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मोदी वर्सेस ममता जंग में जलता बंगाल लोकतंत्र को कहां लेकर जाएगा ?

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देहरादून( पवन लालचंद): पश्चिम बंगाल चुनाव से दो-ढाई वर्ष पहले बीजेपी-टीएमसी कार्यकर्ताओं में शुरू हुआ हिंसा का ख़ूनी खेल दो मई के चुनाव नतीजों के बाद थमा नहीं बल्कि और हिंसक हो गया। बुधवार को ममता बनर्जी ने सुबह 10 बजकर 50 मिनट पर तीसरी बार पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. लेकिन शपथ ग्रहण समारोह के दौरान भी ममता बनाम केन्द्र (बीजेपी) का झगड़ा नए रूप में सामने आ गया. राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को नसीहत दी कि राज्य में जारी हिंसा तुरंत बंद होना चाहिए. इस पर ममता ने पलटवार किया कि 2 जून के बाद हुई हिंसा के दौरान राज्य की व्यवस्था चुनाव आयोग देख रहा था लिहाजा हिंसा के लिए दोषी भी आयोग ही ठहरा. उन्होंने कहा कि अब शपथ लेने के बाद वे हिंसा से कड़ाई से निपटेंगी और दोषियों को क्षमा नहीं किया जाएगा.
राज्यपाल और मुख्यमंत्री के रिश्ते में ये तल्ख़ी नई नहीं विधानसभा चुनाव से पहले भी कई मौक़ों पर दोनों में टकराव देखा गया. अब तीसरी पारी खेलने उतरी ममता ने जिस लहजे में गवर्नर के वार पर पलटवार किया उससे पता चलता है कि अगले पांच साल बंगाल सरकार और भारत सरकार में कैसे मधुर रिश्ते रहेंगे. इससे पहले मंगलवार को प्रधानमंत्री ने टेलिफ़ोन कर गवर्नर धनखड़ से हिंसा पर चिन्ता जताई थी. आज उसी कड़ी में गवर्नर की नसीहत देखी गई लेकिन ममता ने उसी सुर में जवाब देकर अपने तेवरों का अहसास करा दिया है. चुप बीजेपी भी नहीं बैठी है और फ्रंटलाइन पर उतरे पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बंगाल पहुंचकर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं. यानी बंगाल बैटल में भले ममता ने मोदी-शाह द्वय के करिश्मे और रणनीति को मात दे दी हो लेकिन बीजेपी-टीएमसी के बीच की ये सियासी जंग अभी खत्म न समझी जाए.


हालॉकि बंगाल में हुई ताजा हिंसा की पृष्ठभूमि में बीजेपी और टीएमसी दोनों ही दल देखे जा सकते हैं. पहले 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले और फिर नतीजों के बाद से 2021 के चुनावों तक दोनों ही दलों ने अपने कार्यकर्ताओं पर नियंत्रण के कोई खास प्रयास नहीं किए. कहने को दोनों पार्टियों का नेतृत्व कहता रहा कि हिंसा रुकनी चाहिए और एक-दूसरे पर लक्ष्मण रेखा लाँघने का आरोप भी लगाते रहे लेकिन सच यही है कि हिंसा का खाद-पानी कार्यकर्ता नेताओं से ही पाते रहे, उनके भड़काऊ भाषणों से पाते रहे. बीजेपी और टीएमसी नेताओं में कटुता किस कदर हावी हो चुकी है, इसका अंदाज़ा सांसद बाबुल सुप्रियो के दो मई के नतीजों के बाद ममता बनर्जी को क्रूर महिला कहने वाले ट्विट से लगाया जा सकता है. हिंसा को लेकर अब बीजेपी टीएमसी और ममता का विरोध बंगाल से बाहर निकलकर देशभर में मंडल स्तर पर कर रही है.

इसी के मुक़ाबले ममता बनर्जी भी मोदी विरोध का सबसे बड़ा चेहरा बनती दिख रही हैं जिनमें दूसरे विपक्षी दल भी बीजेपी और मोदी विरोध का जरूरी साहस पाना चाहते हैं. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ ने तो तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी को बधाई देते हुए मध्यप्रदेश आमंत्रित कर लिया है.
साफ मोदी वर्सेस ममता की सियासी जंग बंगाल नतीजों तक ठहरती नहीं दिखती है बल्कि 2 मई ने इस अदावत को नया फलक दे दिया है. अब ममता बनर्जी की मोदी विरोध की ललकार नई राजनीतिक गोलबंदी का आधार तैयार करेगी जिसके पीछे शुरूआती दौर में गैर-कांग्रेसी दल लामबंद होते दिखेंगे और देर-सबेर कांग्रेस को भी पीछे-पीछे चलता देखा जा सकता है. हालॉकि ये राहुल गांधी के लिए कठिन वक़्त है लेकिन ममता की मोदी विरोध में बंगाल पर प्रचंड जीत विपक्ष के लिए नया रास्ता दिखा रही है तब कांग्रेस पीछे छूटने का साहस शायद ही जुटा पाए! आखिर मोदी विरोध में ममता की हैट्रिक पर ट्विट कर ताली पीटने वाले राहुल गांधी के लिए अगले रणक्षेत्र उत्तरप्रदेश में भी प्रियंका के प्रयासों के बावजूद मोदी विरोध की लड़ाई का अगुआ नहीं माना जाएगा. हां समाजवादी पार्टी जैसा दल भी चाहेगा कि राहुल गांधी ने वामपंथ के साथ मिलकर बंगाल में ममता की राह सुगम बनाने का जैसा दांव खेला उसका यूपी में दोहराव करना चाहें तो हर्ज न होगा. कोई अचरज न हो कि ममता बनर्जी यूपी के बाइस बैटल में मोदी विरोध में विपक्ष के एक धड़े को मजबूती देती नजर आएं. अगले चार-छह महीनों में राहुल गांधी या अखिलेश यादव में वो कौनसा विपक्षी नेता होगा जो उस तस्वीर का आधार तैयार करता दिखेगा.
बहरहाल इस सब के बीच ममता बनर्जी को बंगाल में टीएमसी कार्यकर्ता हों या बीजेपी कार्यकर्ता हिंसा के चेहरों को बेनक़ाब कर दंडित करना चाहिए. ऐसा संदेश देकर ही वे मोदी विरोध की जंग में असल अगुआ चेहरा बन सकेंगी. आखिर 2024 के राष्ट्रीय चुनावी दंगल से पहले कई मौके आने हैं जो बताएँगे कि मोदी वर्सेस ममता जंग में किसका पलड़ा भारी रहता है. बंगाल को हिंसा मुक्त कर पहला कदम बढ़ा सकती हैं ममता बनर्जी!

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