- सोनिया-राहुल गांधी के नेतृत्व की बजाय ‘सबकी चाहत हरीश रावत’ के स्लोगन पर हरदा चाहते कांग्रेस लड़े चुनाव!
- कद्दावर बागी की घर वापसी की आहट सुनाई देते ही पहाड़ कांग्रेस में जंग के हालात!
देहरादून: कहते हैं राजनीति संभावनाओं का खेल है और यहाँ असंभव शब्द समय-समय पर हुए घटनाक्रमों के जरिए दुहाई देता दिखता रहा है कि यहाँ असंभव भी संभव है। फिर भी पहाड़ पॉलिटिक्स के मौजूदा हालात ऐसे नहीं कि पूर्व मुख्यमंत्री और उत्तराखंड कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता हरीश रावत 2022 की जंग के इस मुहाने पर जब दूरदराज़ खड़ा अदना कांग्रेसी भी
जीत की चाहत लिए फिर रहा तब प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव से किसी मुद्दे पर नाराजगी या फिर एक-दो कद्दावर बाग़ियों की एंट्री की आहट पाकर घर छोड़कर भाग खड़े हों!
आखिर गाहे-बगाहे खुद को कांग्रेस परिवार की ‘बालिका वधू’ करार देते हरदा इतना आसानी से और जब अपनी आख़िरी बाज़ी यानी ‘करो या मरो’ की चुनावी जंग में उतर चुके हों तब रणछोड़ कहलाएँगे!
वैसे तो हरीश रावत की सियासी बिसात पर चली चाल समझना बहुत कठिन कसरत है लेकिन उत्तराखंड कांग्रेस संगठन के साथ देने की बजाय हाथ-पाँव बाँधकर तैराकी को चुनावी समुद्र में डूबोने को लेकर छलका उनका दर्द बताता है कि पार्टी में अंदरुनी तौर पर जरूर बहुत कुछ ऐसा चल रहा जो उनके गले नहीं उतर रहा! अब यह सही है कि ‘सबकी चाहत हरीश रावत’ के उनके नारे को कांग्रेस नेतृत्व जीत का मंत्र नहीं मान रहा लेकिन क्या इतने भर से हरदा हिचकेंगे और हमलावर होकर बागी सुर दिखाने लगेंगे? या फिर बाग़ियों की कोई आहट है जिसने रावत को राजनीतिक आर-पार की प्रेशर पॉलिटिक्स खेलने को मजबूर कर दिया?
दरअसल, हरदा कैंप ने जिस तरह प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव को निशाने पर लिया है वह कुछ-कुछ अंदर मचे कलह कुरुक्षेत्र का इशारा कर रहा है। हरीश रावत के बेहद करीबी सुरेन्द्र कुमार अग्रवाल ने जिस तरह से देवेन्द्र यादव को भाजपा की राजनीति का साझीदार ठहरा दिया है, यह बिना हरदा कै इशारा पाए हुआ हो ऐसा किसी के गले नहीं उतरेगा। जबकि कांग्रेस का दूसरा धड़ा दावा करता है कि प्रभारी यादव पार्टी के नेतृत्व यानी सीधे राहुल गांधी के एजेंडे को लेकर उत्तराखंड में पार्टी को देख रहे हैं। इसी के तहत वे हर मंच से हरदा-प्रीतम या किसी तीसरे चेहरे की बजाय सोनिया-राहुल को रख झगड़ा शांत कराना चाह रहे लेकिन गुटबाजी के घुन से गहरे तक ग्रसित कांग्रेस में हरदा वर्सेस प्रीतम कैंप जंग में कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं दिखता। शायद हरदा के ताजा हल्लाबोल की बड़ी वजह भी यही है। इसी के चलते प्रभारी देवेंद्र यादव को लेकर पहाड़ कांग्रेस में दोराय बन चुकी हैं।
कांग्रेस इनसाइडर ने आपके THE NEWS ADDA पर दावा किया है कि कांग्रेस कुनबा बढ़ाओ अभियान और ऐसा कर रावत को रण में पछाड़ने निकले प्रीतम सिंह का जल्द एक बड़े बागी नेता की घरवापसी में कामयाबी मिल सकती है। कहा जा रहा है कि अपने समर्थकों में ‘शेर ए गढ़वाल’ नाम से चर्चित बागी नेता की घर वापसी में जुटे ‘चकराता के चाणक्य’ को पार्टी की मजबूती के नाम पर देवेन्द्र यादव का भी समर्थन मिल चुका है। जाहिर है इसकी भनक हरदा को भी लग चुकी लिहाजा उन्होंने ‘अब देर की तो बाजी हाथ से गई’ वाले अंदाज में सोनिया गांधी या राहुल गांधी को फोन खड़खड़ाने की बजाय सोशल मीडिया का सहारा लेकर धमाका कर दिया।
अब सवाल यह है कि क्या सोनिया से राहुल गांधी तक पहुंच चुका कांग्रेस नेतृत्व राज्य में पार्टी के सबसे बड़े नेता हरीश रावत की प्रेशर पॉलिटिक्स के सामने सरेंडर कर देगा? या फिर ठीक चुनावी जंग के बीच कांग्रेस की ‘बालिका वधू’ को कोपभवन में जाने देना अफॉर्ड करेगा?
अगरचे शेर ए गढ़वाल की घर वापसी रूक जाती है तो समझिए यह हरदा की बड़ी जीत होगी? और अगर अब भी एंट्री हो जाती है तो संदेश साफ होगा! साथ ही, अगर लगे हाथ हरदा कोपभवन से लौटते ‘सबकी चाहत हरीश रावत’ के चुनावी नारे को भी दिल्ली दरबार की मंजूर दिला लेते हैं तो यह उनका एक ही तीर से दूसरा शिकार होगा। लेकिन जब हर तरफ इतने अगर मगर हों तब इतना जल्दी किसी एक नतीजे पर पहुंचना बेहद कठिन होगा। तब तक ‘हरदा कांग्रेस छोड़ेंगे’ वाले सूत्रों के सहारे ‘पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त’ धारावाहिक देखते रहिए।
यहाँ पढ़िए हूबहू क्या कहा है पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने-
है न अजीब सी बात, चुनाव रूपी समुद्र को तैरना है, सहयोग के लिए संगठन का ढांचा अधिकांश स्थानों पर सहयोग का हाथ आगे बढ़ाने के बजाय या तो मुंह फेर करके खड़ा हो जा रहा है या नकारात्मक भूमिका निभा रहा है। जिस समुद्र में तैरना है, सत्ता ने वहां कई मगरमच्छ छोड़ रखे हैं। जिनके आदेश पर तैरना है, उनके नुमाइंदे मेरे हाथ-पांव बांध रहे हैं। मन में बहुत बार विचार आ रहा है कि हरीश रावत अब बहुत हो गया, बहुत तैर लिये, अब विश्राम का समय है! फिर चुपके से मन के एक कोने से आवाज उठ रही है “न दैन्यं न पलायनम्” बड़ी उपापोह की स्थिति में हूंँ, नया वर्ष शायद रास्ता दिखा दे। मुझे विश्वास है कि भगवान केदारनाथ जी इस स्थिति में मेरा मार्गदर्शन करेंगे !