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भगत दा रहेंगे राजनीति से दूर ‘स्टडी लीव’ पर या सियासी शिष्य संग खेलेंगे ये ‘खेल’! चुनावी राज्यों सहित कुल 13 राज्यों के राज्यपाल बदले गए

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Ramesh Bais replaces Bhagat Singh Koshyari, 13 Governors appointments: महाराष्ट्र राज्यपाल पद से भगत सिंह कोश्यारी का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है और अब उनकी जगह झारखंड के राज्यपाल रहे रमेश बैंस को नियुक्त कर दिया गया है। राज्यपाल रहते भगत सिंह कोश्यारी का पहले महाराष्ट्र विकास अगाड़ी सरकार से झगड़ा चलता रहा फिर उनके शिवाजी महाराज से लेकर ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले और मुंबई में गुजरातियों, मारवाड़ियों के योगदान आदि पर आए बयानों ने सियासी बवंडर मचा दिया।

इसके बाद जब शिंदे गुट और महाराष्ट्र बीजेपी भी भगत दा की राजभवन में उपस्थिति से सियासी नुकसान को लेकर चिंता होने लगी तो कोश्यारी ने पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखी और फिर पिछले दिनों पीएम नरेन्द्र मोदी के मुंबई दौरे में राजभवन से रिलीव करने की इच्छा जताई थी। रविवार को भगत दा का इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वीकार कर उन्हें राजभवन से रिलीव कर दिया है। आज केंद्र ने कई राज्यों के राज्यपाल बदल डाले हैं।

दरअसल, केंद्र ने रविवार को नौ चुनावी राज्यों सहित कुल 13 राज्यों में राज्यपाल और उप-राज्यपाल बदल डाले हैं। भगत दा की जगह झारखंड के राज्यपाल रहे बैंस को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया है। जबकि जनवरी में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए जस्टिस अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश राजभवन भेजा गया है। खास बात ये है कि रिटायरमेंट के महज 40 दिन बाद आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बनाए गए जस्टिस नजीर राम मंदिर, तीन तलाक जैसे कई अहम मामलों में फैसला देने वाली जजों की बेंच में शामिल रहे।

राज्यपालों के बदलाव में एक खास बात यह भी है कि केंद्र ने जिन 13 राज्यों में नए राज्यपाल और उप-राज्यपाल बनाए हैं, उनमें से नौ में इसी साल विधानसभा चुनाव भी होने हैं।

केंद्र ने इन राज्यों में बदले राज्यपाल और उप-राज्यपाल

  • लेफ्टिनेंट जनरल कैवल्य त्रिविक्रम परनाइक को अरुणाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया।
  • यूपी विधानसभा परिषद के सदस्य लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को सिक्किम का राज्यपाल बनाया गया।
  • तमिलनाडु BJP के पूर्व अध्यक्ष सीपी राधाकृष्णन को झारखंड का राज्यपाल बनाया गया।
  • BJP वर्किंग कमेटी के सदस्य गुलाब चंद कटारिया को असम का राज्यपाल बनाया गया।
  • BJP नेता शिव प्रताप शुक्ला को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया।
  • अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल रिटायर्ड ब्रिगेडियर डॉ. बीडी मिश्रा को लद्दाख का उप-राज्यपाल बनाया गया।
  • झारखंड से राज्यपाल रमेश बैंस को महाराष्ट्र भेजा गया।
  • बिहार के राज्यपाल फागु चौहान को मेघालय भेजा गया।
  • छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके को मणिपुर भेजा गया।
  • आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे बिस्वा भूषण हरिचंदन को छत्तीसगढ़ भेजा गया।
  • हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर को बिहार भेजा गया।
  • मणिपुर के राज्यपाल रहे एलए गणेशन को नागालैंड भेजा।

इन नौ राज्यों में चुनावी दंगल


त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। जबकि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में साल के आखिर में नवंबर में चुनाव होने हैं। कर्नाटक और तेलंगाना में भी इसी साल इलेक्शन हैं।

कोश्यारी अब क्या करेंगे ?

