देहरादून: पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड सरकार का मुखिया बनाते वक्त मोदी-शाह ने तीरथ रावत को तो सत्ता से बेदख़ल किया ही था, राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी से लेकर अजय भट्ट और सतपाल महाराज जैसे कई नेताओं के मुख्यमंत्री बनने के अरमानों पर भी पानी फेर दिया था। मार्गदर्शक मंडल के करीब पहुँचने को तैयार नेताओं से लेकर कई युवा नेता भी इस क़तार में शुमार रहे जिनकी नजर सीएम की कुर्सी पर थी। खैर कुर्सी पर तो किसी एक की ही ताजपोशी हो सकती थी।
सीएम के तौर पुष्कर सिंह धामी ने बहुत ज्यादा नहीं तो टीएसआर 1 और 2 से कम भी नहीं, अपनी सहज छवि गढ़कर सात माह के अल्प समय में ही सकारात्मक माहौल का फ़ीलगुड देने की बनाने की भरपूर कोशिश की है। लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस से ज्चादा भाजपा की कुर्सी कब्जाने की ताक में बैठे नेताओं ने धामी के साथ ‘खेला’ करने की पटकथा लिख ली है और अब उस पर काम भी शुरू कर दिया है। सीएम धामी के साथ ‘खेला’ होने की आशंका महज कोरी कल्पना नहीं है। इसकी एक पूरी क्रोनोलॉजी दिखाई दे रही है।
हाल में एक पूर्व सीएम का THE NEWS ADDA से अनौपचारिक बातचीत में दर्द छलका था कि उनके खिलाफ बाकायदा प्रोपेगंडा चलाने के लिए एक वॉर रूम बनाया हुआ था। यानी अगर धामी को कांग्रेस से पहले भाजपाई ‘खेल’ का शिकार बनाए जाने की बात हो रही है तो यह कोरी कल्पना नहीं है।
रविवार को भाजपा के चुनाव प्रभारी केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी एक बेहद अहम प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाते हैं जिसमें वे मोदी सरकार की जमकर उपलब्धियां गिनाते हैं लेकिन राज्य सरकार की पांच साल की पांच उपलब्धियां गिनाने में उनके पसीने छूट जाते हैं। चलिए प्रह्लाद जोशी तो ठहरे केन्द्रीय नेता लेकिन उनके अग़ल बगल राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी से लेकर प्रदेश नेताओं की एक पूरी टीम बैठी थी लेकिन न धामी और न उनसे पूर्व के दोनों मुख्यमंत्रियों की उपलब्धियां गिनाने की ज़हमत उठाई गई। मानो पत्रकारों के सवालों पर प्रदेश नेताओं ने अपनी ख़ामोशी से मुहर लगा दी। राज्यसभा सांसद बलूनी तो मंद-मंद मुस्कान भी इस दौरान बिखेरते रहे।
यह भी क्या कम हैरान करने वाला है कि एक तरफ भाजपा नारा दे रही है ‘उत्तराखंड की पुकार, मोदी-धामी सरकार’ और चुनावी थीम सॉन्ग में प्रधानमंत्री मोदी तो छाए रहे लेकिन सीएम धामी को किसी एक फ़्रेम तक में जगह नहीं दी गई फोटो दिखना तो दूर की बात है। और जैसा बताया गया कि जुबिन नौटियाल द्वारा गाए इस सॉन्ग को तैयार कराने में राज्यसभा सांसद बलूनी का बेहद अहम रोल रहा है।
इससे पहले भाजपा समर्थित कहलाने वाले न्यूज चैनल में न केवल पुष्कर सिंह धामी को खटीमा से हारते दिखाया गया बल्कि भाजपा जाते और कांग्रेस की सरकार बनते दिखाई गई। भाजपा कॉरिडोर्स में इस सर्वे के पीछे भी किसी धामी विरोधी कैंप की कारस्तानी की बातें होती रहती हैं। इससे पहले भी हुए तमाम सर्वेक्षणों में त्रिवेंद्र से लेकर धामी तक जो भी सीएम रहा हो उसे फीसड्डी दिखाते हुए ठीक उनके आसपास अनिल बलूनी की पॉपुलैरिटी का 18 फीसदी पर जमे रहने पर भी खूब चर्चा भाजपाई कॉरिडोर्स में होती रही हैं।
सर्वे दर सर्वे यह सवाल उठता रहा कि महज प्रेस रिलीज पॉलिटिक्स और चंद चैनलों में अपने बाइट मैनेजमेंट के अलावा सूबे की राजनीति में सीधे तौर पर एक्टिव न होकर भी बलूनी कैसे सतपाल महाराज, रमेश पोखरियाल निशंक और अजय भट्ट से लेकर तमाम भाजपा नेताओं पर भारी पड़ते हैं। जबकि हकीकत यह है कि न बलूनी पहले चुनाव जीत पाए हैं और न ही आज ऐसा राजनीतिक परिस्थितियां हैं कि उनके पीछे जनसैलाब उमड़ता दिख रहा हो।
जाहिर है राज्य सरकार की उपलब्धियों के सवाल पर ख़ामोशी कुर्सी की जंग में जुटे नेताओं के लिए तो सुखद हो सकती है लेकिन भाजपा के लिए खतरे की घंटी से कम नही! आखिर चुनावी जंग में डबल इंजन और इलेक्शन की सबसे मजबूत मशीनरी के लाख दावे करे लेकिन हकीकत यह है कि ‘खंडूरी है जरूरी’ के दौर में जनरल खुद जंग हार गए थे। क्या उम्मीद करें कि धामी खटीमा से लेकर देहरादून-दिल्ली तक चुनावी शह-मात के खेल में विरोधी कांग्रेस के साथ साथ घर के लंका भेदियों से भी चौकन्ना होंगे?