Scam in recruitment in Uttarakhand Assembly via Backdoor! कल्पना करिए उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य में जहां विधानसभा में निकली 70-72 नौकरियों के लिए 8 हजार से ज्यादा बेरोजगार आवेदन करते हैं और भर्ती हाईकोर्ट में अटक जाती है या फिर अटक जाए ऐसी रणनीति ही बनाई जाती है ताकि ‘आवश्यकतानुसार’, ‘नियमानुसार’ का तर्क देकर नियुक्तियों पर ‘अपनों’ के वारे-न्यारे किए जा सके। अगर ऐसा नहीं होता तो देखिए ना विधानसभा में नौकरी के लिए फॉर्म भरकर परीक्षा दे, जो रोजगार पाना चाह रहे थे वे तो आज भी इंतजार में हैं और सत्ता में काबिज लोगों के सगे संबंधी स्पीकर के ‘आवश्यकतानुसार’ और ‘नियमानुसार’ जुमले को सीढ़ी बनाकर नौकरी की मंजिल चढ़ गए।
अब बवाल मचा है तो पिछली सरकार में स्पीकर रहे और अब संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल नित नए तर्कों का तिलिस्म बनाकर ऐसा दर्शा रहे जैसे कुछ भी गलत हुआ ही नहीं।
कांग्रेस कल तक अग्रवाल पर हमलावर थी लेकिन जब से आपके अपने THE NEWS ADDA ने स्पीकर रहते गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा बैकडोर से 158 लोगों, जिनमें उनके बेटे, बहू, भतीजे से लेकर मंत्री की बेटी, विधायक के भाई-बहू सहित अधिकतर अपने ही करीबी थे, उसकी लिस्ट छापी है, उसके बाद से कांग्रेस नेता समझ नहीं पा रहे कि स्टैंड क्या लें। स्थिति न उगलते बन रही न निगलते बन पा रही।
आखिर एक बार फिर साबित हो गया है कि इस हमाम में पक्ष विपक्ष यानी भाजपा और कांग्रेस दोनों तरफ के नेता नंगे हैं जिसको मौका मिला ‘हर हर गंगे’ कर अपने अपने पाप धोकर चलता बना।
राज्य आंदोलनकारी और भाकपा (माले) के गढ़वाल सचिव इन्द्रेश मैखुरी ने कुछ गंभीर सवाल उठाए हैं।
भाकपा(माले) नेता मैखुरी ने कहा है कि उत्तराखंड में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से शुरू हुई नियुक्तियों में घोटाले की बात राज्य की विधानसभा तक जा पहुंची है। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग, सचिवालय, विधानसभा, ऐसी कोई जगह नहीं, जहां हुई नियुक्तियाँ संदेह के घेरे में ना हों। उन्होंने कहा कि यह राज्य के लिए एक दुखद और विडंबना की स्थिति है। मैखुरी ने आरोप लगाया कि भाजपा द्वारा वोट तो डबल इंजन के लिए मांगा गया, लेकिन ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार के डिब्बे खींचने वाले इंजनों की तादाद बहुत अधिक थी।
इन्द्रेश मैखुरी ने कहा कि अब तक UKSSSC पेपर लीक स्कैम में जिन भी लोगों की गिरफ्तारी हुई है और जिन्हें मास्टरमाइंड बताया गया है, वे साफ तौर पर छोटे प्यादे ही नजर आते हैं। यह तो कहा जा रहा है कि ये नियुक्तियाँ करवाने के लिए अभ्यर्थियों से पैसा वसूलते थे, लेकिन इस बात का जवाब अभी भी नहीं मिला है कि तंत्र के भीतर कौन लोग थे, जिन तक ये वसूली गयी धनराशि पहुंचाते थे?
मैखुरी ने कहा कि अब राज्य की विधानसभा में भी नियुक्तियों में गड़बड़ियों का खुलासा हो रहा है और मंत्रीगणों के पीआरओ और रिश्तेदारों से लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के स्टाफ के लोगों के नाम तक विधानसभा में हुई गुपचुप नियुक्तियों के लाभार्थियों के रूप में आए हैं। उन्होंने कहा कि जिन भी मंत्रीगणों और मुख्यमंत्री के स्टाफ पर संदेह की सुई घूमी है, नैतिकता का तक़ाज़ा यह है कि उन्हें अपने पदों से विरत हो जाना चाहिए।
भाकपा(माले) नेता मैखुरी ने कहा कि तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष और वर्तमान संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल ने जिस तरह से इन नियुक्तियों को अध्यक्ष के विशेषाधिकार के नाम पर जायज ठहराने की कोशिश की है, वह निंदनीय है और मुख्यमंत्री धामी को उन्हें तत्काल पद से हटाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के स्टाफ और मंत्रीगणों के स्टाफ जैसे उच्च पदस्थ लोगों के करीबियों के नाम आने से यह साफ हो जाता है कि इन बड़े लोगों की जांच कर पाना राज्य की पुलिस के बस से बाहर की बात है। मैखुरी ने कहा कि पुलिस के दरोगाओं की भर्ती भी संदेह के घेरे में है। इसलिए अब राज्य से बाहर की केन्द्रीय एजेंसी यथा सीबीआई से तमाम संदेहास्पद भर्तियों की जांच, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में करवायी जानी चाहिए। तभी इन तमाम भर्तियों में गड़बड़ियों के पीछे की बड़ी मछलियों को सलाखों के पीछे भेजा जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि अगर उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी की सरकार पुलिस से ही जांच पर ज़ोर देती है तो इसका स्पष्ट अर्थ होगा कि ऐसा सिर्फ खानापूर्ति के लिए किया जा रहा है और वास्तविक दोषियों को पकड़ना उसका मकसद नहीं है।