
देहरादून: कहने को कद्दावर लेकिन भाजपा की डबल इंजन सरकार के शुरू के चार साल टीएसआर के जीरो टॉलरेंस में दुबके रहने को मजबूर हरक सिंह रावत आजकल फिर सीट संकट से गुजर रहे। हालात ये बने हुए हैं कि एक तरफ केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का ‘हमने अच्छी दोस्ती निभाई है, आप भी निभाएं’ मंत्र और दूसरी तरफ जिस भी सीट को लेकर संभावना पालते हैं, वहाँ से स्थानीय नेता हमला बोल दे रहे। लैंसडौन सीट को केकवॉक समझ कब्जाने को आतुर हरक को ऐसा ही जवाब दो बार के विधायक महंत दलीप रावत दे रहे हैं।
यूं तो डबल इंजन सरकार में कद्दावर मंत्री हरक सिंह रावत और दो बार के भाजपा विधायक महंत दलीप रावत पड़ोसी हैं। 2017 में जहां हरक कोटद्वार से विधायक हैं तो वहीं महंत उससे लगती लैंसडौन सीट से दूसरी बार विधानसभा पहुँचे। अब 2022 का दंगल छिड़ चुका है और आदतन हरक सिंह रावत के सामने विधानसभा सीट बदलने की मजबूरी है। कोटद्वार में सामने सुरेन्द्र सिंह नेगी हैं और हरक सिंह रावत के लिए एक ही सीट से दोबारा जीतना मतलब उलटे पाँव पहाड़ चढ़ना होगा। लिहाजा हरक सिंह रावत अपने लिए सुरक्षित सीट के तौर पर केदारनाथ मांग रहे।
जाहिर है महंत दलीप रावत के लिए यह राहत की खबर थी लेकिन इसी के साथ एक आफत वाली खबर ने लैंसडौन विधायक की नींद उड़ा रखी थी। महंत के लिए आफत यह थी कि हरक सिंह रावत लैंसडौन सीट को अपनी पुत्रवधू के लिए सुरक्षित मानकर पार्टी से महंत का टिकट कटवाना चाह रहे थे। अब अपना राजनीतिक भविष्य चौपट होता देख महंत दलीप रावत ने भी जी-जान से घोड़े दौड़ाने शुरू किए। फिर एक खबर उड़ी कि महंत कांग्रेस भी जा सकते हैं और यह खबर पाकर भाजपा रणनीतिकारों ने महंत का गुस्सा शांत कराया और लैंसडौन पर उनकी दावेदारी को जरूरी बाकी सब गैर-जरूरी करार दे दिए।
हरक सिंह रावत पर जीत हासिल करते ही महंत दलीप रावत ने खुद को कट्टर हिन्दुवादी विचारधारा वाला बताते हुए भाजपा को ही अपना इकलौता विकल्प करार दिया। लैंसडौन बचाने में कामयाब रहने के बाद शुक्रवार को महंत का एक और बयान तेजी से वायरल हो रहा है। इसे महंत का हरक पर करारा कटाक्ष करार दिया जा रहा है। आप खुद सुनिये कि आखिर महंत के निशाने पर कौन रहा क्योंकि हमला बिना नाम लिए हुआ है।