कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने जिताऊ प्रत्याशियों को राजस्थान, छत्तीसगढ़ लेकर जाने की अटकलों को किया खारिज
देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव नतीजे 10 मार्च को आएंगे लेकिन उससे पहले ही पहाड़ पॉलिटिक्स में अटकलों का दौर शुरू हो गया है। यूँ भाजपा 60 पार जीत के साथ सत्ता में दोबारा वापसी का दम भर रही तो कांग्रेस भी 48 सीटों पर फतह कर कुर्सी पर क़ब्ज़े को ताल ठोक रही। लेकिन अंदरखाने धुकधुकी इधर भी है तो उधर भी कम नहीं। भाजपा नहीं चाहती कि केदारनाथ की जिस भूमि से प्रधानमंत्री मोदी हिन्दुत्व का मैसेज पूरे देश में देते हैं, वह देवभूमि उत्तराखंड किसी भी कीमत पर उसके हाथ से निकले। तो कांग्रेस कम्फरटेबल मजोरिटी के साथ सत्ता में वापसी का सपना बुन रही है लेकिन उसे भाजपा के किसी भी क़ीमत पर सूबे की सत्ता पाने के संभावित इरादे डरा भी रहे है।
भाजपा और कांग्रेस के बीच शह-मात के खेल में उन हालातों में ज़बरदस्त जंग छिड़ सकती है अगर 2022 के नतीजों में 2012 की सियासी सूरत दिख गई। 2012 में भाजपा 31 और कांग्रेस 32 सीटों पर ठहर गई थी लेकिन केन्द्र में यूपीए सरकार का सहारा और भाजपा पर एक सीट की बढ़त ने कांग्रेस के लिए सरकार बनाने का दरवाजा खोल दिया था। इस बार हालात बिलकुल दूसरे हैं और दिल्ली के तख़्त पर मोदी-शाह क़ाबिज़ हैं लिहाजा भाजपा सरकार बनाने से चूकना नहीं चाहेगी।
इस समीकरण से कांग्रेस भी बखूबी वाक़िफ़ है क्योंकि गुजरे सालों में गोवा में सबसे बड़ी पार्टी होकर भी कांग्रेस सत्ता गँवा चुकी है तो मध्यप्रदेश में सरकार बनाकर भी सिंधिया के सहारे हुई सेंधमारी के चलते उसे सत्ता से बाहर होना पड़ा है। इसी चिन्ता में कांग्रेसी रणनीतिकारों के पसीने छूट रहे हैं। एक तरफ त्रिशंकु हालात बने तो उसे बसपा और निर्दलीयों को साथ लाने को पसीना बहाना होगा तो दूसरी तरफ कांग्रेसी कुनबे को भी साधे रखना होगा। यही वजह है कि अटकलें चलने लगी हैं कि क्या कांग्रेस अपने जिताऊ चेहरे राजस्थान या छत्तीसगढ़ तो नहीं लेकर जाएगी? हालाँकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने इस अटकलबाजी को तो खारिज कर दिया लेकिन लगे हाथ भाजपा के इरादों पर सवाल भी खड़े कर दिए हैं।
वैसे भले भाजपा सत्ता को लेकर अपनी बिसात बिछा चुकी हो लेकिन नतीजों से पहले किसी भी तरह की टूट होगी इसका खतरा न कांग्रेस को ही है और न ऐसी उम्मीदें कमल कुनबे को हैं। अगर बहुमत का जादूई आंकड़ा छूने में दोनों दल पीछे रहते हैं तब जरूर ज़बरदस्त उठापटक होगी। यही वजह है कि भाजपा ने युवा सीएम धामी के भरोसे ही रहने की बजाय निशंक जैसे दिग्गजों को भी टास्क पर लगा दिया है। तो कांग्रेस भी अपने बूते बहुमत पाने और बसपा से लेकर यूकेडी और निर्दलीय जीतने वालों को साथ लेने का संदेश दे चुकी है। बताया गया है कि हरीश रावत और प्रीतम सिंह अपने तरीके से पार्टी से बाहर के ऐसे संभावितों से संपर्क अभियान में लगे हैं और प्रभारी देवेन्द्र यादव भी इस कसरत से जुड़े हैं। कांग्रेस प्रभारी और सह प्रभारी से लेकर दूसरे नेता आठ मार्च से देहरादून में कैंप करेंगे और होटल मधुबन में रणनीतिक वॉर रूम बनाया जाएगा, जहां से काउंटिंग की मॉनिटरिंग भी होगी।