केंद्र ने तेरह राज्यों में राज्यपाल बदल डाले हैं लेकिन उत्तराखंड के राजनीतिक गलियारे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि कोश्यारी अब क्या करेंगे? कहने को भगत दा ने इस्तीफा देते कहा था कि अब उनका मन राजभवन में नहीं बल्कि अध्ययन और चिंतन मनन को लेकर रमना चाहता है। लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने से लेकर महाराष्ट्र राजभवन तक के भगत दा के सफर को देखा जाए तो नहीं लगता कि “खिचड़ी वाले बाबा” यूं ही राजनीति के फलक से दूर निकल जायेंगे! भगत दा यूपी से अलग होकर उत्तराखंड बना तो नित्यानंद स्वामी को हटा कर मुख्यमंत्री बने थे। 2002 में बीजेपी हारी तो भगत दा नेता प्रतिपक्ष बने और सिटिंग सीएम चुनाव जीतने वाले वे अब तक के प्रदेश के इकलौते नेता रहे हैं। 2004 से 2007 तक उत्तराखंड बीजेपी की कमान संभालने से लेकर राज्यसभा, 2014 में लोकसभा फिर 2019 में महाराष्ट्र राज्यपाल बनने तक कोश्यारी की सियासत की खासियत रही है कि वे भले लंबे समय तक किंग न रह पाए हों लेकिन किंग मेकर वे अरसे तक रहे हैं।

2009 के लोकसभा चुनाव ने पांचों सीटों पर बीजेपी कांग्रेस के हाथों हार गई तो सीएम कुर्सी डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के हाथ लगी लेकिन ठीक 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले अन्ना आंदोलन ने जोर पकड़ा तो “खंडूरी है जरूरी” का नारा फिर लगा तो इसके पीछे भी भगत दा की अहम भूमिका रही थी क्योंकि तब कोश्यारी ने खंडूरी के साथ मिलकर निशंक को निपटाने की पटकथा लिखी थी।

आज भी अगर पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के सिंहासन पर काबिज हैं तो इसके पीछे के असल आर्किटेक्ट भगत सिंह कोश्यारी ही माने जाते हैं। कोश्यारी की न केवल संघ में मजबूत पकड़ है बल्कि मोदी-शाह के साथ भी जबरदस्त केमिस्ट्री रही है। यूं तो त्रिवेंद्र सिंह रावत भी एक जमाने में भगत दा के ही सियासी शिष्य थे और जब मुख्यमंत्री के तौर पर पार्टी नेतृत्व ने पहले TSR 1 और मात्र चार माह बीतने से पहले ही TSR 2 यानी तीरथ सिंह रावत में भी बीजेपी नेतृत्व को 2022 की बिसात फतह होती नहीं दिखी तो परदे के पीछे से भगत दा ही थे जिन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष से लेकर संघ और मोदी शाह को कनविंस करने में निर्णायक भूमिका निभाई कि 2022 की बाजी जीतने के लिए पूरी बिसात ही बदल देनी चाहिए।

यानी गढ़वाल से सत्ता लेकर कुमाऊं को सौंपी जाए ताकि गढ़वाल के नेताओं में मचे झगड़े को भी रोका जा सके और कांग्रेस के सबसे बड़े दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत यानी हरदा को घर ने घेरा जा सके। नतीजों ने साबित भी किया और बीजेपी की सत्ता में न केवल वापसी हुई बल्कि खटीमा हार कर भी धामी मुख्यमंत्री की कुर्सी दोबारा पा गए। बीजेपी के रणनीतिकार बताते हैं कि सीएम धामी के उपचुनाव के लिए चंपावत सीट सबसे महफूज होगी इसकी पूरी आर एन डी भी महाराष्ट्र राजभवन से बैठकर ही भगत दा ने कर दी थी।

