- नाज है पहाड़ की बेटी प्रिया बिष्ट पर
- 4 किमी पैदल चलकर रोज पहुंचती है स्कूल
- दसवीं में 80 फीसदी अंक हासिल कर बनी स्कूल टॉपर
- मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत से मांग
चमोली (ग्राउंड जीरो से संजय चौहान की रिपोर्ट): प्रतिभा किसी चीज की मोहताज नहीं होती है। मैं कभी भी अंकों की दौड़ का पक्षधर और हिमायती नहीं रहा हूँ क्योंकि मेरा मानना है कि अंकों की दौड़ और मेरिट सूची में स्थान बनाने की चाहत से छात्र बेवजह तनाव में आ जाते हैं। इस तरह छात्रों की प्रतिभा के साथ कभी न्याय भी नहीं हो पाता है। दो दिन पहले उत्तराखंड बोर्ड के 10 वीं और 12 वीं के नतीजे घोषित हो गये हैं। पूरे परीक्षाफल पर सरसरी निगाहें डालेंगे तो पता चलेगा एक बार फिर पहाड़ के गुदड़ी के लालों नें कमाल कर दिखाया है। विपरीत परिस्थितियां, पढ़ाई के लिए बेहतर माहौल के अभाव और शिक्षकों की कमी के बावजूद पहाड़ के नौनिहालों ने नतीजों में अव्वल आकर अपनी प्रतिभा का एक बार फिर लोहा मनवाया है।
ऐसी ही एक होनहार प्रतिभा है सीमांत जनपद चमोली के वाण गांव की प्रिया बिष्ट, जिसने कक्षा 10वीं की परीक्षा में 80 फीसदी (79.4 फीसदी) अंक हासिल कर अपने विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। जबकि लक्ष्मण सिंह नें 71.8 फीसदी अंक हासिल कर द्वितीय स्थान प्राप्त किया वहीं 12 वीं में लखपत सिंह नें 70.8 फीसदी अंक प्राप्त कर पहला स्थान और सीता ने 66.4 फीसदी अंक हासिल कर दूसरा स्थान प्राप्त किया। राजकीय इंटर कॉलेज वाण की 12 वीं की परीक्षा का परिणाम सौ फीसदी रहा। 12 वीं में कुल 31 छात्र-छात्राओं ने परीक्षा दी थी जिसमें 5 को प्रथम, 16 को द्वितीय और 10 को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ है। वहीं 10 वीं का परीक्षा परिणाम 90 फीसदी रहा जिसमें 10 प्रथम, 14 द्वितीय, 2 तृतीय स्थान पर रहे। जबकि स्कूल के 3 छात्र अनुत्तीर्ण रहे। शिक्षकों ने कहा कि कुमारी प्रिया ने सर्वाधिक 79.4 फीसदी अंक हासिल कर स्कूल में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। उन्होंने कहा कि सीमित संसाधनों और शिक्षकों की कमी के बाबजूद छात्र-छात्राओं ने बेहतर प्रदर्शन किया है।
पहाड़ की बेटी का पहाड़ जैसा हौंसला
भले ही आपको प्रिया के ये 80% फीसदी अंक कम नजर आएं लेकिन मेरी नजर में ये अंक 95 फीसदी के बराबर हैं। आखिर प्रिया पहाड़ के उस गाँव की रहने वाली है जहाँ परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत है। वाण गांव सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाॅक का सबसे दूरस्थ गांव है जो हिमालय का अंतिम बसागत गांव है। हिमालयी महाकुंभ मां नंदा देवी राजजात यात्रा का अंतिम गांव और लाटू देवता की थाती है यह वाण गांव। साढ़े आठ हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित इस गांव से आगे केवल बुग्याल और बर्फ से ढके पहाड़ नजर आते हैं।
यह गांव सर्दियों में तीन महीने बर्फ से ढका रहता है और बरसात के मौसम में दो महीने देश-दुनिया से कटा रहता है। यहाँ लाइट से ज्यादा भरोसा ढेबरी लालटेन (सौर ऊर्जा) पर होता है, जिसके सहारे पढ़ाई की जाती है। एक गोली बुखार, एक किताब, एक अखबार खरीदने और बाल बनाने के लिए 40 किमी दूर देवाल जाना पड़ता है। आप कल्पना कर सकते हैं कैसी विषम भौगोलिक परिस्थिति होगी उस गांव की। ऐसी विपरीत परिस्थितियों और पढ़ाई के अनुकूल बेहतर माहौल न होने के बाद भी रोज घर से चार किलोमीटर पैदल स्कूल आना और फिर वापस घर जाना। घर जाकर घर के कार्यों में भी हाथ बंटाना और फिर पढ़ाई करना। इस सबके बावजूद 80 फीसदी अंक हासिल करना वाकई काबिलेतारीफ है।
अगर पहाड़ की यह बेटी देहरादून जैसे शहर में होती तो शर्तिया 95 फीसदी या उससे भी अधिक अंक हासिल करती। यही नहीं प्रिया पढ़ाई के प्रति इतनी गंभीर है कि घर में पिछले 5 सालों से टीवी ही नहीं देखा जाता है ताकि पढ़ाई से न ध्यान डिगे और न ही समय की बरबादी हो। बारिश हो या बर्फबारी, प्रिया को किताबों के अलावा कुछ भी नहीं दिखता। प्रिया जब अंग्रेजी में धारा प्रवाह भाषण देती है तो लगता ही नहीं की ये हिमालय के अंतिम गांव वाण की बेटी हो।
