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धर्म: जीवंत परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर है उत्तरकाशी का भगवान परशुराम मंदिर

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Your Column ( DP Nautiyal): हिमालय की गोद में बसा उत्तरकाशी न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत केंद्र है, बल्कि यह भारत की सनातन परंपरा, अध्यात्म और संस्कृति का सजीव संगम भी है। ऐसे ही एक दिव्य स्थल पर स्थित है — भगवान परशुराम का मंदिर, जो उत्तरकाशी के बाणाहाट गांव के भैरव चौक पर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है।

परशुराम मंदिर का संचालन और पूजा-अर्चना का उत्तरदायित्व ज्ञानसू के विनोद कुमार नौटियाल और शैलेन्द्र कुमार नौटियाल के परिवार द्वारा वर्षों से किया जा रहा है। भगवान परशुराम की जयंती का आयोजन नौटियाल बंधुओं द्वारा अत्यंत श्रद्धा, भव्यता और सामाजिक सहभागिता के साथ किया जाता है, जिसमें आसपास के गांवों, नगरों और उत्तरकाशी जनपद के गणमान्य लोगों सहित, बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। यह आयोजन अब केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रहा है, बल्कि समूह चेतना और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन गया है।

बताते हैं कि इस पावन स्थल की प्राचीनता का उल्लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग के दस्तावेजों में भी मिलता है, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है। मंदिर के चारों ओर फैली दिव्यता और वातावरण की पवित्रता यह अनुभव कराती है कि यह स्थान केवल पूजा का केंद्र नहीं, अपितु आत्मा के शुद्धिकरण का भी स्थल है।

इस मंदिर से जुड़ी परंपरा को विस्तार देने में हम नहीं भूल सकते उत्तरकाशी के प्रसिद्ध समाजसेवी एवं संरक्षक स्वर्गीय पटेल जी को। वे भगवान परशुराम के परम अनुयायी थे और इस पूरे क्षेत्र में अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ स्मरण किए जाते हैं। जब हम छोटे थे, आदरणीय पटेल जी हमें उत्तरकाशी के विभिन्न देवी-देवताओं, तीर्थस्थलों और उनसे जुड़ी आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक परंपराओं के बारे में बड़े स्नेह से जानकारी देते थे। उनकी वाणी में अनुभव की गरिमा और आत्मीयता का भाव होता था, जो आज भी हमारी स्मृति में जीवित है।

इसी श्रृंखला में स्मरणीय हैं संस्कृत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य स्वर्गीय लाखीराम नौटियाल, जो भगवान परशुराम की महिमा पर गहन शोध और साहित्यिक कार्य हेतु प्रसिद्ध थे। उन्हें उनके अद्वितीय साहित्यिक योगदान के लिए भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया था।

आज जब हम वैश्विक बदलावों और सांस्कृतिक विच्छेदन के दौर से गुजर रहे हैं, तब ऐसे स्थान और व्यक्ति हमारी जड़ों से जुड़ने की प्रेरणा देते हैं। हम विनोद नौटियाल और शैलेन्द्र नौटियाल से आशा करते हैं कि वे इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए भगवान परशुराम की महिमा को विश्व स्तर तक पहुंचाने में योगदान देंगे।

हम उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देते हैं और साथ ही भगवान परशुराम से प्रार्थना करते हैं कि वे हमें धर्म, न्याय और लोकमंगल के पथ पर अग्रसर रखे।

(लेखक वरिष्ठ समाजसेवी एवं साहित्यकार हैं। विचार निजी हैं।)

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