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करन ने संभाली कमान, कई नदारद: बागी तेवर दिखा रहे विधायक हरीश धामी को संभालने या अनुशासन का डंडा चलाकर दिखाने की पहली अग्निपरीक्षा

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देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस के नए कप्तान करन माहरा ने आज प्रदेश पार्टी मुख्यालय राजीव भवन में आयोजित कार्यक्रम में पदभार ग्रहण कर लिया। जौलीग्रांट एयरपोर्ट से लेकर कांग्रेस मुख्यालय तक कई जगह कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने करन माहरा का ज़ोरदार स्वागत किया लेकिन पदभार संभालते प्रीतम सिंह से लेकर हरीश धामी सहित कई विधायकों की गैर-मौजूदगी ने पार्टी के एकजुटता के दावों की पोल भी खोल दी। कल्पना करिए अगर कांग्रेस की सरकार बन गई होती तो आज मुख्यमंत्री पद से लेकर मंत्रीपद और दूसरी वजहों से किस तरह का कलह कुरुक्षेत्र चरम पर रहा होता!

पार्टी की विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार बुरी गत हुई है और 2014 और 2019 में लगातार दोनों बार लोकसभा चुनाव में पांच की पांच सीटें गँवाई हैं लेकिन इस सबके बावजूद पार्टी में गुटबाजी चरम पर है। आलम यह है कि आधा दर्जन विधायक नेता प्रतिपक्ष बनना चाहते थे और उससे ज्यादा को प्रदेश अध्यक्ष बनना था। लेकिन आर्य, माहरा और कापड़ी को मौका मिला तो प्रीतम सिंह से लेकर हरीश धामी और मदन सिंह बिष्ट सहित कई विधायक खार खाए बैठे हैं।

सियासी गलियारे में अब तो चर्चा यहाँ तक होने लगी है कि वह तो 47 सीटों के साथ सत्ता में लौटी भाजपा का दिल्ली में बैठा शीर्ष नेतृत्व इशारा नहीं कर रहा वरना कई असंतुष्ट पालाबदल करते देर न लगाएं। इसी गुटबाजी का नतीजा रहा कि करन माहरा के विधिवत पीसीसी चीफ के तौर पर कार्यभार ग्रहण करने को लेकर आयोजित कार्यक्रम में कई विधायक गैर हाज़िर रहे। खैर अब करन माहरा ने प्रभारी देवेंद्र यादव, पूर्व सीएम हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, रणजीत रावत और उपनेता विपक्ष भुवन कापड़ी जैसे कई नेताओं की मौजूदगी में चार्ज संभाल लिया है।

करन माहरा ने अध्यक्ष का कार्यभार संभालने के बाद शहीद स्मारक स्थल पहुंचकर उत्तराखंड राज्य के निर्माण को लेकर शहादत देने वाले शहीदों को नमन कर अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। माहरा ने शहीदों के सपनों का उत्तराखंड बनाने का संकल्प भी लिया। फिलहाल तो उनके सामने चुनाव दर चुनाव शिकस्त खाकर बेजान होती कांग्रेस में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले नई जान फूँकने की चुनौती होगी क्योंकि उसी के बाद पार्टी के भीतर 2027 में हार की हैट्रिक से बचने का हौसला जगा पाएँगे।

इस सबसे पहले करन माहरा को नई नियुक्तियों के बाद उभर रहे नाराजगी और असंतोष के स्वरों को शांत कराना होगा। पार्टी के धारचूला विधायक हरीश धामी पहले सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए सीट छोड़ने का खुला ऑफर दे चुके हैं और अब उन्होंने नया ऐलान भी कर दिया है कि वे 2027 का विधानसभा चुनाव किसी भी हालत में कांग्रेस के टिकट पर नहीं लड़ेंगे। यानी अध्यक्ष के नाते क्रम माहरा के लिए यही पहली चुनौती है कि वे कैसे हरीश धामी को मान-मनौव्वल के जरिए शांत कराते हैं या फिर उनके हमलावर तेवर और कांग्रेस आलाकमान पर तीखे बयानों पर अनुशासन का डंडा चलवाते हैं।

वैसे करन माहरा अध्यक्ष बनते ही सार्वजनिक बयानबाज़ी की नसीहत पार्टी नेताओं को दे चुके हैं लेकिन हरीश धामी पर कम से कम इसका असर होता नहीं दिखा है। ऐसे में वे इस सिचुएशन को कैसे हैंडल करते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। बड़े नेताओं में भी नाराजगी किस तरह की है इसकी बानगी हरदा और गणेश गोदियाल के बयानों से प्रभारी देवेन्द्र यादव की मौजूदगी में आज भी दिख गई है। यानी माहरा के लिए भाजपा से सियासी महाभारत जीतने से पहले पार्टी के भीतर छिड़े कलह कुरुक्षेत्र को क़ाबू करने की होगी।

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