देहरादून: हरक सिंह रावत की कांग्रेस नेताओं से गूटरगूं की भनक लगते ही जिस भाजपा ने न कोई जवाब माँगा न ही कोई नोटिस जारी करने की खानापूर्ति की बल्कि एक झटके में पार्टी के कद्दावर नेता और धामी सरकार में वरिष्ठ मंत्री रहे हरक को बर्खास्त कर देती है, वहीं पार्टी नामांकन की तारीख बीत जाने के इतने दिनों बाद भी कम से कम एक दर्जन सीटों पर बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे नेताओं के आगे नतमस्तक है। इससे जहां भाजपाई काडर में कंफ्यूजन है कि अधिकृत प्रत्याशी के सामने बागी होकर ताल ठोक रहे नेताओं का स्वागत करें कि पिंड छुड़ाएं क्योंकि पार्टी नेतृत्व ने अभी तक मान-मनौव्वल की आस नहीं छोड़ी है। लेकिन इस पूरे हालात में भाजपा के ‘अबकी बार 60 पार’ वाले कॉन्फ़िडेंस का कचरा हो रहा है।
नामांकन वापसी की डेडलाइन से पहले भाजपा महज चार बाग़ियों को मना पाई लेकिन अभी भी 10 से ज्यादा पार्टी के बागी निर्दलीय मैदान में हैं। सूबे में बगावत से जूझ रही भाजपा के हालात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऊधमसिंहनगर की रुद्रपुर सीट से दो बार विधायक राजकुमार पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी और ज़िलाध्यक्ष शिव अरोड़ा के खिलाफ बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट को भाजपा अपने इंटरनल सर्वे में A+ मान रही थी लेकिन अब ठुकराल की बगावत ने सीट संकट में फंसा दी है। लिहाजा केन्द्रीय राज्यमंत्री अजय भट्ट से लेकर तमाम नेता ठुकराल की मान-मनुहार में लगे रहे लेकिन राजकुमार ने भाजपा पर रुद्रपुर सीट पांच करोड़ में बेचने का आरोप लगाया है। किच्छा में निर्दलीय लड़ रहे अजय तिवारी की बगावत भाजपा को आफत में डाल रही है।
टिहरी जिले की धनौल्टी सीट पर भाजपा ने निर्दलीय विधायक रहे प्रीतम सिंह पंवार को पार्टी ज्वाइन कराकर टिकट थमा दिया जिसके बाद बागी होकर पूर्व विधायक महावीर सिंह रांगड़ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टी खूब जतन कर रही है किसी तरह रांगड़ को बिठा लिया जाए वरना सीट पर कांग्रेस का खाता खुलने का डर है। जिले की घनसाली सीट पर भी सिटिंग विधायक शक्तिलाल साह निर्दलीय दर्शन लाल आर्य की बगावत झेल रहे हैं।
पौड़ी जिले की कोटद्वार को पहले ही भाजपा की कमजोर सीट माना जा रहा। यहां भाजपा टिकट पर हार के डर से हरक सिंह रावत पाला बदलने को मजबूर हो गए लेकिन अब जब पार्टी ने यमकेश्वर विधायक ऋतु खंडूरी का टिकट काटकर बाद में उन्हें कोटद्वार से टिकट थमा दिया तब पार्टी नेता और एक जमाने में जनरल बीसी खंडूरी के करीबी रहे धीरेन्द्र सिंह चौहान बागी होकर निर्दलीय चुनावी ताल ठोक रहे हैं। खुद ऋतु खंडूरी मान-मनौव्वल को चौहान के घर हो आई लेकिन वे बैठने को तैयार नहीं।
नैनीताल जिले की भीमताल सीट पर भाजपा ने निर्दलीय विधायक रहे राम सिंह कैड़ा को टिकट थमा दिया तो पार्टी नेता मनोज साह बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा बखूबी जानती है कि मोदी सूनामी के बावजूद 2017 में अंदरूनी कलह ने भाजपा के यहाँ हरा दिया था। अब पांच साल की सत्ता विरोधी लहर का ख़ामियाज़ा और ऊपर से मनोज शाह की बगावत पार्टी नेताओं के पसीने छुड़ा रही है।
देहरादून जिले की धर्मपुर सीट पर वीर सिंह पंवार का बागी होकर निर्दलीय लड़ना पहले से स्थानीय जनता की नाराजगी झेल रहे सिटिंग विधायक विनोद चमोली के लिए मुसीबत का सबब बन गई है। इसी तरह डोईवाला सीट पर दो बाग़ियों के मना लेने के बावजूद जितेन्द्र नेगी भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी बृजभूषण गैरोला के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। चकराता में मुन्ना सिंह चौहान की पत्नी मधु चौहान को टिकट न देकर इस बार सिंगर जुबिन नौटियाल के पिता रामशरण नौटियाल को मैदान में उतारा गया है। लेकिन अब कमलेश भट्ट की बगावत सिरदर्द बन रही है। देहरादून कैंट सीट पर दिनेश रावत बागी होकर निर्दलीय लड़ रहे हैं।
उत्तरकाशी की यमुनोत्री सीट पर मनोज काली और चमोली जिले की कर्णप्रयाग सीट पर टीका प्रसाद मैखुरी के पार्टी से बगावत कर निर्दलीय लड़ने से भाजपा की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं।हालाँकि प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक को भरोसा है कि बागी जल्द मान जाएंगे। पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक ने भी कहा कि जो भी नाराज होकर चुनाव मैदान में उतरे हैं उनको मना लिया जाएगा।
सवाल है कि एक तरफ अनुशासन के सख्त डंडे का दिखावा और दूसरी तरफ जब दावा ‘अबकी बार 60 पार’ का दिया जा रहा, तब बगावत कर पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के सामने चुनावी ताल ठोक हराने को उतरे नेताओं पर एक्शन की बजाय ठिठक जाने से कहीं न कहीं भाजपा का डर उजागर हो रहा है।