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पहले दिन से कुंभ में कोविड डेटा गड़बड़ी की ओर इशारा कर रहे थे पर सरकार कान में रूई डालकर ‘ऑल इज वेल’ राग अलापती रही

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हरिद्वार/ देहरादून: कुंभ के दौरान हरिद्वार जिले से लगातार आ रहे संदेहास्पद आँकड़ों पर तीरथ सरकार समय रहते गौर फ़रमा लेती तो आज करोड़ों रु के कोविड टेस्ट के नाम पर हुए फर्जीवाड़े को रोका जा सकता था। हरिद्वार महाकुंभ के दौरान बिल बनाने के नाम पर हज़ारों ऐसे फ़र्ज़ी कोविड टेस्ट कर दिए गए, जो कभी हुए ही नहीं। फेक नंबर्स और एड्रेस का सहारा लेकर निजी लैब वाले ये फर्जीवाड़ा करते रहे।ग़नीमत है एक शख़्स को टेस्टिंग कराए बग़ैर कोविड टेस्ट हो जाने का मैसेज मिला और ICMR तक शिकायत के बाद तीरथ सरकार की नींद टूटी और एक लाख से ज्यादा फ़र्ज़ी टेस्ट कर डालने का भंडाफोड़ हुआ

एसडीसी फ़ाउंडेशन ने अप्रैल में 13 जिलों में रहे पॉजीटिविटी रेट का डेटा जारी किया है।एसडीसी फ़ाउन्डेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं कि एक अप्रैल को आए दैनिक कोविड डेटा में कुंभ के बावजूद असाधारण तरीके से हरिद्वार जिले का पॉजीटिविटी रेट बाकी 12 जिलों से 75 फीसदी कम था। बाकी 12 जिलों का पॉजीटिविटी रेट जहां 5.29 फीसदी था वहीं हरिद्वार में ये 1.33 फीसदी ही था।यही हाल बाद के दिनों में भी देखने को मिलता रहा। 2 अप्रैल को हरिद्वार का पॉजीटिविटी रेट 3.28 फीसदी तो बाकी जिलों का 4.06 फीसदी रहा था जिसका मतलब है हरिद्वार में अन्य के मुकाबले 20 फीसदी पॉजीटिविटी रेट कम रहा। 4, 5 और 6 अप्रैल को 12 जिलों के पॉजीटिविटी रेट के मुकाबले हरिद्वार का 82 से 85 फीसदी कम रहा।


सबसे चिन्ताजनक पहलू ये कि सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री, मंत्री और अधिकारियों ने इस बड़े विरोधाभास को पकड़ने या पड़ताल कराने की ज़हमत नहीं उठाई। जबकि द न्यूज अड्डा पर चर्चा में हमने और एसडीसी फ़ाउंडेशन ने कई बार सत्ताधारी दल की पैरवी करने पहुँचे बीजेपी प्रवक्ताओं का ध्यान इस और दिलाया। लेकिन इसे कुंभ को बदनाम करने की साज़िश और कुंभ की लाखों की भीड़ के बावजूद कोरोना संक्रमण न फैसले का उदाहरण बताते हुए पीठ थपथपाने का खेल चलता रहा। जबकि सच ये था कि उस दौर में कई साधुओं ने कोरोना से जान गँवाई और मुख्यमंत्री, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, स्पीकर ओम बिड़ला, नेपाल के पूर्व नरेश, सपा प्रमुख अखिलेश यादव और संघ प्रमुख मोहम भागवत से लेकर हरिद्वार आकर लौटने पर अनेक बड़े चेहरे कोरोना संक्रमित पाए गए थे।
जाहिर है ये फर्जीवाड़ा सरकार की लापरवाही और आँकड़ों के ज़रिए दिखाई दे रहे विरोधाभास के प्रति बरती गई उदासीनता का ही परिणाम है।

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