देहरादून: अब इसे आम आदमी पार्टी के दिल्ली में लगातार दो चुनाव में दिखाए करिश्मे का असर कहिए या फिर टीम केजरीवाल का धाकड़ मीडिया मैनेजमेंट! उत्तराखंड में कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बनने का दम भरते आई केजरीवाल की पार्टी चुनावी लड़ाई में लगातार पिछड़ती दिख रही है। मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए गए कर्नल अजय कोठियाल खुद की जीत के साथ सूबे में AAP सरकार बनाने का सपना लेकर गंगोत्री के पहाड़ चढ़ जरूर गए लेकिन अब बुरी तरह फंसे दिखाई दे रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि सीएम चेहरा होने के बावजूद कर्नल गंगोत्री से बाहर निकल नहीं पा रहे हैं और गंगोत्री सीट की लड़ाई में भी पिछड़ते दिख रहे हैं। यही हालात प्रदेश के दूसरे हिस्सों में AAP द्वारा बांटी गई सीटों पर दिखाई दे रहा है। कुछ ही सीट हैं जहां आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी वोट बंटोरते दिख रहे हैं लेकिन जीत का चमत्कार इन सीटों पर हो पाएगा इसकी गुंजाईश बेहद कम दिख रही।
काशीपुर में दीपक बाली दमदारी से चुनाव लड़ते दिख रहे लेकिन अब तक हरभजन सिंह चीमा और भाजपा का गढ़ रही सीट पर कितना कमाल दिखा पाएंगे कहा नहीं जा सकता है। बागेश्वर में बसंत कुमार जरूर वोट खींचेंगे और कपकोट में शायद ही 2017 में BSP से लड़कर भूपेश उपाध्याय जीतने वोट लाए थे उस प्रदर्शन को AAP टिकट पर दोहरा भी पाएं। जसपुर, बाजपुर, गदरपुर में भी AAP को वोट ज़रूर मिलेंगे लेकिन सीट निकल जाए ऐसा चुनाव लड़ता आम आदमी पार्टी का कोई प्रत्याशी नजर नहीं आ रहा।
सवाल है कि फिर 70 की 70 सीटों पर चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी सीट और वोट शेयर के लिहाज से तीसरे नंबर की ताकत बनेगी या फिर पिछले चार चुनावों की तरह इस बार भी भाजपा, कांग्रेस के बाद BSP ही तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरेगी? अगर ख़ामोशी से चुनाव लड़ती BSP की रणनीति को समझा जाए तो साफ नजर आ रहा है कि बसपा कम से कम 2017 की तरह सूपड़ा साफ कराती तो नहीं ही दिख रही है। हरिद्वार जिले की ऐसी कई सीटें हैं जहां बसपा जीत-हार की लड़ाई में दिखाई दे रही है।
भले मीडिया सर्वे और अनुमानों में आम आदमी पार्टी को बार-बार तीसरे नंबर की पार्टी बताया जा रहा हो लेकिन ग्राउंड पर सीटों की लड़ाई में AAP से बेहतर BSP नजर आ रही है। सीएम अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के विज्ञापन और मीडिया प्रबंधन के बूते AAP को मुख्यधारा के मीडिया माध्यमों में स्पेस ज़रूर दिलाए रखा है लेकिन पार्टी दिल्ली के बाद जिस तरह से पंजाब में घुसी और नतीजे देती दिख रही वैसा कुछ भी शुरू से उत्तराखंड में नहीं दिखा है। फिर चाहे कर्नल अजय कोठियाल का सीएम चेहरे के तौर पर चयन रहा हो या प्रत्याशी और मुद्दों के चुनाव की रणनीति रही हो। इसी सब के चलते अरसे तक प्रदेश अध्यक्ष रहे एसएस कलेर रूठे रहे हों या रविन्द्र जुगरान भाजपा से आकर भाजपा में लौट गए हों।
उधर मीडिया और विज्ञापन की चमक-दमक से दूर पिछले तीन महीनों में बसपा ने हरिद्वार जिले की कई सीटों पर अपने पुराने कुनबे को जोड़कर टिकट बांट दिए थे। नतीजा यह रहा कि हरिद्वार जिले की 11 में से कम से कम 7 सीटों पर BSP प्रत्याशी कांग्रेस और भाजपा को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। 2022 के चुनाव में हरिद्वार जिले की मंगलौर, भगवानपुर, झबरेड़ा, ज्वालापुर, लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण और खानपुर में मायावती का हाथी कमल कुनबे और पंजे के पराक्रमियों को कड़ी टककर दे रहा है और BSP इन सीटों पर उलटफेर कर चौका भी सकती है। ऊधमसिंहनगर की सितारगंज सीट पर भी कांग्रेस से टिकट न मिलने से नाराज होकर BSP में आ चुके पूर्व विधायक नारायण पाल मजबूती से चुनाव लड़ेंगे और यहां त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की कोशिश करेंगे।
अगर 2017 की मोदी सूनामी में BSP के खाता भी न खोल पाने के आंकड़े को नजरअंदाज कर दें तो हर चुनाव में वोट शेयर के लिहाज से भाजपा, कांग्रेस के बाद तीसरे नंबर की ताकत रही हैं और अधिकतम 8 विधायक भी जीते हैं। 2002 में BSP को 7 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी जिनमें पांच हरिद्वार और दो यूएसनगर की सीटें थी। 2007 में BSP का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा और उसे 8 सीटों पर जीत मिली। 2012 में भी BSP को तीन सीट मिली थी। 2017 में मोदी सूनामी और अपने पुराने कुनबे के बिखरने का असर रहा कि BSP शून्य पर सिमट गई लेकिन 2022 में मोहम्मद शहज़ाद से लेकर हरिदास, यूनुस अंसारी, स्वर्गीय सुरेन्द्र राकेश के भाई
सुबोध राकेश और नारायण पाल के रूप में पुराना कुनबा इकट्ठा हो चुका है। ताज्जुब न हो कि BSP सीट और वोट शेयर में तीसरी ताकत के तौर पर मीडिया की पहली पसंद बनी हुई आम आदमी पार्टी को अपने से एक पायदान नीचे धकेल दे!