
ADDA IN-DEPTH: विधासनभा में नियुक्तियों को लेकर गड़े मुर्दे उखड़ेंगे तो लाज़िमी तौर पर बात 2002 तक जाएगी। लेकिन अगर बहस इतना पीछे नहीं भी गई तो कम से कम पिछले दो विधानसभा अध्यक्षों यानी प्रेमचंद अग्रवाल और गोविंद सिंह कुंजवाल को तो बैकडोर नियुक्तियों को लेकर कटघरे में खड़ा किया ही जाएगा। आजकल अपने कार्यकाल में अपने चहेतों से लेकर मंत्रियों-भाजपा विधायकों के सगे-संबंधियों के तौर पर की गई 72 नियुक्तियों को लेकर प्रेमचंद अग्रवाल निशाने पर हैं। निशाने पर होना भी चाहिए आखिर विधानसभा में आवश्यकता के नाम पर बिना विज्ञप्ति या सूचना सार्वजनिक किए विधानसभा में नौकरियों को सत्ता में बैठे लोगों के ‘अपनों’ के एडजेस्टमेंट का जरिया क्यों बनने दिया जाए? ऐसे में भाजपा सरकार और कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को कटघरे में खड़ा किया ही जाना चाहिए।
सवाल है कि क्या विधानसभा में बैकडोर नियुक्तियों की चिंगारी सुलगेगी तो अकेले प्रेमचंद अग्रवाल झुलेसेंगे, गोविंद सिंह कुंजवाल का घर इस आग की लपटों की जद में नहीं आएगा? आखिर याद कीजिए उस दौर का हल्ला जब स्पीकर रहते गोविंद सिंह कुंजवाल पर 158 लोगों को नियुक्ति देने के लिए तमाम नियमों को ताक पर रखने के गंभीर आरोप लगे थे। यहाँ तक कि गोविंद सिंह कुंजवाल की पुत्रवधू स्वाति का नाम भी इन 158 नियुक्तियों की सूची में शुमार था।
तत्कालीन स्पीकर कुंजवाल पर गंभीर आरोप लगे कि उन्होंने बड़ी ही चतुराई से पहले 131 लोगों को उपनल के माध्यम से विधानसभा सचिवालय में तैनाती दिलवाई, फिर चुनाव आचार संहिता से पहले 16 दिसंबर को इन सभी 131 कर्मियों का उपनल से सामूहिक इस्तीफा कराया और जल्द ही सभी को विधानसभा में तदर्थ नियुक्ति दे दी।लेकिन गोविंद सिंह कुंजवाल का ‘खेला’ देखिए उपनल से सामूहिक इस्तीफे हुए 131 कर्मियों के और तदर्थ नियुक्तियां करा दी गई 158 लोगों की। ये 27 खिलाड़ी उनके थे जिनको कुंजवाल के ‘खेला’ की खबर लगी तो वे जोड़-जुगाड़ और दबाव लेकर हाज़िर हो गए तत्कालीन स्पीकर के दरबार और नतीजा ये रहा कि उनके सगे-संबंधी भी पा गए नौकरियां।
दरअसल, इंटरनेट पर मौजूद उन दिनों की अखबारी रिपोर्ट्स के मुताबिक़ तब गोविंद सिंह कुंजवाल के इस बैकडोर नौकरी के ‘खेला’ का भांडा तब फूटा जब माह दिसंबर 2016 तक विधासनभा सचिवालय में कार्यरत लगभग 230 कर्मियों का वेतन कोषागार ये रिलीज होता था, लेकिन जब 230 की बजाय 388 कर्मियों का वेतन रिलीज करने की चिट्ठी पहुँची तो तत्कालीन वित्त सचिव अमित नेगी तक के कान खड़े हो गए और वेतन की फाइल पर दस्तक की बजाय क़लम धड़ाम हो गई। अमित नेगी ने इन 158 तदर्थ नियुक्ति वाले कर्मियों के वेतन जारी करने पर रोक लगी दी लेकिन अब ये कुंजवाल का कद था या कुछ और बाद में एक अधीनस्थ अधिकारी ने हस्ताक्षर कर कुंजवाल के ‘खेला’ पर शासन की मुहर लगने का मौका दे दिया।
18 मार्च 2016 को बगावत के भँवर में फँसी हरीश रावत सरकार को मँझधार से किनारे लगा देने वाले तत्कालीन स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल ने न केवल नियमों को ताक पर रखकर बैकडोर से अंधाधुँध नौकरियाँ बाँटी बल्कि अपने परिवार और संगे-संबंधियों से लेकर अपने विधानसभा क्षेत्र जागेश्वर और अल्मोड़ा जिले पर खूब कृपा बरसाई।
- नौ अप्रैल 2018 की न्यूज18 यूपी/उत्तराखंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ स्पीकर रहते गोविंद सिंह कुंजवाल ने अपने बेटे पंकज कुंजवाल को क्लास टू श्रेणी में विधासनभा रिपोर्टर पद पर नियुक्ति दिलाई। इस पद के लिए अंग्रेज़ी और हिन्दी में शॉर्ट हैंड अनिवार्य है लेकिन पंकज कुंजवाल को शॉर्ट हैंड आती ही नहीं है।
- कुंजवाल की बहू स्वाति कुंजवाल को भी 5400 ग्रेड पे पर उप प्रोटोकॉल अधिकारी के रूप में तदर्श नियुक्ति दे दी गई।
- इतना ही नहीं कुंजवाल के भतीजे स्वप्निल कुंजवाल को सहायक समीक्षा अधिकारी के पद पर नियुक्ति दे दी गई।

- विधायक हरीश धामी के भाई खजान धामी को विधानसभा रिपोर्टर के पद पर नियुक्ति दे दी गई। खजान धामी को भी शॉर्ट हैंड का ज्ञान नहीं है।
- विधायक हरीश धामी की बहू यानी खजान धामी की पत्नी लक्ष्मी चिराल को भी सहायक समीक्षा अधिकारी बना दिया गया।

- तत्कालीन कैबिनेट मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी की पुत्री मोनिका को भी अपर सचिव पद पर तैनाती दे दी गई।
- पूर्व सीएम बीसी खंडूरी के ओएसडी रहे जयदीप रावत की पत्नी सुमित्रा रावत को भी विधानसभा में नियुक्ति दी गई थी।

कुंजवाल ने स्पीकर रहते ऐसी अंधेरगर्दी मचाई कि इन 158 तदर्थ नियुक्ति पाए लोगों ने नौकरी के लिए महज एक सादे कागज पर आवेदन कर दिया जिस पर तिथि तक अंकित नहीं है। क्या सभी 158 अभ्यर्थी तिथि लिखना भूल गए थे?

चिंताजनक यह है कि 2017 में भाजपा सरकार बनी और स्पीकर का जिम्मा प्रेमचन्द अग्रवाल को मिला तो उन्होंने शुरू शुरू में कुंजवाल द्वारा कराई 158 नियुक्तियों की जांच कराने का दम भरा क्योंकि भाजपा विपक्ष में रहते इस मुद्दे पर हल्ला मचाती रही थी, लेकिन विडंबना देखिए कि आज कुंजवाल की तरह सवालों और आरोपों के कटघरे में अग्रवाल भी खड़े नजर आ रहे हैं।





