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उत्तराखंड स्वच्छ सर्वेक्षण 2021: राष्ट्रीय स्वच्छ सर्वेक्षण में एक कदम आगे बढ़े तो एक कदम पीछे, वेस्ट मैनेजमेंट में ‘बेस्ट’ होने के लिए करने होंगे ये काम

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देहरादून: राष्ट्रीय स्तर पर हर वर्ष होने वाली स्वच्छता प्रतियोगिता ‘स्वच्छ सर्वेक्षण’ के परिणाम शनिवार, 20 नवंबर को नई दिल्ली में घोषित किए गए। उत्तराखंड के छह बड़े शहरों के लिए इस प्रतियोगिता के नतीजे मिले-जुले रहे हैं। राज्य के देहरादून, रुड़की, हरिद्वार, हल्द्वानी, काशीपुर और रुद्रपुर शहरों को प्रतियोगिता में शामिल किया गया था।

1-10 लाख जनसंख्या की श्रेणी में देश भर के 372 शहरों को शामिल किया गया था, इनमें देहरादून 82वें स्थान पर रहा। देहरादून शहर पिछले 5 वर्षों के दौरान पहली बार ‘100 शीर्ष शहरों’ की श्रेणी में प्रवेश करने में सफल रहा है। उत्तराखंड के किसी भी शहर ने पहले के किसी भी स्वच्छ सर्वेक्षण संस्करण में कभी भी 100 से नीचे का आंकड़ा पार नहीं किया था।

रुड़की 100 के बेहद करीब 101वीं रैंक पर रहा। इन दोनों शहरों ने स्वच्छ सर्वेक्षण रैंकिंग मे बेहतर प्रदर्शन किया है। देहरादून 2019 में 384वें और 2020 में 124वें स्थान पर था। इस बार देहरादून ने पहले से बेहतर प्रदर्शन किया है। रुड़की 2019 में 281वें स्थान पर और 2020 में 131वें स्थान पर था। इस साल रुड़की ने भी अपने प्रदर्शन में सुधार किया और 101वीं रैंक हासिल की। रुद्रपुर 403 से 316 और अब 257वें स्थान पर पहुंच गया है। हालांकि 257वीं रैंक किसी भी शहर के लिए एक खराब स्वच्छता रैंक है।।

हरिद्वार, हल्द्वानी और काशीपुर का प्रदर्शन पिछले साल से बदतर रहा है। हरिद्वार 2020 में 244 से 2021 में 285 पर फिसल गया है। हल्द्वानी 2020 में 229वीं रैंक की तुलना में 2021 में 281 पर है। काशीपुर 342वीं रैंक के साथ उत्तराखंड का सबसे गंदा शहर है। 2020 में काशीपुर की रैंक 139 थी।

उत्तराखंड के बड़े शहरों की तुलना में कुछ छोटे शहरों में वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम ज्यादा बेहतर हुआ है। इन कस्बों में पब्लिक अवेयरनेस भी बेहतर दर्ज हुई है और इनके प्रदर्शन में भी लगातार सुधार रहा है। ये कस्बे रिसाइकिलिंग और प्लास्टिक वेस्ट बिक्री से भी अपने लिए संसाधन जुटा रहे हैं। ऋषिकेश के पास मुनि की रेती ने शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया है। मुनि की रेती राज्य के छोटे शहरों में वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम का एक सफल और सतत मॉडल बनकर उभरा है।

रैंकिंग में कुछ हद तक सुधार के बावजूद, वेस्ट मैनेजमेंट और स्वच्छता उत्तराखंड के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। स्वच्छता पर काम करने के प्रयास जरूरत के मुकाबले कम हैं और उनमें निरंतरता की ज़रुरत है। कई शहरों और कस्बों में सूखे और गीले कचरे को अब भी अलग नहीं किया जा रहा है और दोनों तरह के कचरा एक साथ उठाया जा रहा है। शहरी स्थानीय निकायों के पास मैन पावर और संसाधनों की कमी है। लगातार बढ़ रहे कचरे को मैनेज करने में ये संसाधन कम पड़ रहे हैं।

प्लास्टिक कचरे की चुनौती लगातार बढ़ रही है। उत्तराखंड जैसे पारिस्थितिक रूप से नाजुक पर्वतीय राज्य के लिए प्लास्टिक कचरा एक बेहद बड़ा खतरा है। शहरी क्षेत्रों में खुले में कचरा फेंकना और कचरे के ढेरों पर जानवरों का मुंह मारना आम बात है। शहरों ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्रों और पर्यटन स्थलों की स्थिति भी बेहतर नहीं है। यहां स्थानीय स्तर पर वेस्ट मैनेमेंट की व्यवस्था नहीं है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए उत्तराखंड में नए और आर्थिक रूप से मजबूत वेस्ट मैनेजमेंट मॉडल की आवश्यकता है।

देहरादून स्थित एसडीसी फ़ाउन्डेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल द्वारा स्वच्छ सर्वेक्षण पर उत्तराखंड के लिहाज से यह विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। अनूप नौटियाल कहते हैं, ‘कुल मिलाकर देखा जाए तो 2021 के स्वच्छ सर्वेक्षण के परिणामों को उत्तराखंड के लिए एक कदम आगे, एक कदम पीछे के रूप में देखना ज्यादा ठीक होगा। उत्तराखंड के शहरों और कस्बों को स्वच्छ और कचरा मुक्त बनाने के लिए अधिकारियों और नागरिकों को वेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करना बाकी है।’

जाहिर है प्रदेश सरकार और नौकरशाही को स्वच्छता को लेकर ठोस व कारगर नीतियों का ढांचा तो खड़ा करना ही होगा,
धरातल पर बेहतर नतीजे पाने को लोगों में निरंतर अवेयरनेस कैंपेन की चलाते रहना होगा। इसमें गैर सरकारी सामाजिक और पर्यावरणीय सरोकारों को लेकर काम कर रही संस्थाओं को सहभागी भी बनाया जा सकता है।

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