धामी के उपचुनाव में घर के विघ्नसंतोषी खटीमा जैसा भीतरघात का खेल ना खेल डाले इसके लिए कोश्यारी ने अपने खासमखास और धामी कैबिनेट में मंत्री चंदन राम दास को चुनावी कमान दिलवाई थी। एक नहीं कई बार जब जब सीएम धामी की अनुभवहीनता आड़े आई तो भगत दा चुपके से मुंबई से उड़कर दिल्ली स्थित महाराष्ट्र सदन पहुंचे और देहरादून से धामी को दिल्ली बुलाकर मार्गदर्शन देकर भेजा।

हालांकि सियासी गलियारे में धामी की दोबारा ताजपोशी के बाद यह चर्चा भी सुनने को मिली कि शायद अब युवा मुख्यमंत्री हर दूसरे मामले में अपने सियासी गुरु के दखल से असहज होने लगे हैं। क्योंकि कई मंत्री भी अपनी मांग मनवाने के लिए वाया महाराष्ट्र राजभवन पेश आने लगे थे। यहां तक कि हाल तक हुई कुछ आयोगों की नियुक्तियों में भी मन मारकर ही सही सिफारिश चली भगत दा की है।

यही से पहाड़ पॉलिटिक्स में ये बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या भगत दा अब जब महाराष्ट्र राजभवन से फ्री हो चुके हैं, तब अपने राजनीतिक शिष्य सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए पेचीदा मसलों पर ढाल बनेंगे? या फिर जो दखल कई सौ किलोमीटर दूर महाराष्ट्र राजभवन से हो रहा था वह अब यमुना कॉलोनी या सीएम आवास से कहीं और करीब रहकर हर दिन हर मसले पर बढ़ने वाला है?

दरअसल, यह चर्चा इसलिए अधिक जोर पकड़ रही कि भगत दा ने मौजूदा दौर की पहाड़ पॉलिटिक्स में साबित कर दिखाया है कि भले वे किंग नहीं लेकिन किंगमेकर वे ही हैं। आज उनके सियासी शिष्य धामी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं और उन्हीं के दूसरे शिष्य अजय भट्ट केंद्र में रक्षा और पर्यटन राज्यमंत्री हैं। धामी सरकार में भी चंदन राम दास से लेकर रेखा आर्य और डॉ धन सिंह रावत जैसे कई मंत्री सीधे भगत दा से कनेक्ट हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस नेता डॉ हरक सिंह रावत और खानपुर से निर्दलीय विधायक उमेश कुमार भी भगत दा के चहेतों में शुमार हैं। जबकि विजय बहुगुणा से लेकर कई और दिग्गज भी कोश्यारी के करीब गिने जाते हैं।


आज पहाड़ प्रदेश की बीजेपी पॉलिटिक्स पर नजर डालें तो अकेले भगत दा का सियासी कैंप दिख रहा है। अब ना जनरल बीसी खंडूरी का धड़ा दिख रहा और केंद्र से भेज दिए गए पूर्व शिक्षा मंत्री निशंक की चमक बरकरार रही है। इस लिहाज से भगत दा ना केवल 2024 के टिकट बंटवारे को प्रभावित कर सकते हैं बल्कि धामी सरकार कैसे चुनौतियों से पार पाए इसकी स्क्रिप्ट भी वे री राइट कर सकते हैं!

ऐसे में जब स्पीकर ऋतु खंडूरी भूषण ने विधानसभा बैकडोर भर्ती भ्रष्टाचार पर ऐतिहासिक एक्शन लेकर सीएम धामी के जीरो टॉलरेंस दांव पर नहले पर दहला मार दिखाया और अंकिता भंडारी हत्याकांड में बुलडोजर एक्शन से लेकर कई मोर्चों पर सीएम धामी का रिस्पॉन्स गड़बड़ाता नजर आया। खासकर बेरोजगारों पर अपनी पुलिस से लाठियां बरसा कर सीएम धामी ने प्रदेशभर के युवाओं की नाराजगी मोल ले डाली है, तब भगत दा का राजभवन से मुक्ति पाकर पहाड़ लौटना खासा अहम डेवलपमेंट साबित हो सकता है। अब न केवल प्रदेश के सियासी गलियारे बल्कि बीजेपी कोरिडोर्स में भी चर्चा होने लगी है की आखिर सीएम धामी किन सलाहकारों की सलाह पर अमल कर रहे हैं?