पहाड़ की बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत, सरकारी स्कूली शिक्षा के प्रति भरोसा जगाती है प्रिया की सफलता
विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों में भी प्रिया के प्राप्त किये गए 79.4 फीसदी अंक पहाड़ के होनहार प्रतिभाशाली छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत तो हैं ही, वहीं शहरों में रह रहे लोगों के लिये एक मिसाल भी है कि यदि प्रतिभा हो तो पहाड़ में भी रहकर सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है। त्रिवेंद्र सरकार में बने पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि पहाड़ से खाली होते गाँवों की एक बड़ी वजह रोजगार और स्वास्थ्य के अलावा बेहतर शिक्षा का अभाव रहना है। शिक्षा के लिए पहाड़ से पलायन करने वालों के लिए भी प्रिया ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि प्रतिभा के लिए पहाड़ और मैदान मायने नहीं रखता है। दूसरी ओर प्रिया की सफलता सरकारी स्कूलों के प्रति विश्वास और भरोसा भी जगाती है।
प्रिया की सफलता में राजकीय इंटर कॉलेज वाण में कार्यरत शिक्षकों की भी अहम भूमिका है जिन्होंने उसे बेहतर शैक्षिक परिवेश दिया, साथ ही मार्गदर्शन भी किया। शिक्षकों द्वारा दी गई गुणवत्तापरक शिक्षा ने भी प्रिया को प्रोत्साहित किया। प्रिया के पिता हीरा सिंह पहाड़ी पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं तो माँ संजू देवी आंगनवाड़ी कार्यकत्री। दोनों ने अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। दोनों अपने बेटी की सफलता पर बेहद खुश हैं। वो सीमित संसाधनों के बाद भी अपनी बेटी को बेहतर से बेहतर शिक्षा मुहैया कराना चाहते हैं।
काश मेरे गाँव के स्कूल में विज्ञान वर्ग होता : टॉपर प्रिया बिष्ट
टॉपर प्रिया बिष्ट से जब उनकी सफलता पर बातचीत हुई तो उसकी आंखे भर आई। प्रिया कहती हैं कि वो आगे सांइस स्ट्रीम में एडमिशन तो लेना चाहती है लेकिन उनके विद्यालय में विज्ञान वर्ग न होने से वहां के छात्र-छात्राओं को 25 किमी दूर मुंदोली अटल आदर्श इंटर कॉलेज में जाना पड़ता है। गांव से हर दिन आना-जाना नहीं हो सकता और न ही वहां अलग कमरा लेकर अकेले पढाई की जा सकती है। इसलिए मेरे मम्मी पापा मुझे इंटर में विज्ञान वर्ग की पढ़ाई के लिए मेरे ननिहाल भेज रहे हैं, जहां मैं राजकीय इंटर कॉलेज तलवाड़ी में आगे की पढ़ाई करूंगी। मैं चाहती हूं कि मैं ही नहीं मेरे गाँव की सभी बेटियां इंटर में विज्ञान वर्ग से पढ़ाई करें इसलिए मेरा अपने राज्य के मुख्यमंत्री पुषकर सिंह धामी और शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत से निवेदन है कि राजकीय इंटर कॉलेज वाण में विज्ञान संकाय को मंजूरी दी जाए ताकि हिमालय के अंतिम गांव की बेटियों को भी विज्ञान की पढ़ाई करने का अवसर मिल सकें। प्रिया ने बताया की उसकी सफलता में सबसे बडा योगदान उसके माता पिता, चाचा और विद्यालय के शिक्षकों का है जिनके बिना ये संभव नहीं था।
वास्तव में देखा जाए तो पहाड़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यदि इन्हें पढ़ाई के लिए बेहतर माहौल और उचित अवसर मिले तो ये भी मेरिट लिस्ट में पहले स्थान पर आ सकते हैं। आवश्यकता है ऐसी प्रतिभाओं को उचित मार्गदर्शन की। नाज है हमें हिमालय के पहाड़ों और कंदराओं में रहने वाली पहाड़ की होनहार और प्रतिभाशाली बेटियों पर। आखिर आप ही तो हैं पहाड़ के असली हीरे!
बहुत बहुत बधाइयाँ प्रिया, उनके माता पिता और शिक्षकों को।
(लेखक उमेश डोभाल पुरस्कार से सम्मानित यायावर पत्रकार हैं, जो लगातार पहाड़ के चट्टानी हौसलों की कहानियां सोशल मीडिया के जरिए हम तक लेकर आते हैं।)