007 में सरकार बनाने लायक जोड़-तोड़ किया तो पार्टी ने मैनडेट बीजेपी के पक्ष में बताया। उन्होंने तंज कहते कहा कि 2012 में जब तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य और नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत अपनी-अपनी सीटों को जीतने का संघर्ष कर रहे थे तब हरीश रावत हेलिकॉप्टर लेकर गाढ़-गधेरे, दांडे-कांडों में वोट मांगते फिरे। लेकिन CM के चयन की बात आई तो मुझसे एक शब्द पूछा तक नहीं गया। हरदा ने कहा कि जून 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद पुनर्वास और पुनर्निर्माण का सवाल खड़ा नहीं होता तो शायद मैं आज भी मुख्यमंत्री नहीं होता। हरदा ने कहा इसलिए कांग्रेस का क़र्ज़दार हूँ और आज कोरोना से बुरी तरह से संतप्त शरीर लेकर कांग्रेस की आवाज बुलंद कर रहा हूँ।


हरदा ने क्या कहा उसे यहाँ पढ़िए हुबहू:

राहुल जी, हम भी राहुल हैं और जीवन की अंतिम सांस तक कांग्रेस का झंडा थाम करके खड़े रहने वाले लोग हैं। सुश्री सुष्मिता देव के तृणमूल का दामन थामने से मुझे न आश्चर्य हुआ, न दु:ख हुआ। ये कुछ अंग्रेजी दां, कंप्यूटर दां, सुविधाओं के आदि हैं इनको जहां अच्छा पद मिला, ये वहां भागने वाले लोग हैं। ये #हरीशरावत नहीं हैं, 2002 में पार्टी ने ना कहा तो पार्टी का झंडा थाम करके खड़ा रहा, 2007 में बहुमत बना लिया था जोड़-तोड़ से ही सही, दिल्ली से पार्टी ने बयान जारी किया कि मैंडेट भाजपा के पक्ष में है, कांग्रेस जोड़-तोड़ की राजनीति नहीं करती है, हमने अपने साथ खड़े लोगों को कहा आप स्वतंत्र हैं, हमारे साथ रहना चाहें या जहां चाहें, भाजपा की सरकार बनी। 2012 में CLP व PCC अध्यक्ष भी अपनी-2 सीटों पर संघर्ष में जुटे रहे, हरीश रावत हेलीकॉप्टर लेकर गाढ़-गधेरे, दांडे-कांडों में चुनाव प्रचार में जुटा रहा। मुख्यमंत्री चयन की बात आई तो मुझसे एक शब्द पूछा तक नहीं गया, 2014 में भी हिमालयन त्रासदी के बाद पुनर्वास और पुनर्निर्माण का सवाल नहीं होता तो शायद मैं आज भी मुख्यमंत्री नहीं होता लेकिन मैं मुख्यमंत्री बना, कांग्रेस ने बनाया हमेशा उसका ऋणी रहूंगा और इस समय भी कोरोना से बुरी तरीके से संतप्त शरीर को लेकर के भी कांग्रेस की आवाज बुलंद कर रहा हूंँ। आप युवाओं को जोड़ने का अपना अभियान मत छोड़िये, उससे हतोत्साहित नहीं होना है। ये अमीर घरों के अमीर जादे थे, गरीब घरों के नौजवान जो संघर्ष से निकल करके आये हैं, वो पहले भी और आज भी, आगे भी कांग्रेस का झंडा थाम करके रहेंगे। एक जा रहा है तो आगे आने वाले लोगों के लिए रास्ता प्रशस्त हो रहा है, लोग और शिद्दत के साथ “#कांग्रेसलाओ-राहुल लाओ” के नारे को बुलंद कर रहे हैं। आज भी ऐसे लाखों कांग्रेस कार्यकर्ता हैं जिन्होंने आपकी दादी के साथ कांग्रेस लाने का संघर्ष किया है, जिन्होंने आपके पिताजी के साथ सांप्रदायिकता और विभाजन की ताकतों से लड़कर के 21वीं सदी के भारत बनाने के संकल्प को आगे बढ़ाने का काम किया है, आपकी माताश्री के साथ संघर्ष करके कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने का काम किया है। जरा उन योद्धाओं का एक बार आवाहन करिए, उन बूढ़ी हड्डियों में संघर्ष से तपा हुआ तेज है, बल है, वो आज भी जब सोनिया जी कह रही हैं कि यह #लोकतंत्र बचाने का संघर्ष है, यह अपनी आजादी को बचाने का संघर्ष है तो ऐसे संघर्ष में वो पीछे नहीं रहेंगे और आपके पीछे झंडा लेकर के खड़े होंगे। आपने ठीक कहा है जो जाना चाहते हैं जाएं, जो मोदी जी से डरे हुये हैं वो आज नहीं तो कल चले जाएं, लेकिन जो संघर्ष से तपे हुये लोग हैं वो झंडा थाम करके आपके साथ रहेंगे और जो संघर्ष करना चाहते हैं, वो सब नई पीढ़ी के लोग भी आपके पीछे आकर के खड़े होंगे।

हरीश रावत,पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव

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