दिल्ली: देश कोरोना की दूसरी लहर में कराह उठा है और अब तीसरी लहर का खतरा सिर पर तलवार की तरह लटक रहा है। सबसे पहले भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार डॉ० के. विजय राघवन ने कहा था कि तीसरी लहर का आना तय है लेकिन कब आएगी ये फिलहाल नहीं कहा जा सकता। हालाँकि 24 घंटे बाद उन्होंने अपना बयान संशोधित करते हुए कहा था कि सख्त कदम उठाकर उसे हमेशा के लिए रोका भी जा सकता है।
खैर उसके बाद से लगातार कई हेल्थ एक्सपर्ट तीसरी लहर की आशंका जता चुके हैं। यहाँ तक कि विशेषज्ञ तीसरी लहर में देश की एक तिहाई आबादी के संक्रमण की चपेट में आने की आशंका जता रहे हैं। इसी के साथ तीसरी लहर का सबसे ज्यादा खतरा बच्चोें और किशोरों को हो सकता है।
इन्हीं आशंकाओं के बीच राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने राज्यों को हफ्तेभर के भीतर बच्चों के स्वास्थ्य के मद्देनज़र हेल्थ इंफ़्रास्ट्रक्चर का डाटा आयोग को भेजने का आदेश दिया है। आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो का कहना है कि समय रहते राज्यों से हेल्थ इंफ़्रा पर आंकड़े माँगे हैं ताकि संकट के समय बहानेबाज़ी की गुंजाइश न रहे। आयोग का कहना है कि वक़्त रहते राज्य सतर्क हो जायें और केन्द्र को भी राज्यों की स्थिति पता चल सकेगी इन आँकड़ों के आने के बाद और उसी अनुरूप राज्यों को मदद भी पहुँचाई जा सकेगी।
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बाल आयोग ने जो प्रोफार्मा राज्यों को भरने के लिए भेजा है उसमें बच्चोें के लिए कितने अस्पताल, नर्सिंग होम, प्राइमरी हेल्थ सेंटर य, डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ के डिटेल्स देने होंगे। साथ ही नियोनेटल इंटेसिव केयर यूनिट-NICU, सिक न्यू बॉर्न केयर यूनिट- SNCU और पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर यूनिट-PICU की संख्या कितनी है ये डाटा देना होगा।
गंभीर हालत में यदि कोई बच्चा हॉस्पिटल पहुँचा तो कितने बेड चालू हालत में रहेंगे। बच्चोें के कितने डॉक्टर रेज़ीडेंशियल हैं और कितने डॉक्टर अवलेबल ऑन कॉल?
राज्य के पास वर्तमान में कितना पैरामेडिकल स्टाफ है।
आयोग ने ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, नेबुलाइजर, ऑक्सीजन सिलेंडर सहित बच्चों के उपचार में काम आने वाले 22 उपकरणों में कितने खराब और कितने चालू हालत में राज्यों के पास हैं इसका ब्योरा माँगा है।इतना ही नहीं पिछले तीन वर्षों में NICU, SICU और PICU में कितने बच्चों की मौत हुई इसका भी डाटा तलब किया है।
बड़ा सवाल ये है कि उत्तराखंड जैसे राज्य जहां बड़ी तादाद में बाल रोग विशेषज्ञों की भारी कमी है, उनके राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग द्वारा माँगे गए डाटा इकट्ठा करते पसीने छूटने तय हैं।