देहरादून: 18 मार्च 2017 से लगातार डबल इंजन सरकार में पौड़ी जिले को सबसे पॉवरफुल जिले का तमग़ा रहा है। 2017 में उत्तराखंड में मोदी सूनामी चली तो उसका खासा असर पौड़ी जिले में भी दिखा। कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया और जिले की छह की छह सीटें भाजपा के पाले में चली गई। पौड़ी जिले का दबदबा भाजपा सरकार में दिखा। न सिर्फ दो-दो सीएम टीएसआर-1, टीएसआर-2 पौड़ी जिले से इस दौरान बनाए गए बल्कि डबल इंजन सरकार में सबसे कद्दावर मंत्री भी इसी जिले से रहे। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज से लेकर हरक सिंह रावत और धन सिंह रावत पौड़ी जिले से ही चुनाव जीतकर डबल इंजन सरकार में मंत्री बने। यमकेश्वर से विधायक ऋतु खंडूरी भूषण को भले सरकार में जगह नहीं मिल पाई लेकिन उनको उत्तराखंड भाजपा महिला मोर्चा का ज़िम्मा मिलने से पौड़ी जिले की ताकत फिर दिखी। लेकिन अब बाइस बैटल छिड़ा तो पॉवरफुल पौड़ी में ही कांग्रेस के मुकाबले भाजपा कमजोर पड़ती दिख रही।
भाजपा उत्तराखंड में किस कदर सियासी संकट में दिख रही है इसकी एक झलक पौड़ी के मौजूदा हालात देखकर हो जाती है। आलम यह है कि जिस पौड़ी में 2017 में भाजपा ने केवल सभी छह सीटों पर जीत दर्ज की थी बल्कि अधिकतर सीटों पर पार्टी का वोट शेयर भी 50 फीसदी से ज्यादा रहा था। एक यमकेश्वर सीट जहां भाजपा उम्मीदवार ऋतु खंडूरी भूषण को त्रिकोणीय मुकाबले में 43.96 फीसदी वोट मिले थो वरना तमाम सीटों पर भाजपा का वोट शेयर फिफ्टी प्लस रहा।
पौड़ी (सुरक्षित) सीट पर भाजपा के मुकेश कोली को 55 फीसदी, श्रीनगर में डॉ धन सिंह रावत को करीब 51.84 फीसदी, लैंसडौन में महंत दलीप सिंह रावत को 56.62 फीसदी और कोटद्वार में हरक सिंह रावत को 56.44 फीसदी वोट मिले थे। जबकि चौबट्टखाल में सतपाल महाराज को 49.06 फीसदी वोट मिले थे।
पौड़ी जिले में भाजपा उम्मीदवारों ने 50 फीसदी से ज्यादा वोट ही हासिल नहीं किए बल्कि अपने कांग्रेसी प्रतिद्वन्द्वियोें से उनकी जीत का अंतर भी 14 फीसदी से लेकर 21 फीसदी वोट शेयर का रहा। यानी सहज अंदाज़ा लगा सकते हैं पौड़ी के पहाड़ोें पर मोदी सूनामी ने किस कदर अपना असर दिखाया। लेकिन अब पांच साल गुज़रते-गुज़रते उसी पौड़ी के पहाड़ पर भाजपा की हालत कैसी है इसका अहसास डबल इंजन सरकार के कद्दावर मंत्री डॉ हरक सिंह रावत का हाल देखकर हो रहा है।
हरक सिंह रावत लगातार कोशिश कर रहे कि किसी तरह कोटद्वार से इस बार चुनाव न लड़ना पड़े। इसीलिए कभी लैंसडौन तो कभी केदारनाथ तक हरक सिंह रावत का दिल दौड़ लगा रहा है। वैसे हरक सिंह रावत ने कोटद्वार की बजाय लैंसडौन और यमकेश्वर से टिकट मिले तो चुनाव जीतने का दावा कर भाजपा के दोनों सीटिंग विधायकों महंत दलीप सिंह रावत और पूर्व सीएम जनरल बीसी खंडूरी की पुत्री ऋतु खंडूरी की स्थिति कमजोर होने का इशारा भी कर दिया है।
सवाल है कि क्या अकेले हरक सिंह रावत को ही अपनी सीट पर हार का डर सता रहा या फिर पौड़ी जिले के बाकी दो मंत्रियों सतपाल महाराज और धन सिंह रावत का हाल भी ज्यादा अच्छा नहीं है। भाजपा के राजनीतिक गलियारे में अक्सर चर्चाएं चलती रहती हैं कि मंत्री महाराज इस बार चुनाव लड़ेंगे भी या नहीं! बात यह भी होती रहती है कि महाराज पत्नी अमृता रावत के लिए रामनगर सीट और अपनी सीट के जरिए बेटे की राजनीतिक पारी का आगाज कराने की मंशा भी हो सकती है। धन सिंह रावत को लेकर तो यह बात पहले खूब हुई कि उनका मन पहाड़ से उतरकर रायपुर या कैंट सीट पर है। बहरहाल परिस्थितियां पक्ष में नहीं होती दिखी तो धनदा अब पूरे दमखम से श्रीनगर में जुटे हैं। यह अलग बात है कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अब कहा जा रहा कि गणेश गोदियाल धन सिंह रावत पर भारी पड़ सकते हैं।
ऐसे में पौड़ी जिला जिसका पांच साल की डबल इंजन सरकार में काफी दबदबा रहा, वहाँ के कद्दावर मंत्री हरक सिंह रावत की बेचैनी बाइस बैटल में पार्टी की जिले की स्थिति समझाने के लिए क्या काफी नहीं है!
हरक के बहाने दिख रहे भाजपा के हालात के चलते ही कांग्रेस जिले की छह की छह सीटें जीतने का दम भर रही है और उसे लगता है कि वह संग्राम 2017 का बदला बाइस बैटल में चुका देगी। हालाँकि भाजपा रणनीतिकार हरक की कमजोरी को पार्टी की कमजोरी नहीं बनने देना चाहते हैं। यही वजह है कि भले हरक केदारनाथ से लेकर डोईवाला तक तमाम विकल्प सुझा रहे हों लेकिन अंदरूनी खबर है कि भाजपा नेतृत्व चाहता है कि मंत्री सिर्फ अपनी मौजूदा सीटों से ही चुनाव लड़ें ताकि पार्टी की कमजोरी न झलके।