Karnataka Assembly Election Results’ message for, Battle 2024: यूं तो अभी कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में वोटों की गिनती जारी है लेकिन जो रुझान और नतीजे आए हैं अब तक वो साफ तस्वीर दिखा रहे कि दक्षिण के द्वार से बीजेपी की Exit हो गई है और कांग्रेस ही कर्नाटक की किंग बन रही है। संकेत साफ है कि जेडीएस का किंग मेकर बनने का सपना भी इस बार अधूरा ही रह गया है।
कर्नाटक में क्यों हारी बीजेपी ?
इससे पहले की कर्नाटक के नतीजों के बाद उत्तर भारत की राजनीति में इसके असर पर बेस्ट करें उससे पहले हम जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर दक्षिण के इस द्वार ने मोदी मैजिक, शाह के रणनीतिक कौशल और बजरंग बली के बहाने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के तमाम दांव पेंच क्यों धरे के धरे रह गए? ये शुरू से ही लग रहा था कि मुख्यमंत्री के रूप के बसवराज बोम्मई बीजेपी के लिए कमजोर कड़ी बन गए हैं जो कांग्रेस के पूर्व सीएम सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के सामने टिक नहीं पाए।
बीजेपी को कर्नाटक में आज जो नतीजे देखने को मिल रहे इसकी एक वजह कांग्रेस द्वारा उसके माथे पर चिपकाया ’40 फीसदी कमीशन’ वाला करप्शन टैग भी माना जा सकता है जिससे मोदी शाह की कड़ी मेहनत के बावजूद पार्टी पीछा नहीं छुड़ा पाई।
बजरंग दल पर बैन के कांग्रेस घोषणापत्र के वादे को बजरंग बली से जोड़ने की तमाम कोशिश के बावजूद बीजेपी को मदद नहीं मिल पाई और हलाला, हिजाब आदि दांव भी फेल रहे।
बीजेपी ने पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा को किनारे कर 2024 के लिहाज से युवाओं को तवज्जो देकर नई बिसात बिछान की कोशिश की लेकिन लिंगायत तबके के दिग्गज को साइड लाइन करना सियासी घाटे का सौदा साबित हो गया। उस पर पूर्व सीएम जगदीश शेत्तार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का टिकट काटना भी भारी पड़ गया।
हालांकि मोदी शाह ने कर्नाटक चुनाव में आखिर में खूब ताकत झोंक दी थी लेकिन बोम्मई सरकार के खिलाफ बनी एंटी इनकंबेंसी को ब्रांड मोदी और शाह चातुर्य से काटने की बीजेपी की योजना काम नहीं आ सकी। जबकि रुझान और नतीजे बता रहे कि नॉर्थ इंडिया का अभी पता नहीं लेकिन साउथ में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ कांग्रेस के लिए बड़ी मददगार साबित होती दिखाई दे रही है।
जाहिर है कर्नाटक की हार के रूप में बीजेपी के ‘मिशन साउथ’ के सामने बड़ा ‘ब्रेकर’ आन खड़ा हुआ है। कर्नाटक चुनाव में हार के बाद बीजेपी ने तेलंगाना को लेकर बड़ा मैसेज देने का मौका गंवा दिया है। कर्नाटक बीजेपी के लिए दक्षिण का वो द्वार था जिससे वह तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु से लेकर केरल तक की सियासत साध लेना चाहती थी। लेकिन अब बीजेपी के लिए दक्षिण का दरवाजा बंद हो गया है तो क्या वह तेलंगाना के जरिए बाउंस बैक करेगी?
यह बड़ा सवाल है इसका जवाब इस साल के मध्य में होने वाले तेलंगाना विधानसभा चुनाव के नतीजों में दिखेगा लेकिन उससे पहले कई सवाल बीजेपी को उत्तर,पूर्व और पश्चिम भारत की राजनीति को लेकर उठ गए हैं, जहां बीजेपी का दबदबा है और चौबीस की चुनौती का दारोमदार भी इन्हीं राज्यों पर है।
तो क्या दक्षिण की हार के बाद मोदी शाह उत्तर भारत के बीजेपी शासित राज्यों में नए सिरे से पत्ते फेंटेंगे? क्या हरियाणा, उत्तराखंड, यूपी,मध्यप्रदेश, राजस्थान,छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में जहां पार्टी को लोकसभा चुनाव 2019 में करीब करीब शत प्रतिशत रिजल्ट मिले थे वहां के सियासी हालात की समीक्षा का वक्त आ गया है?
क्या राजस्थान में अब वसुंधरा राजे को तवज्जो देना मोदी शाह की मजबूरी होगी? क्या मध्यप्रदेश को लेकर भी बीजेपी आलाकमान शिवराज को लेकर सोचने को मजबूर होगा क्योंकि वह भी राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ इस साल के अंत में चुनाव होने हैं। हरियाणा में विधानसभा चुनाव तो खैर लोकसभा चुनाव के बाद होने हैं लेकिन मनोहर लाल खट्टर सरकार के कामकाज की समीक्षा कर्नाटक नतीजों के बाद हो सकती है? उत्तराखंड में युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में सरकार चल रही है तो क्या चौबीस में जीत की हैट्रिक का पॉवर पंच लगाने के लिए कमर कसी जाएगी? जाहिर है कर्नाटक की हार के बाद मोदी शाह के सामने ऐसे कई सवाल खड़े हो गए हैं और आने वाले दिनों की बीजेपी की राजनीति इनके जवाब खोजती नजर आ सकती है।