वे कौन सलाहकार हैं जो बेरोजगारों पर सीएम धामी को लाठी डंडे बरसाने की सलाह दे रहे। जबकि जिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दिनभर अपने एक एक वाक्य में तीन चार बार नाम जप रहे मुख्यमंत्री के सामने किसान आंदोलन का उदाहरण मौजूद है। सवा साल तीन तरफ से किसान दिल्ली घेर कर बैठे रहे लेकिन केंद्र ने दिल्ली पुलिस को एक लाठी चलाने की इजाजत देना मुनासिब नहीं समझा। यहां तक कि लाल किला एपिसोड के दौरान भी। फिर बीजेपी के नेता ही दबी जुबान में पूछ रहे कि आखिर बेरोजगार युवाओं ने चार घंटे गांधी पार्क के सामने राजपुर रोड जाम कर दिया तो सीएम धामी का संयम कैसे डोल गया?

अब यह साफ हो चुका है कि जब सरकार ने एक सिपाही से लेकर कप्तान और जिलाधाकारी तक किसी को बेरोजगारों के साथ हुए एपिसोड का रत्तीभर भी जिम्मेदार नहीं माना है तो इसका मतलब साफ है कि पुलिस और प्रशासन ने वही किया तो मुख्यमंत्री और सरकार ने आदेश दिया!

ऐसे में अगर भगत सिंह कोश्यारी जैसा मंझा हुआ राजनीतिक गुरु आसपास रहेगा तो संभव है कि युवा सीएम अपने बगलगीर जमीन से कटे अफसरान और “किचन सलाहकार समूह” की नासमझी का शिकार नहीं होंगे! भगत दा ना केवल ऐसे सुलगते सवाल कैसे हैंडल किए जाएं इसकी बारीकी समझा सकेंगे बल्कि घर के विरोधियों और विपक्षी धुरंधरों से कैसे निपटा जाए इसके गुर भी धामी को दे सकेंगे!

जाहिर है अगर भगत दा इस अंदाज में पर्दे के पीछे से भूमिका निभाने को उतरेंगे तब शिष्य सीएम पुष्कर इसे किस तरह और कितना पचा पाएंगे यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि भगत दा जब प्रदेश में मौजूद होंगे तो यह हो नहीं सकता कि धामी से जिनकी पटरी ना बैठेगी वे भगत दा के दरबार में हाजिरी नहीं लगाएंगे? या कहिए कि जिनकी दाल सीएम दरबार में नहीं गलेगी उनकी हाजिरी खिचड़ी वाले बाबा के दरबार में ही लगेगी!


तो क्या नाराज मंत्री, विधायक और बीजेपी नेता इस नए पॉवर सेंटर को अपना डेस्टिनेशन बना लेंगे? एक कदम और आगे जाकर देखें तो क्या असहज दिख रहे अफसरान भी एक पता भगत दा के आवास का अपने जीपीएस सिस्टम में एड करा देंगे? क्योंकि प्रदेश के रिटायर और सर्विंग अफसरान की एक बड़ी तादाद है जो दो दशक से भगत दा के दरबार के रेगुलर विजिटर रहे हैं। जाहिर है सियासी खेल दिलचस्प रहने वाला है, आइए राजभवन से “स्टडी लीव” लेकर पहाड़ प्रदेश लौट रहे भगत दा के मैप पर नजर बनाए रहें और देखें कि क्या ये स्टडी लीव उन्हें पर्मेनेटली सियासी लीव साबित होती है या फिर बहुत कुछ भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ है..!

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